Rajasthan GK || Indian Polity and Economy || न्यायपालिका (JUDICIARY)

 प्रशासनिक अधिकरणों का प्रावधान (CAT)- 

  • 42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान के भाग-14 (A) में 323 (A) और 323 (B) जोड़ा गया।
  • अनुच्छेद-323 (A) के अंतर्गत् संसद विधि ऐसे प्रशासनिक अधिकरणों का निर्माण करे, जिसके द्वारा संघ और राज्यों में नियुक्त लोकसेवकों की भर्ती और सेवा संबंधी मुद्दों को सुलझाया जा सके।
  • इसके अंतर्गत् संसद ने 1985 में प्रशासनिक अधिकरणों की स्थापना की। (प्रशासनिक अधिकरण संवैधानिक निकाय हैं)
  • इसके अंतर्गत् विभिन्न राज्यों में राज्य, प्रशासनिक अधिकरण और संघीय स्तर पर केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण का निर्माण किया गया।
  • चंद्र कुमार वाद के पश्चात् इन अधिकरणों के निर्णय के विरूद्ध उच्च न्यायालय में भी अपील की जा सकती है। पहले सीधे उच्चतम न्यायालय में अपील का प्रावधान था।

केद्रीय प्रशासनिक अधिकरण की अधिकारिता से बाहर सेवक-

  • निम्नलिखित कर्मचारी केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण की अधिकारिता के अंतर्गत् नहीं आते हैं-

(i) सेना के कर्मचारी।

(ii) लोक सभा एवं राज्य सभा सचिवालय के सेवक।

(iii) उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के पदाधिकारी।

अनुच्छेद-323 (B)-

  • विधायिकाओं को यह अधिकार है, कि वे निम्नलिखित मामलों को सुलझाने हेतु अधिकरणों का निर्माण कर सकती हैं-

(i) करारोपण से संबंधित विवाद।

(ii) विदेशी विनिमय और आयात-िनर्यात विवाद।

(iii) औद्योगिक और श्रमिक विवादों का समाधान।

(iv) भूमि सुधार एवं अधिग्रहण से संबंधित वाद।

(v) शहरी संपत्ति की सीलिंग।

(vi) संसद या विधान सभाओं से संबंधित विवादों का समाधान।

संरचना-

  • इसके मुख्य बेंच नई दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई में स्थित है।
  • केन्द्रीय प्रशासन अधिकरण में एक अध्यक्ष तथा एक उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य होते हैं।
  • अध्यक्ष उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की योग्यता वाला व्यक्ति होना चाहिए।
  • केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरणों के अध्यक्ष का कार्यकाल 5 वर्ष अथवा 68 वर्ष होता है।
  • सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष अथवा 65 वर्ष का होना चाहिए।
  • अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से होती है।
  • राज्य अधिकरण के सदस्य के नियुक्ति राष्ट्रपति संबंधित राज्य के राज्यपाल की सलाह से करता है।
  • राज्य प्रशासनिक अधिकरणों के अध्यक्ष का कार्यकाल 65 वर्ष तथा सदस्यों का कार्यकाल 62 वर्ष का होता है।

ग्रीन बेंच-

  • ग्रीन न्यायालय, पर्यावरणीय समस्याओं की उपज है। वर्ष-1990 के दशक में पर्यावरणीय मुद्दे समाज के समक्ष गंभीरता से उभरे एवं संवेदनशील न्यायपालिका ने विभिन्न वादों में पर्यावरण हितैषी निर्णय दिया। इसी के अगले चरण के रूप में ग्रीन बेंच की स्थापना हुई। वर्तमान समय में न्यायालय में पर्यावरण से संबंधित विवादों की तीव्र वृद्धि हो रही है। भूमि अधिग्रहण, तीब्र औद्योगिकरण, माइनिंग आदि कारणों से किसान तथा अन्य जनता न्यायालय के द्वारा अपने अधिकारों की माँग कर रहे हैं। इन सब विवादों को देखते हुए मुख्य न्यायाधीश (सर्वोच्च न्यायालय) ने ग्रीन बेंचस्थापित करने का निर्णय लिया। यह बेंच केवल पर्यावरणीय मामलों को सुनेगी।

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण इसकी स्थापना 2010 में हुई।

उद्देश्य-

  • पर्यावरणीय संरक्षण तथा वन के संरक्षण से संबंधित वादों को त्वरित और प्रभावी रूप में हल करने के लिए एक विशेषज्ञ संस्था की स्थापना की गयी।
  • पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन के कारण होने वाले जन और धन के नुकसान के मुआवजे का प्रावधान किया गया।

संरचना-

  • इसका मुख्य बेंच नई दिल्लीमें स्थित है, जबकि इसकी क्षेत्रीय शाखाएँ पुणे, भोपाल, चेन्नई और कोलकाता में स्थापित है।

सदस्य-

  • न्यायाधिकरण का अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय का अवकाश प्राप्त न्यायधीश होगा तथा इसके अन्य न्यायिक सदस्य उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश होंगे।
  • इसके 10 सदस्य पर्यावरणीय विशेषज्ञ होंगे तथा 10 न्यायिक सदस्य भी होंगे।

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