उच्च न्यायालय की शक्तियाँ– आरंभिक अधिकारिता-
- सामान्यतः उच्च न्यायालय की कोई आरंभिक अधिकारिता नहीं होती है।
अपवाद-
- सिविल मामलों में मद्रास, मुंबई, कोलकाता उच्च न्यायालयों को आरंभिक शक्ति अभी भी बनाए रखी गयी है।
- अन्य किसी उच्च न्यायालय को सिविल मामलों में आरंभिक अधिकारिता नहीं है।
निम्नलिखित मामलों में सभी उच्च न्यायालयों को आरंभिक शक्ति है-
- संसद सदस्यों और राज्य विधान मण्डल सदस्यों के चुनाव संबंधी विवाद।
- नागरिकों के मूल अधिकारों को लागू कराना। (अनुच्छेद-226 के अंतर्गत्) परंतु इसमें मूल अधिकारों के अलावा अन्य मामलों में भी सीधे उच्च न्यायालय जाया जा सकता है।
- अधीनस्थ न्यायालयों से भेजे गये संविधान की व्याख्या से संबंधित मामले।
अपीलीय अधिकारिता-
- सामान्यतः उच्च न्यायालयों को अपीलीय न्यायालय ही कहा जाता है।
सिविल मामलों में अपील-
- विधि के किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर जिला न्यायालयों से सीधे उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
- धन संबंधी मामले में जिला न्यायालय से उच्च न्यायालय में अपील की जाती है।
- उच्च न्यायालय में पहली अपील या दूसरी अपील भी की जाती है।
दाण्डिक मामलों में अपील-
- यदि किसी सत्र न्यायाधीश द्वारा किसी व्यक्ति को 7 वर्ष से अधिक का दण्ड दिया जाता है, तो उसकी अपील उच्च न्यायालय में की जाऐगी।
- ऐसे आपराधिक मामले जो सहायक सेशन मजिस्ट्रेट या अन्य मजिस्ट्रेट के निर्णय को जो दण्ड प्रक्रिया में हो उच्च न्यायालय में अपील होगी।
लेटर्स पेटेन्ट के अंतर्गत् अपील-
- इसके अंतर्गत् एक ही उच्च न्यायालय में जब एक न्यायाधीश के बेंच के निर्णय को उसी न्यायालय में खण्डपीठ के समक्ष अपील किया जाए।
- लेटर्स पेटेन्ट के अंतर्गत् अपील का प्रावधान इलाहाबाद, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई एवं पटना उच्च न्यायालय में है।
रिट अधिकारिता (अनुच्छेद-226)-
- अनुच्छेद-226 के अंतर्गत् उच्च न्यायालय द्वारा रिट प्रदान की जाती है।
- यह रिट मूल अधिकारों व अन्य मामलों में ही प्रदान की जाती है।
- परंतु यह रिट शक्ति उच्च न्यायालय की भौगोलिक अधिकारिता क्षेत्र में ही लागू होती है।
अनुच्छेद-32 और अनुच्छेद-226 में संबंध-
- अनुच्छेद-32 उच्चतम न्यायालय के द्वारा जारी होता है। जबकि अनुच्छेद-226 के अंतर्गत् उच्च न्यायालय के द्वारा जारी होता है।
- उच्चतम न्यायालय केवल मूल अधिकारों के हनन के संदर्भ में ही जारी कर सकता है। (अनुच्छेद-32) जबकि उच्च न्यायालय उन मुद्दों पर भी रिट जारी कर सकता है, जो मूल अधिकार के भाग नहीं हैं।
- अनुच्छेद-32 का प्रयोग उच्चतम न्यायालय द्वारा पूरे भारतीय क्षेत्र के लिए किया जा सकता है। जबकि अनुच्छेद-226 के अंतर्गत् उच्च न्यायालय के द्वारा रिट जारी करने की शक्ति केवल उसी भौगोलिक सीमा तक होती है, जहाँ तक उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार है।
उच्च न्यायालय की अधीक्षण की शक्ति-
- अधीक्षण की शक्ति केवल उच्च न्यायालय की होती है।
- इस शक्ति के माध्यम से उच्च न्यायालय अपने क्षेत्र के अंतर्गत् आने वाले निचली श्रेणी के अन्य न्यायालयों पर प्रशासकीय नियंत्रण रखता है। उदाहरण के लिए, जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति में राज्यपाल, उच्च न्यायालय से सलाह लेता है, उच्च न्यायालय निचले स्तर की न्यायपालिका के न्यायाधीशों के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही भी करता है। (अनुच्छेद-227)
- उच्च न्यायालय के पास अधीनस्थ न्यायालय से कोई भी मामला अपने पास मँगवाने की शक्ति होती है। (अनुच्छेद-228)
अभिलेखीय न्यायालय (अनुच्छेद-215)-
- उच्च न्यायालय, अभिलेखीय न्यायालय होता है, जिसका निम्नलिखित आशय है-
(i) इसके निर्णय अधीनस्थ न्यायालयों के लिए साक्ष्य के रूप में प्रयुक्त किये जाते हैं।
(ii) उच्च न्यायालय, अवमानना के मामले में दण्ड देने की शक्ति रखता है।
उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय की तुलना-
- उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय, दोनों अपीलीय न्यायालय होते हैं।
- उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार पूरे देश के लिए होता है। जबकि उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार अपने अंतर्गत् आने वाले राज्य या राज्यों के भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित होता है।
- उच्चतम न्यायालय का उच्च न्यायालय पर कोई प्रशासनिक नियंत्रण नहीं होता है।
- उच्चतम न्यायालय के पास सलाहकारी शक्ति, विशेष इजाजत से अपील एवं संघीय विवाद के निर्धारण की शक्ति है, जो उच्च न्यायालय के पास नहीं है।