- मुर्राह (खुंडी)
- राजस्थान में सर्वाधिक पाई जाने वाली भैंस। मूल उत्पत्ति स्थल- मांटगुमरी जिला (पंजाब-पाकिस्तान)। दूध देने में सर्वोत्तम।
- जयपुर, उदयपुर, अलवर, गगांनगर, भरतपुर
- मेहसाना
- जालौर, सिरोही, मूलतः गुजरात की।
- सूरती
- सिरोही, उदयपुर, मूलतः गुजरात की।
- जाफराबादी
- डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, मूलतः गुजरात का काठियावाड़
- नागपुरी
- सींग पतले व लम्बे होते हैं। कोटा, बारां, झालावाड़ में।
- भदावरी
- मूलतः भदोही (उत्तर प्रदेश) की। भरतपुर, धौलपुर में, टांगें छोटी होती है।
- नागौर के एक गांव ‘बासनी‘ का ‘नूर मोहम्मद मारवाड़ी‘ मुम्बई में भैंसो के लिए प्रसिद्ध है। इसे अभी पुरस्कृत किया गया है।
- बकरी
- बकरी विकास एवं चारा उत्पादन परियोजना जो स्विट्जरलैण्ड सरकार के वित्तीय सहयोग से राजस्थान में 1981-82 में प्रारम्भ की गई।
- बकरी सर्वाधिक -: बाड़मेर, जोधपुर। न्यूनतम-: धौलपुर।
- बकरी को गरीब की गाय कहा जाता है।
- बीतल बकरी की नस्ल हैं।
- अलवरी –
- मूलतः उत्पत्ति गांव-झखराणा (बहरोड़-नारनौल मार्ग पर) है। झखराणा गांव पहलवानों के लिए प्रसिद्ध है। आकार में बड़ी व काले रंग।
- विशेषताएँ- दूध के लिए प्रसिद्ध, कान बहुत लम्बे, जन्म के डेढ़ माह बाद काट देते हैं।
- परबतसरी –
- बकरी प्रजनन एवं चारा अनुसंधान केन्द्र रामसर (अजमेर) में स्विटजरलैण्ड की नस्ल बीटल व भारतीय नस्ल सिरोही के संकरण से इसे उत्पन्न किया गया है। दूध के लिए अच्छी है।
- मारवाड़ी (लोही) –
- सबसे अधिक क्षेत्र में सर्वाधिक संख्या में पाई जाती है। यह मांस व दूध दोनों के लिए उपयुक्त है। जोधपुर, बाड़मेर, जालौर, पाली इत्यादि जिलों में पाई जाती है।
- सिरोही –
- सिरोही व उदयपुर में उपस्थित। मांस के लिए उपयुक्त।
- आकार – मध्यम व शरीर गठीला।
- जमनापरी –
- साधारण नस्ल।
- कोटा, बूंदी, झालावाड़। मांस व अधिक दूग्ध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध।
- बरबरी –
- भरतपुर संभाग, दूध के लिए उपयुक्त।
- शेखावाटी –
- CAZRI के द्वारा विकसित। बिना सींग की नस्ल। दूध अच्छा देती है।
- नागौर का ‘वरूण‘ गांव बकरियों के लिए प्रसिद्ध।
- बकरी के मांस को चेवण कहते हैं।
- सीकर जिले का बलेखण गांव भी बकरियों के लिए प्रसिद्ध है।
- बकरी के बालों से बनायी जाने वाली रस्सी (जेवड़ी) को जटपट्टी कहा जाता है। जो जसोल, बाड़मेर की प्रसिद्ध है।