1857 की क्रांति
- 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में हुए सैनिक विद्रोह को भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की शुरूआत माना जाता है।
- 1857 के विद्रोह में राजस्थान के अधिकांश राजाओं ने विद्रोह से पृथक रहते हुए विद्रोह दमन में अंग्रेजों की सहायता की।
- 19 मई, 1857 को ए.जी.जी. लॉरेन्स को मेरठ विद्रोह की सूचना आबू में मिली।
- राजस्थान में जगह-जगह अंग्रेजी सेना के केन्द्र थे, लेकिन इनमें अंग्रेज सैनिक नहीं थे। देवली में कोटा कन्टिजेन्ट, ब्यावर में मेर रेजीमेन्ट, एरिनपुरा में जोधपुर लीजन, खैरवाड़ा में भील कोर तथा नसीराबाद में बंगाल नेटिव इन्फैन्ट्री थी। इन सभी छावनियों में भारतीय सैनिकों की संख्या लगभग 5000 थी।
- क्रांति के समय गुजरात के डीसा से अंग्रेज सैनिक बुलाये गये थे।
- 1857 के विद्रोह के समय राजपूताने में छः ब्रिटिश सैनिक छावनियां नसीराबाद (अजमेर), नीमच (मध्यप्रदेश), ब्यावर (अजमेर), एरिनपुरा (पाली), देवली (टोंक) व खैरवाड़ा (उदयपुर) थी।
- विद्रोह के समय राजपूताने के ए.जी.जी. (एजेन्ट टू गवर्नर जनरल) जॉर्ज पेट्रिक लॉरेन्स थे। भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड केनिंग था। मारवाड़ में मोकमेसन, मेवाड़ में मेजर शावर्स, कोटा में मेजर बर्टन व जयपुर में कर्नल ईडन पॉलिटिकल एजेंट थे।
नसीराबाद छावनी
- अजमेर राजस्थान में ब्रिटिश सत्ता का प्रमुख केन्द्र था। यहाँ भारी मात्रा में गोला-बारूद, सरकारी खजाना, सम्पत्ति तथा कार्यालय थे। यह सब क्रांतिकारियों के हाथों में पड़ जाने पर उनकी स्थिति अधिक मजबूत होने का भय था।
- राजस्थान के ए जी जी. सर पैट्रिक लॉरेन्स ने अजमेर की सुरक्षा हेतु वहाँ नियुक्त 15वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री को नसीराबाद भेजकर ब्यावर से दो मेर पलटने अजमेर बुलवा ली। साथ ही इसने कोटा कन्टिन्जेन्ट और डीसा (गुजरात) से यूरोपियन पलटन अजमेर भेजे जाने के आदेश दे दिए।
- अजमेर से बंगाल नेटिव इन्फैन्ट्री हटाये जाने तथा मेर पलटन को वहाँ नियुक्त कि जाने को लेकर 15वीं बंगाल नेटिव इंफैन्ट्री के सैनिकों में असंतोष बढ़ने लगा।
- इस समय दिल्ली, बंगाल तथा अवध के संदेशवाहक साधुओं तथा फकीरों के वेश में बाजारों में घुम रहे थे। ये लोग चर्बी वाले कारतूसों को विषय बनाकर सैनिकों को धर्म युद्ध के लिए प्रेरित कर रहे थे। इसी समय सरकार ने चर्बी वाले कारतूसों का विरोध होने के कारण इसके प्रयोग को बंद करने के आदेश दिए जिससे सैनिकों का संदेह और भी दृढ़ हो गया।
- नसीराबाद में विद्रोह के प्रमुख कारणों में सैनिकों पर अविश्वास, चर्बी वाले कारतूसों के प्रयोग की अफवाह व आटे में हड्डियों का चुरा मिलाया जाना (तात्कालिक कारण) था।
- इन सभी बातों को ध्यान में रखकर संभावित संघर्ष को टालने के लिए अंग्रेज अधिकारियों ने अंग्रेज सैनिक व बम्बई लांसर्स को नसीराबाद छावनी में गश्त लगाने का निर्देश दिया। यही नहीं उन्होंने तोपों में गोले भरवाकर तैनात कर दिये। अंग्रेज अधिकारियों के बंगाल इंफैन्ट्री के संभावित खतरे के विरूद्ध इन एहतियाती प्रबंधों ने सैनिकों को भड़का दिया। फलस्वरूप नसीराबाद छावनी में 28 मई, 1857 को 15वीं नेटिव इंफैन्ट्री के बख्तावरसिंह के नेतृत्व सैनिकों ने तोपखाने के सैनिकों को अपनी ओर मिलाकर विद्रोह कर दिया तथा तोपों पर अधिकार कर लिया। 30 मई को 30वीं नेटिव इंफैन्ट्री में भी असंतोष फूट पड़ा। छावनी को लूट लिया गया तथा अंग्रेज अधिकारियों के बंगलों पर आक्रमण कर दिया। एक अधिकारी न्यूबरी के सैनिकों ने टुकड़े कर दिये। खजाना लूटकर सैनिकों ने वेतन के रूप में आपस में बांट लिया।
- क्रांतिकारी सैनिकों ने छावनी को तहस-नहस करने के बाद दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। इन सैनिकों ने 18 जून को दिल्ली पहुँचकर वहाँ पर अंग्रेजी सेना पर आक्रमण कर उसे पराजित किया।
- अंग्रेज अधिकारी वाल्टर व हीथकोट ने मेवाड़ के सैनिकों की सहायता से इनका पीछा किया परन्तु उन्हें सफलता प्राप्त नहीं हुई संभवतः इसका कारण यह था कि मेवाड़ व मारवाड़ के जागीरदारों ने नसीराबाद के विप्लवकारियों को अपने प्रदेश में से आसानी से गुजर जाने दिया। यह तथ्य इस बात का संकेत है कि राजस्थान के जागीरदारों तथा जनसाधारण की सहानुभूति इन सैनिकों के साथ थी।