राजस्थान सामान्य ज्ञान : धार्मिक आन्दोलन

बौद्ध धर्म

  • पाल शासकों ने बौद्ध धर्म को विशेष रूप से संरक्षण दिया।
  • इस धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध अथवा सिद्धार्थ का जन्म नेपाल की तराई में अवस्थित कपिलवस्तु राज्य में स्थित लुम्बिनी वन में 563 ई.पू. में हुआ था। इनके पिता शुद्धोधन शाक्य गण के मुखिया थे तथा माता महामाया कोलियवंशीय थीं।
  • इनका पालन पोषण इनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने किया। यशोधारा से इनका विवाह हुआ तथा राहुल इनका पुत्र था।
  • सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में सत्य की खोज में गृह त्याग दिया। इस घटना को बौद्ध ग्रंथों में महाभिनिक्रमण कहा गया।
  • गृहत्याग के पश्चात् सर्वप्रथम वे आलार कलाम नामक तपस्वी के संसर्ग में आए तत्पश्चात् वे रामपुत्त नामक आचार्य के पास गये। सात वर्ष तक जगह – जगह भटकने के पश्चात् वे गया पहुँचे जहां उन्होंने निरंजना नदी के किनारे पीपल वृक्ष के नीचे समाधि लगायी। यहीं आठवें दिन बैशाख पूर्णिमा पर सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ। इस समय इनकी उम्र 35 वर्ष थी। उस समय से वे बुद्ध कहलाए।
  • गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी के समीप सारनाथ में दिया। इसे धर्मचक्र प्रवर्तन कहते हैं।
  • 483 ई.पू. में गौतम बुद्ध की मृत्यु कुशीनगर (देवरिया जिला उत्तर प्रदेश) में हुई। इसे बौद्ध ग्रंथ में महापरिनिर्वाण कहते हैं।
  • बौद्ध धर्म अनीश्वरवादी है।
  • बौद्ध धर्म में आत्मा की परिकल्पना नहीं है। पुर्नजन्म को माना गया है।
  • अपने प्रिय शिष्य आनंद के अनुरोध पर बुद्ध ने महिलाओं को संघ में प्रवेश की अनुमति दी।

बौद्ध धर्म के सिद्धान्त :

  • बौद्ध धर्म का विशद ज्ञान हमें त्रिपिटक से होता है जो पालि भाषा में लिखे गये हैं।
  • चार आर्य सत्य : बौद्ध धर्म का सार चार आर्य सत्यों में निहित है।

(i) दुख (ii) दुख समुदाय (iii) दुख निरोध (iv) दुख निरोध गामिनी प्रतिपद्या।

प्रतीत्य समुत्पाद (द्वादश निदान कारणवाद) बुद्ध के उपदेशों का सार है जिसका अर्थ है कि सभी वस्तुएं कार्य और कारण पर निर्भर करती है।

  • अष्टांगिक मार्ग : दुख के निवारण के लिए बुद्ध ने जो आठ उपाय या मार्ग बतलायें हैं अष्टांगिक मार्ग कहलाते हैं।
  • दस शील : बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति के लिए सदाचार तथा नैतिक जीवन पर बल दिया। इसके लिए उन्होंने दस शील का पालन अनिवार्य बताया।

बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय :

  • कनिष्क के समय बौद्ध धर्म स्पष्टतः दो सम्प्रदाय महायान तथा हीनयान में विभक्त हो गया।
  • हीनयान : रूढ़िवादी प्रकृति के थे। ये बुद्ध के मौलिक सिद्धान्त पर विश्वास करते थे। हीनयान एक व्यक्तिवादी धर्म था, इसका कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने प्रयत्नों से ही मोक्ष प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। ये बुद्ध को मार्गदर्शक या आचार्य मानते थे भगवान नहीं। ये मूर्तिपूजा एवं भक्ति में विश्वास नहीं करते थे।
  • महायान : सुधारवादी प्रकृति के थे। बुद्ध को भगवान मानते थे और मूर्ति पूजा पर विश्वास करते थे। अवतारवाद तथा भक्ति से संबंधित हिन्दू धर्म के सिद्धान्त को अंगीकार किया। महायान साहित्य संस्कृत में है। यह सम्प्रदाय चीन, जापान, तिब्बत, कोरिया एवं मंगोलिया में प्रचलित है।
  • शून्यवाद (माध्यमिक) मत का प्रवर्तन नागार्जुन ने किया था तथा विज्ञानवाद (योगाचार) के संस्थापक मैत्रेयनाथ थे। असग तथा वसुबंध द्वारा विज्ञानवाद का विकास किया गया।
  • वज्रयान : सातवीं शताब्दी के करीब बौद्ध धर्म में तंत्र – मंत्र के प्रभाव के फलस्वरूप वज्रयान सम्प्रदाय का उदय हुआ।
  • त्रिपिटक : सूत्तपीटक, विनयपीटक व अभिधम्म पीटक।

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