उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का स्थानांतरण तथा उच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के द्वारा उच्चतम न्यायालय के जजों के समान की जाती है।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया– संवैधानिक प्रावधान-
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को राष्ट्रपति पद से हटा सकते हैं।
हटाने के आधार-
(i) कदाचार के आधार पर।
(ii) कार्य करने में असमर्थता के आधार पर।
- न्यायाधीशों को संसद की एक विशेष प्रक्रिया द्वारा हटाया जाऐगा, जिसमें संसद के विशेष बहुमत की आवश्यकता होगी। विशेष बहुमत का आशय, सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत तथा उपस्थित एवं मत देने वालों का 2/3 बहुमत से है।
न्यायाधीश जाँच अधिनियम.1968 (संसदीय प्रक्रिया)-
- न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव लोक सभा या राज्य सभा किसी भी सदन में लाया जा सकता है।
- लोक सभा के 100 या राज्य सभा के 50 सदस्य, राष्ट्रपति को संबोधित एक पत्र संबंधित सदन के स्पीकर या सभापति को देते हैं।
- स्पीकर या सभापति द्वारा प्रस्ताव स्वीकार किया जा सकता है अथवा अस्वीकार किया जा सकता है।
- स्पीकर या सभापति द्वारा प्रस्ताव स्वीकार किये जाने पर निम्नलिखित प्रावधान किये जाते हैं-
- सदन द्वारा तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जायेगा, जिसमें-
(i) उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या अन्य न्यायाधीश।
(ii) उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश।
(iii) कोई परंपरागत विधिवेत्ता।
- यदि समिति ने आरोप सही पाया, तो प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा। (सिद्ध कदाचार या असमर्थता के आधार पर)
- जिस सदन में प्रस्ताव लाया गया है, वह सदन विशेष बहुमत से न्यायाधीश के विरूद्ध प्रस्ताव पारित करेगा।
- विशेष बहुमत का आशय, सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत एवं उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-ितहाई बहुमत से है।
- इसके पश्चात् दूसरे सदन में भी विशेष बहुमत से यह प्रस्ताव पारित किया जाऐगा।
- प्रस्ताव पारित होने के पश्चात् राष्ट्रपति संबंधित न्यायाधीश को उसके पद से हटा सकेगा।
- अभी तक तीन न्यायाधीशों के विरूद्ध हटाने का प्रस्ताव लाया गया है-
(i) न्यायामूर्ति रामास्वामी के विरूद्ध लाया गया प्रस्ताव लोक सभा में पारित नहीं हो पाया था।
(ii) न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के विरूद्ध लाया गया प्रस्ताव राज्य सभा में पारित हो गया। इसके बाद इन्होंने स्वयं इस्तीफा दे दिया।
(iii) न्यायमूर्ति दिनाकरण के विरूद्ध लाया गया प्रस्ताव अभी संसद में विचाराधीन है।
न्यायाधीशों को पद से हटाने की आंतरिक (In House) प्रक्रिया-
- उच्चतम न्यायालय ने न्यायाधीशों को हटाने के लिए स्वयं इस प्रक्रिया का निर्माण किया है।
- भट्टाचारजी वाद में न्यायपालिका ने इसका सिद्धांत दिया, जिसके अनुसार कदाचार के दोषी पाये गये किसी भी न्यायाधीश को भारत के मुख्य न्यायाधीश संबंधित न्यायाधीश को उसके पद से हटा देंगे। परंतु यह बाध्यकारी नहीं है।
न्यायाधीशों की स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता का प्रावधान– वेतन एवं भत्ते-
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को राज्य की संचित निधि से वेतन एवं भत्ते दिए जाते हैं, लेकिन पेंशन संघ की संचित निधि से दिया जाता है।
- हाल ही में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को 2,50,000 रूपये प्रतिमाह वेतन एवं अन्य न्यायाधीशों को 2,25,000 रूपये प्रतिमाह वेतन देने का प्रावधान किया।
- कार्यकाल के दौरान कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं हो सकता। (अपवाद अनुच्छेद-360 के अंतर्गत् यदि वित्तीय आपातकाल लगा हो, तो वेतन में कटौती की जा सकती है)
- न्यायाधीशों के आचरण पर संसद या विधान सभा में कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती। (अपवाद जब हटाने की प्रक्रिया चल रही हो, तब चर्चा हो सकती है)
- उच्च न्यायालय का न्यायाधीश उन उच्च न्यायालयों में वकालत नहीं करेगा, जहाँ वह न्यायाधीश रहा हो।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति, राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है।