राजस्थान राज्य सहकारी दुग्ध उत्पादन संघ (Rajasthan Co-operation Dairy Fedration -RCDF) – द्वारा खाले गये केन्द : 1977 में स्थापना
- गौसंवर्द्धन फार्म – बस्सी-सीमन बैंक (हिमीकृत वीर्य बैंक) – बस्सी (जयपुर) व नारवा खिंचियान (जोधपुर)।
- स्वामी केशवानन्द कृषि विश्वविद्यालय बीकानेर – द्वारा खोले गये अनुसंधान केन्द्र :
(i) गोवत्स परिपालन केन्द्र – नोहर (हनुमानगढ़) – राठी नस्ल के लिए।
(ii) Bull Mother फार्म – चाँदन गांव (जैसलमेर)।
महाराणा प्रताप कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय (उदयपुर) के द्वारा स्थापित केन्द्र :
- भैंस प्रजनन एवं अनुसंधान केन्द्र – वल्लभनगर (उदयपुर)।
- भेड़ व ऊन विभाग (पशुपालन विभाग – 1957) : भेड़ व ऊन विभाग अलग से 1963 में खोला गया तथा 2000-01 में इसका विलय पशुपालन विभाग में कर दिया गया।
भेड़ व ऊन विभाग ने 4 फार्म खोले थे :
- फतेहपुर (सीकर) 2. बांकलिया 3. जयपुर 4. चित्तौड़गढ़।
- भेड़ व प्रजनन फार्म बांकलिया (नागौर) की इकाई फतेहपुर (सीकर) में स्थानान्तरित कर खोली गई।
- 2001 में जयपुर व चित्तौड़गढ़ दोनों बंद किये गये।
- भेड़ व ऊन प्रशिक्षण संस्थान – जयपुर (1963) :
- एशिया की सबसे बड़ी ऊन मण्डी – बीकानेर में।
- केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड – जोधपुर (1987) में।
- केन्द्रीय ऊन विश्लेषण प्रयोगशाला – बीकानेर में।
- राजस्थान पशुधन विकास बोर्ड (Rajasthan Livestock Development Board-RLDB) – जयपुर। इसकी स्थापना 25 मार्च, 1998 में की गई।
- राजस्थान पशुपालक विकास बोर्ड (जयपुर) 13 अप्रेल, 2005।
- राजस्थान की सबसे बड़ी गौशाला – पथमेड़ा (सांचौर-जालौर)।
- राजस्थान गौशाला संघ का मुख्यालय – पिंजरापौल गौशाला, सांगानेर-जयपुर।
- गौसदन नामक दो गौशालाएं – दौसा व कोड़मदेसर में।
- पशु पोषाहार संस्थान – जामडोली (जयपुर)।
- पशु पोषाहार संयंत्र – RCDF द्वारा जोधपुर, लालगढ़ (बीकानेर), नदबई (भरतपुर), तबीजी (अजमेर) में स्थापित।
- राजफेड (राजस्थान राज्य सरकारी क्रय-विक्रय संघ) द्वारा झोटवाड़ा (जयपुर) में स्थापित।
- वृहद चारा बीज उत्पादन फार्म – केन्द्र सरकार द्वारा मोहनगढ़ (जैसलमेर) में स्थापित।
पशु मेले
- मल्लीनाथ पशु मेला– तिलवाड़ा (बाड़मेर) में वि.सं. 1431 को प्रारम्भ। सबसे प्राचीन मेला, राजस्थान सरकार के पशु पालन विभाग द्वारा पहली बार 1957 में राज्य स्तरीय दर्जा। यह चैत्र कृष्णा 11 से चैत्र शुक्ला 11 तक।
- बलदेव पशु मेला– बलदेव राम मिर्धा की स्मृति में। मेड़ता सिटी (नागौर) में 1947 से प्रारम्भ। राज्य सरकार द्वारा 1957 से। यह चैत्र शुक्ला प्रतिपाद से चैत्र पूर्णिमा (15 दिन) तक।
- गोमती सागर पशुमेला – झालरापाटन में, 1959 से राज्य सरकार द्वारा प्रारम्भ। यह वैशाख शुक्ला 13 से ज्येष्ठ कृष्ण 5 तक (8 दिन)।
- तेजाजी पशु मेला– आय की दृष्टि से राज्य का सबसे बड़ा मेला। परबतसर (नागौर) में वि.सं. 1791 में महाराजा अजीत सिंह द्वारा प्रारम्भ। 1957 से राज्य सरकार द्वारा प्रारम्भ। यह श्रावण पूर्णिमा से भाद्रपद पूर्णिमा (1 माह) तक।
- गोगाजी पशु मेला– गोगामेड़ी (नोहर) हनुमानगढ़ में 1959 से प्रारम्भ और यह श्रावण पूर्णिमा से भाद्र पूर्णिमा (1 माह) तक।
- जसवंत पशु प्रदर्शिनी– भरतपुर में 1958 से प्रारम्भ। आश्विन शुक्ला 5 से आश्विन शुक्ला 14 तक।
- पुष्कर पशु मेला (कार्तिक पशु मेला) – अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का मेला। अजमेर में 1963 से प्रारम्भ। यह कार्तिक शुक्ला 8 से मार्ग शीर्ष कृष्णा द्वितीया तक (नवम्बर में)।
- चन्द्रभागा पशु मेला– झालरापाटन में 1958 से प्रारम्भ। कार्तिक शुक्ला 11 से मार्ग शीर्ष कृष्णा 5 तक।
- रामदेव पशु मेला– महाराजा उम्मेद सिंह ने 1958 में प्रारम्भ किया। यह नागौर (मानासरगांव) में माघ शुक्ला 1 से माघ पूर्णिमा (15 दिन) तक।
- महाशिव रात्रि पशु मेला (माल मेला) – करौली में 1959 से प्रारम्भ यह फाल्गुन कृष्ण 5 से फाल्गुन कृष्णा 14 तक लगता है।
- भावगढ़ बन्ध्या (खलकानी माता का मेला) – गधों का सबसे बड़ा (रियासत कालीन मेला)। यह लुणियावास, सांगानेर (जयपुर) में 1993 से राज्य सरकार द्वारा प्रारम्भ। आ.शु. 7 से 11 तक।
पशु विकास से सम्बन्धित योजनाएँ :
- गोपाल योजना– पशु नस्ल सुधार के लिए 2 अक्टूबर, 1990 से 10 जिलों में प्रारम्भ की थी। राज. के द.पू. जिलो में संचालित।
- चयनित ग्रामीण युवक जो दसवीं पास हो गोपाल कहलाता है।
- कामधेनु योजना– गौशालाओं के उन्नत नस्ल के पशु उपलब्ध कराने के लिए व कृत्रिम गर्भाधान के लिए। यह 1997-98 में, सभी गौशालाओं में प्रारम्भ।
- राष्ट्रीय गाय–भैंस परियोजना– गाय-भैंस में कृत्रिम गर्भाधान द्वारा नस्ल सुधार के लिए। यह 2001 में प्रारम्भ। पहले 20 जिलों में अब सभी जिलों में चल रही है। दस साल के लिए चलाई गई है।
- वेटनरी कॉलेज– पहला सरकारी वेटनरी कॉलेज 1954 में बीकानेर में खोला गया तथा निजी क्षेत्र का पहला वेटनरी कॉलेज अपोलो कॉलेज जयपुर में 2002 में प्रारम्भ।
दुग्ध उत्पादन (डेयरी) :
- 1970-71 में डेयरी कार्यक्रम वर्गीज कुरियन आणन्द [आनन्द (गुजरात)] नामक स्थान पर अमूल (Amul) डेयरी की स्थापना से प्रारम्भ किया गया।
- इसे श्वेत क्रांति की शुरूआत कहा जाता है। वर्गीज कुरियन को श्वेत क्रांति का जनक कहा जाता है।
- इस कार्यक्रम की सफलता को देखकर राजस्थान सहित 10 राज्यों में ’Operation Flood’ शुरू किया गया। इसके तीन चरण थे- (i) 1971 से 1978 तक (ii) 1978 से 1986 तक (iii) 1986 से 1994 तक।
- वर्तमान में डेयरी विकास कार्यक्रम का संस्थागत ढांचा त्रिस्तरीय है।
- शीर्ष स्तर पर (RCDF)राजस्थान सहकारी डेयरी फेडरेशन, स्थापना-1977, मुख्यालय जयपुर।
- जिला स्तर पर –जिला दुग्ध उत्पादक संघ (वर्तमान में 21) जिला डेयरी संघ – 19 (16 + 3 + 2)। नागौर, बांसवाड़ा तथा बाड़मेर + टोंक, चित्तौड़गढ़।
- प्राथमिक स्तर –वर्तमान में 11,421 दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियां ग्राम स्तर पर पंजीकृत हैं।
- भारत विश्व में दुग्ध उत्पादन में प्रथम है।
- भारत में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन वाले तीन राज्य – उत्तरप्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब।
- राजस्थान में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन वाले तीन जिले – जयपुर, अलवर तथा श्रीगंगानगर।
- राजस्थान में सबसे पहले 1975 में राजस्थान डेयरी विकास निगम की स्थापना की गई फिर इसे 1977 में RCDF में बदल दिया गया।
- यह त्रिस्तरीय व्यवस्था के आधार पर दुग्ध उत्पादन करती है- RCDF शीर्ष संस्था तथा
- दो नये डेयरी संघ प्रस्तावित – टोंक व चित्तौड़गढ़।
दुग्ध उत्पादन सहकारी समितियाँ :
- पहली महिला डेयरी भोजूसर (बीकानेर) में 1992 में स्थापित। वर्तमान में राजस्थान के 20 जिलों में महिला डेयरी परियोजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है।
- राजस्थान की सबसे पुरानी डेयरी – पद्मा डेयरी, अजमेर।
- वर्तमान की चार प्रमुख डेयरी – सरस (जयपुर), उरमूल (बीकानेर), वरमूल (जोधपुर) तथा गंगमूल (श्रीगंगानगर) में।
- सबसे बड़ी डेयरी – रानीवाड़ा (जालौर) में 1986 में स्थापित।
- प्रस्तावित पहली मेट्रो डेयरी जिसमें 1 लाख लीटर/दिन की उत्पादन क्षमता होगी – बस्सी, (जयपुर)।
- सात दुग्ध पाउडर संयंत्र – हनुमानगढ़, बीकानेर, जयपुर, अलवर, अजमेर, रानीवाड़ा (जालौर) तथा जोधपुर में।
- बतख–चूजा उत्पादन केन्द्र– बांसवाड़ा में।
- 2009-10 में दुग्ध संकलन 15.50 लाख लीटर प्रतिदिन रहा।
- विपणन – 14.98 लाख लीटर प्रतिदिन रहा। शेष का दुग्ध पाऊडर बनाया गया।
- सघन डेयरी विकास परियोजना केन्द्र सरकार के द्वारा 9 जिलों में प्रस्तावित है। इसका प्रारम्भ झालावाड़ से प्रस्तावित है।
- देव नारायण योजना – राज्य के पांच जिलों में सवाई माधोपुर, करौली, धोलपुर, अलवर, झालावाड़ में आर्थिक विकास हेतु डेयरी परियोजना चलायी जा रही है।