राजस्थान सामान्य ज्ञान : धार्मिक आन्दोलन

वर्द्धमान महावीर :

  • जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक महावीर का जन्म वैशाली के निकट कुंडग्राम में 540 ई.पू. में हुआ। इनके पिता सिद्धार्थ ज्ञातृक गण के मुखिया थे और माता त्रिशला लिच्छवि गणराज्य प्रमुख चेटक की बहन थी। महावीर के बचपन का नाम वर्द्धमान था।
  • इनका विवाह यशोदा से हुआ था।
  • महावीर ने 30 वर्ष की अवस्था में बड़े भाई नंदिवर्द्धन की आज्ञा लेकर गृह त्याग कर दिया।
  • 12 वर्ष की कठोर तपस्या के पश्चात् जुम्भिक ग्राम (साल वृक्ष के नीचे) के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर वर्द्धमान को कैवल्य प्राप्त हुआ।
  • कैवल्य प्राप्त होने के पश्चात् ये केवलन, इन्द्रियों को जीत लेने के कारण जिन तथा अतुल पराक्रम दिखाने के कारण ये महावीर कहलाये।
  • 72 वर्ष की उम्र में राजगृह के निकट पावापुरी में 468 ई.पू. में निर्वाण प्राप्त किये।
  • शालवृक्ष के नीचे महावीर को कैवल्य की प्राप्ति हुई थी। पूर्व में ये ‘निग्रंथ’ कहलाते थे।
  • जैन मठों को दक्षिण भारत में बसादि के नाम से जाना गया है।

जैन धर्म के सिद्धान्त :

  • पंच महाव्रत-1. अहिंसा, 2. सत्य व अमृषा, 3. अपरिग्रह, 4. अस्तेय तथा 5. ब्रह्मचर्य।
  • सृष्टिकर्त्ता के रूप में ईश्वर को नहीं मानता।
  • देवताओं के अस्तित्व को स्वीकार किया है परन्तु इनका स्थान जिन से नीचे है।
  • जैन धर्म कर्मवादी है तथा इसमें पुनर्जन्म की मान्यता है।

अन्य धार्मिक सम्प्रदाय

सम्प्रदायसंस्थापक
आजीवकमक्खलिपुत्र गोशाल
अक्रियवादीपूरणकस्सप
उच्छेदवादीअजित केसकंबलिन
नित्यवादीपकुधा कच्चायन
संदेहवादीसंजय वेलट्ठलिपुत्त
  • त्रिरत्न :
  1. सम्यक् दर्शन – सत में विश्वास।
  2. सम्यक् ज्ञान – वास्तविक ज्ञान।
  3. सम्यक् आचरण – सांसारिक विषयों में उत्पन्न सुख – दुख के प्रति समभाव।
  • स्याद्वाद : जैन धर्म में ज्ञान को 7 विभिन्न दृष्टिकोण से देखा गया है जो स्याद्वाद कहलाता है। इसे अनेकान्तवाद अथवा सप्तभंगीय का सिद्धान्त भी कहते हैं।
  • अनेकात्मवाद : आत्मा संसार की सभी वस्तुओं में है। जीव भिन्न – भिन्न होते हैं उसी प्रकार आत्माएं भी भिन्न – भिन्न होती हैं।
  • आत्मा को कर्मों के बंधन से छुटकारा दिलाना निर्वाण कहा गया है।

सम्मेलन :

प्रथम जैन सम्मेलन

स्थानपाटलिपुत्र
समय300 ई.पू.
अध्यक्षस्थूलभद्र (शासक चन्द्रगुप्त मौर्य)
कार्यजैन धर्म के 12 अंगों का संपादन, जैन धर्म का

श्वेतांबर एवं दिगम्बर में विभाजन

द्वितीय जैन सम्मेलन

स्थानबल्लभी (गुजरात)
समय512 ई.
अध्यक्षदेवर्धा श्रमाश्रवण
कार्यधर्म ग्रंथों का अंतिम संकलन

कर लिपिबद्ध किया गया ।

जैन सम्प्रदाय :

  • चौथी सदी ई.पू. में मगध में 12 वर्ष़ों तक भयंकर अकाल पड़ा जिससे भद्रबाहु अपने शिष्यों के साथ कर्नाटक चले गये और स्थूलबाहु अपने शिष्यों के साथ मगध में ही रहा। भद्रबाहु के लौटने तक मगधा के भिक्षुओं की जीवनशैली में आया बदलाव विभाजन का कारण बना।
  • मगध में निवास करने वाले जैन भिक्षु स्थलबाहु के नेतृत्व में श्वेताम्बर कहलाये। ये श्वेत वस्त्र धारण करते थे।
  • जैन आचार्य भद्रबाहु के नेतृत्व में जैन भिक्षु दिगम्बर कहलाये। ये अपने को शुद्ध बताते थे और नग्न रहने में विश्वास करते थे।
  • पुजेरा, ढुंढिया आदि श्वेताम्बर के उपसंप्रदाय थे।
  • बीस पंथी, तेरापंथी तथा तारणपंथी दिगम्बर के उपसम्प्रदाय थे।
  • जैनों ने प्राकृत भाषा में विशेषकर शौरसेनी प्राकृत में अनेक ग्रंथों की रचना की।
  • जैन साहित्य को आगम कहा जाता है जिसमें 12 अंग, 12 उपांग, प्रकीर्ण, छंद्सूत्र आदि सम्मिलित हैं।
  • जैनियों के स्थापत्य कला में दिलवाड़ा मंदिर, माउंट आबू, खजुराहो में स्थित पार्श्वनाथ, आदिनाथ मंदिर प्रमुख हैं।

भागवत धर्म

  • छांदोग्य उपनिषद में वासुदेव कृष्ण का सर्वप्रथम उल्लेख है।
  • पाणिनी के व्याकरण में वासुदेव शब्द का उल्लेख प्राप्त होता है।
  • भागवत धर्म के प्रवर्तक सत्वत वंशी कृष्ण थे। इसके सिद्धान्तों के अनुसार विश्व की एकमात्र सत्ता कृष्ण है।
  • हेलियोडोरस ने वासुदेव के सम्मान में बेसनगर में एक गरुड़ धवज स्थापित किया था।

वैष्णव धार्म :

  • वैष्णव धर्म का उद्भव एवं विकास भागवत धर्म से संबंधित है। इस धर्म का मुख्य केन्द्र मथुरा था। गुप्तकाल वैष्णव धर्म का चरमोत्कर्ष काल था।
  • अवतारवाद के सिद्धान्त को वैष्णव मत के अंदर लोकप्रिय देवताओं को संयोजित कर और लोकप्रिय बनाया गया।
  • विष्णु के दस अवसतार :
  1. मत्स्य, 2. कूर्म, 3. वराह, 4. नृसिंह, 5. वामन, 6. परशुराम, 7. रामावतार, 8. कृष्णावतार, 9. बुद्ध, 10. कल्कि।
  • वैष्णव धार्म में ईश्वर को प्राप्त करने के तीन साधान-ज्ञान, कर्म एवं भक्ति में सर्वाधिक महत्व ‘भक्ति’ को दिया जाता है।
  • गुप्तकाल में वैष्णव धर्म संबंधी सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवशेष देवगढ़ (झांसी) का दशावतार मंदिर है।

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