राजस्थान सामान्य ज्ञान : मुगल साम्राज्य

हुमायूं (1530-1556) :

  • हुमायूं 1530 में 23 वर्ष की आयु में आगरा में गद्दी पर बैठा।
  • उसके सामने अनेक समस्याएं थीं-प्रशासन को सुगठित करना, आर्थिक स्थिति ठीक करना, अफगानों को पूरी तरह दबाना तथा पुत्रों में राज्य बांटने की तैमूरी प्रथा।
  • हुमायूं का छोटा भाई कामरान काबुल और कंधार का प्रशासक था।
  • कामरान ने लाहौर तथा मुल्तान पर आधिपत्य जमा लिया।
  • 1531 में कालिंजर अभियान के अंतर्गत हुमायूं ने बुंदेलखंड के कालिंजर दुर्ग पर घेरा डाला।
  • हुमायूं तथा महमूद लोदी के बीच दोहरिसा का युद्ध हुआ जिसमें महमूद लोदी पराजित हुआ।
  • हुमायूं दिल्ली के निकट दीनपनाह नामक नया शहर बनवाने में व्यस्त रहा जो बहादुरशाह की ओर से आगरे पर खतरा पैदा होने की स्थिति में यह नया शहर इसकी राजधानी के रूप में काम आता।
  • इसी बीच बहादुरशाह ने अजमेर, पूर्वी राजस्थान को रौंद डाला। चित्तौड़ पर आक्रमण किया तथा इब्राहिम लोदी के चचेरे भाई तातारा खां को सैनिक तथा हथियारों से सहायता दी।
  • लेकिन हुमायूं ने जल्द ही तातार खां की चुनौती समाप्त कर दी तथा बहादुरशाह के अंत के लिए मालवा पर आक्रमण कर दिया।
  • मांडू किले को पार करने वाला हुमायूं 41वां व्यक्ति था।
  • मालवा और गुजरात का समृद्ध क्षेत्र हुमायूं के अधीन आ गया।
  • मांडू तथा चम्पानेर के किले पर भी हुमायूं का अधिकार हो गया।
  • आगरा से हुमायूं की अनुपस्थिति के दौरान शेर खां ने 1535-37 तक अपनी स्थिति मजबूत बना ली तथा वह बिहार का निर्विरोध स्वामी बन गया।
  • शेर खां ने बंगाल के सुल्तान को पराजित किया।
  • 1539 में चौसा की लड़ाई में हुमायूं शेर खां से पराजित हुआ।
  • मई 1540 में कन्नौज की लड़ाई में अस्करी तथा हिन्दाल कुशलतापूर्वक लड़े लेकिन मुगल पराजित हुए।
  • हुमायूं अब राज्यविहीन राजकुमार था क्योंकि काबुल और कंधार कामरान के अधीन था।
  • अगले ढ़ाई वर्ष तक हुमायूं सिंध तथा पड़ोसी राज्यों में घूमता रहा लेकिन न तो सिंध के शासक और न ही मारवाड़ के शासक मालदेव ही उसकी सहायता के लिए तैयार था।
  • अंततः हुमायूं ने ईरानी शासक के दरबार में शरण ली तथा 1545 में उसी की सहायता से काबुल तथा कंधार को प्राप्त किया।
  • हुमायूं 1555 में सूर साम्राज्य के पतन के बाद दिल्ली पर पुनः अधिकार करने में सफल हुआ।
  • दिल्ली में अपने पुस्तकालय (दीनपनाह भवन) की इमारत की पहली मंजिल से गिर जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई।
  • हुमायूं सप्ताह के सात दिन, अलग-अलग रंग के कपड़े पहनता था। हुमायूं का मकबरा दिल्ली में हाजी बेगम द्वारा बनवाया इसे ताजमहल का पूर्वगामी भी कहा जाता है।

शेर खां (1540-45) :

  • शेर खां का वास्तविक नाम फरीद था। उसके पिता जौनपुर में जमींदार थे।
  • 1544 में अजमेर तथा जोधपुर के बीच सूमेल नामक स्थान पर राजपूत और अफगान सरदारों के बीच संघर्ष हुआ जिसमें राजपूत सेना पराजित हुई।
  • शेरशाह/शेर खां का अंतिम अभियान कालिंजर (बुंदेलखण्ड) के किले के विरुद्ध हुआ।
  • शेरशाह का उत्तराधिकारी उसका दूसरा पुत्र इस्लामशाह हुआ।
  • लेकिन हुमायूं ने 1555 में जबरदस्त लड़ाइयों में अफगानों को पराजित कर दिल्ली और आगरा पुनः जीत लिया।
  • शेरशाह के शासनकाल में आय का सबसे बड़ा स्रोत भू-राजस्व था।
  • रोहतासगढ़ दुर्ग का निर्माण शेरशाह ने करवाया। सड़क-ए-आजम (ग्रांड ट्रंक रोड़) बंगाल में सोनार गाँव से दिल्ली लाहौर होती हुई पंजाब में अटक तक जाती थी।
  • भू-राजस्व का निर्धारण भूमि की पैमाइश पर आधारित था।
  • राज्य कर का भुगतान नकदी में चाहता था लेकिन यह काश्तकारों पर निर्भर था कि वे कर नकद में दें या अनाज के रूप में।
  • शेरशाह ने भूमि की पैमाइश हेतु 32 अंक वाले सिकंदरी गज तथा सन की डंडी का प्रयोग किया।
  • मुद्रा सुधार के क्षेत्र में शेरशाह ने 178 ग्रेन का चांदी का रुपया तथा 380 ग्रेन का ताम्बे का दाम चलाया।
  • इस्लामशाह ने इस्लामी कानून को लिखित रूप दिया।
  • इस्लामशाह ने सैनिकों को नकद वेतन देने की प्रथा चलाई।
  • सहसाराम (बिहार) स्थित शेरशाह का मकबरा, जो उसने अपने जीवनकाल में निर्मित करवाया था, स्थापत्य कला की पराकाष्ठा है।
  • शेरशाह ने दिल्ली के निकट यमुना के किनारे एक नया शहर बनाया। जिसमें अब केवल पुराना किला तथा उसके अंदर एक मस्जिद सुरक्षित है।
  • मलिक मुहम्मद जायसी की श्रेष्ठ रचना पद्मावत शेरशाह के शासनकाल में ही रची गयी।
  • हिन्दुओं से जजिया लिया जाता रहा तथा सभी सरदार लगभग अफगान थे।
  • घोड़ों को दागने की प्रथा पुनः चलाई गयी।
  • मारवाड़ के बारे में शेरशाह का कथन-मैंने मुट्ठीभर बाजरे के लिए दिल्ली के साम्राज्य को लगभग खो दिया था।
  • मच्छीवाड़ा (मई 1555) तथा सरहिन्द युद्ध (जून 1555) के बाद हुमायूं ने अपने प्रदेशों को पुनः प्राप्त किया।

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