पशु मेला –
- मल्लीनाथ पशु मेला – तिलवाड़ा (बाड़मेर) थारपारकर व कॉकरेच के लिए।
- गोमती सागर पशु मेला – झालरा पाटन (झालावाड़) हरियाणवी नस्ल के लिए वैशाख शुक्ला त्रयोदशी से ज्येष्ठ कृष्णा पचंमी तक।
- जसवंत पशु मेला – भरतपुर, अश्विन शुक्ला पंचमी से पूर्णिमा तक।
- बलदेव पशु मेला – मेड़ता सिटी (नागौर), नागौरी नस्ल के लिए चैत्र शुक्ला पूर्णिमा से वैशाख कृष्णा पचंमी तक।
- श्री तेजाजी पशु मेला – परबतसर (नागौर) श्रावण शुक्ला पूर्णिमा से भाद्रपद कृष्णा पंचमी तक।
- रामदेव पशु मेला – नागौर नागौरी बैल के लिए।
- पुष्कर मेला – अजमेर गिर नस्ल के लिए कार्तिक माह।
राजस्थान की अर्थव्यवस्था में पशुधान का महत्व –
- राजस्थान एक अर्द्धशुष्क प्रदेश है जहाँ 61% भाग मरूस्थल है, आजीविका का मुख्य स्त्रोत कृषि है।
- अकाल की निरंतरता या पुनरावृति के कारण आजीविका का दूसरा महत्वपूर्ण स्त्रोत पशुपालन हो जाता है जो राजस्थान की अर्थव्यवस्था में इसके महत्व को दर्शाता है।
- राज्य में पशुपालन से 13% राजस्व प्राप्ति व राज्य की GDP में 9-10% योगदान है।
- राजस्थान में देश के कुल दुग्ध उत्पादन का 10% , बकरा माँस 30% व चालीस प्रतिशत ऊन उत्पादन होता है।
- पशुओं से हमें पौष्टिक खाद्य पदार्थ प्राप्त होते है तथा संतुलित पोषण प्राप्त होता है।
- कृषि कार्यों में पशुओं का उपयोग खेत जोतने या हल चलाने हेतु, बोझा ढ़ोने हेतु, कुएँ से पानी निकालने के लिए होता है।
- ये सभी तथ्य राजस्थान में पशुओं के महत्व को इंगित करते है। अकाल के समय मरूक्षैत्र में आजीविका का महत्वपूर्ण स्त्रोत है।
राजस्थान में पशुधन विकास हेतु किए गए प्रयास –
- राजस्थान में पशुओं की नस्ल घटिया है। राज्य में पर्याप्त, पोष्टिक चारें व चारागाह का अभाव है। राज्य की पशुधन की उत्पादकता संपुर्ण भारत से कम है।
- पशुपालकों की अशिक्षा व निर्धनता, वैज्ञानिक प्रबंध का अभाव, सरकारी कार्यक्रमों का पूर्ण लाभ नहीं मिलना, अनार्थिक लाभ वाले पशुओं से लगाव के कारण पालना।
- सरकारी प्रयास – पशुपालन विभाग की स्थापना की गई (1957)।
- चारा विकास योजना – कृषकों को उन्नत व पौष्टिक चारे के बीज उपलब्ध कराए जाते हैं।
- नस्ल सुधार हेतु कृत्रिम गभौधान केंद्रों की स्थापना।
- पशुपालन शिक्षण व अनुसंधान कार्य पर बल।
- पौष्टिक पशु आहार उत्पादन केंद्रों की स्थापना।
- आधुनिक पशु चिकित्सालय की स्थापना।
- कृषकों के लिए पशुपालन पर ऋण, सब्सिडी, बीमा सुविधा।
- पशुधन तस्करी पर रोक हेतु कानून।
- डेयरी उद्योग की स्थापना व विकास।
- निशुल्क पशु दवाइयाँ का वितरण।
गोपाल योजना –
- ग्रामीण क्षैत्र में पशुओं की नस्ल सुधार के लिए कृत्रिम गर्भाधान का प्रावधान किया गया व एक व्यक्ति की नियुक्ति की गई जिसे गोपाल कहा गया।
उद्योग
- अर्थव्यवस्था के द्वितीयक क्षैत्र में निर्माण, विनिर्माण व विद्युत, जल व गैस आपूर्ति को शामिल किया जाता है इसे उद्योग क्षैत्र भी कहते है। आजादी के बाद राजस्थान की अर्थव्यवस्था में सेवा व उद्योग क्षैत्र में वृद्धि व कृषि क्षैत्र के योगदान में कमी आई है। वर्तमान में GDP में उद्योगों का योगदान 30% है।
- सूती वत्र उद्योग – कृषि के बाद द्वितीय सर्वाधिक रोजगार देने वाला उद्योग है। राजस्थान में सूती वस्त्र उद्योग तीनों क्षैत्रों में है – निजी, सार्वजनिक व सहकारी।
- गुलाबपुरा, गंगापुर (भीलवाड़ा) तथा हनुमानगढ़ की सहकारी स्पिनिंग मिल के साथ गुलाबपुरा की जिनिंग मिल को मिलाकर स्पिन फैड की स्थापना की गई।
- SPINFED राजस्थान राज्य सहकारी स्पिनिंग व जिनिंग मिल फेडरेशन, जयपुर, 1 अप्रैल 1993 (स्थापना)
- सेमकोर सेमटेल (द.कोरिया) कॉर्निग (USA)
राजस्थान की औद्योगिक नीतियाँ –
- औद्योगिक नीति, 1978 खादी व ग्रामोद्योग पर बल।
- औद्योगिक नीति, 1990-91 कृषि एवं खनन पर बल।
- औद्योगिक नीति, 1994 निजीकरण को बढ़ावा दिया गया।
- औद्योगिक नीति, 1998 निवेश को आकर्षित करना।
- राजस्थान औद्योगिक व निवेश प्रोत्साहान नीति – 2010 राजस्थान में आर्थिक विकास को तीव्रता प्रदान करने व निवेश बढ़ाने हेतु इसकी घोषणा की गई, इसमें निम्नलिखित प्रावधान किए गए।
- आधारभूत संरचना का विकास – राजस्थान में औद्योगिक विकास की प्रमुख बाधा अल्प विकसित आधारभूत ढाँचा है। इसके विकास हेतु 12वीं पंचवर्षीय योजना में ऊर्जा पर सर्वाधिक बल दिया गया। साथ ही विभिन्न योजनाओं से सड़क व परिवहन विकास भी सुनिश्चित किया गया।
- मानव संसाधान का विकास – राजस्थान की जनसंख्या को शिक्षा व स्वास्थ्य के बेहतर अवसर प्रदान करके संसाधन में परिवर्तित किया जाएं जिससे कार्यकुशलता व उत्पादकता में वृद्धि हो। इसके लिए उच्च शिक्षण संस्थाओं की स्थापना व स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार किया गया।
- रिकों के अन्तर्गत सरकारी व पड़त जमीन का विवरण लैण्ड बैंक के रूप में संकलित किया गया जिससे निवेश में शीघ्रता आ सके।
- सिंगल विंडो का प्रावधान – उद्योगों की स्थापना को पारदर्शी व त्वरित बनाने हेतु निवेश सम्बंधी सभी औपचारिकताओं को एक ही स्थान पर पूरा करने हेतु एकल विंडों एक्ट बनाया गया (2010) इसके तहत निवेश की औपचारिकताओं के 3 स्तर तय किए गए।
(i) कलेक्टर 1 से 3 करोड़ तक के निवेश।
(ii) मुख्य सचिव 3 से 25 करोड़।
(iii) मुख्यमंत्री 25 करोड़ से अधिक।
- निवेश को बढावा देने के लिए उद्योगों से संकलित कर राजस्व का 50% अनुदान दिया जाता है। इसके दो भाग किए जाते है।
(i) 30% निवेश प्रोत्साहान हेतु।
(ii) 20% रोजगार संवर्धन के लिए।
- सुझाव – उद्योगों के लिए वितीय संसाधनों का विस्तार किया जाए।
- राज्य में औद्योगिक वातावरण या कार्यसंस्कृति का विकास किया जाए।
- राजनीतिक स्थिरता लाना।
- थ्रस्ट क्षैत्रों में निवेश को बढ़ाना, मुख्यतः विनिर्माण क्षैत्र का विकास करना। (विनिर्माण – कच्चा माल पुनः प्राप्त ना हो)