- गौवंश
- राजस्थान राज्य गौ सेवा आयोग का गठन 23 मार्च, 1995 को किया गया।
- भारत की समस्त गायों का लगभग 6.98 प्रतिशत भाग राजस्थान में पाया जाता है (देश में 5वाँ स्थान)।
- 2012 में 133.24 लाख गौवंश है जो 2007 की तुलना में 9.94% अधिक है। राज्य के कुल पशु धन का 23.08% है।
- सर्वाधिक उदयपुर में तथा न्यूनतम धौलपुर में।
- थारपारकर – पश्चिमी
- मूल उत्पत्ति स्थल – मालाणी गांव, गुढ़ा के पास (बाड़मेर)।
- जिले- जैसलमेर, बाड़मेर में मुख्यतः तथा जोधपुर व बीकानेर के कुछ भागों में।
- द्विकाजी नस्ल- गायें अच्छा दूध देती है व बैल अच्छा कार्य करती है।
- पूँछ सर्वाधिक लम्बी होती है आखरी सिरे पर बाल कम होते हैं। अधिक दूध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध।
- राठी–
- गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर व चुरु। लालसिंधी व साहीवाल के संकरण से राठी नस्ल की उत्पत्ति हुई। उ. प. राजस्थान
- द्विकाजी नस्ल है। दूध- सर्वोत्तम, राजस्थान की कामधेनू कहते हैं।
- हरियाणवी –
- चूरू, हनुमानगढ़, सीकर, झुन्झुनूं, जयपुर, अलवर (बहरोड़) आदि जिलों में।
- कान सबसे छोटे होते हैं। मस्तक पर एक छोटी हड्डी उभरी रहती है।
- पिछला भाग, अगले भाग से ऊँचा होता है। अगले स्तन पिछले स्तनों से बड़े होते हैं।
- नागौरी :
- उत्पत्ति स्थल-नागौर का सुहालक प्रदेश (नागौर के 12 गांवों में)।
- इसका बैल सर्वोत्तम होता है। दोड़ने में तेज, भारवहन, कृषि कार्यो में उत्तम।
- रंग सफेद सुर्ख होता है, ज्वार (प्रोटीन बहुलता) के चारे के कारण अधिक ताकतवर होते हैं।
- मेवाती (कोठी) –
- अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली।
- शांत स्वभाव का बैल, गर्दन झालरदार (लटकी) हुई होती है।
- इस गौवंश का क्षेत्र रथ क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।
- कांकरेज – उत्पति स्थल-: कच्छ का रन (गुजराज)
- मुख्यतः जालौर के नेहड़ क्षेत्र में, पाली, सिरोही आदि में।
- द्विकाजी प्रकार की नस्ल। भारवहन व दूग्ध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध
- अजमेरा, गिर, रेंडा (द. प. राजस्थान)
- मूल उत्पत्ति स्थल – गिर-गुजरात, पाली, अजमेर,किशनगढ़, भीलवाड़ा, राजसमंद । यह चकत्तेदार होती है। गायें-अच्छी। अधिक दूध के लिए प्रसिद्ध।
- छोटी/बड़ी मालवी (द. पू. मध्यवर्ती)
- झालावाड़ का आस-पास – छोटी मालवी, शेष क्षेत्र में बड़ी मालवी।
- गायों की छोटी टांगें होती है। बैल भार वहन में अच्छे होते हैं।