सलाहकारी अधिकारिता (अनुच्छेद-143)-
- सलाहकारी अधिकारिता का अर्थ है, कि राष्ट्रपति किसी मामले में उच्चतम न्यायालय की सलाह ले सकता है। सलाह लेने के निम्नलिखित आधार हैं-
(i) यदि सार्वजनिक महत्व का कोई मुद्दा हो, जिस पर उच्चतम न्यायालय की सलाह आवश्यक है।
(ii) ऐसे संधि या समझौते, जो संविधान के लागू होने से पूर्व किये गये हों।
- राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय की सलाह मानने को बाध्य नहीं होता है।
- उच्चतम न्यायालय प्रत्येक मुद्दे पर सलाह देने को बाध्य नहीं है।
- उच्चतम न्यायालय की सलाह राष्ट्रपति पर बाध्य नहीं होती। परंतु यह सलाह अधीनस्थ न्यायालयों पर बाध्य होती है।
- संविधान से लागू होने के पूर्व किये गये समझौतों एवं संधियों वाले मामले में उच्चतम न्यायालय के लिए सलाह देना बाध्यकारी होता है। परंतु सरकार के लिये सलाह को मानना बाध्यकारी नहीं होता है।
सलाहकारी अधिकारिता की उपयोगिता-
- सलाहकारी शक्ति के अंतर्गत् दी गयी सलाह से सरकार को उस महत्वपूर्ण तथ्य पर विधि की व्याख्या तथा जटिलताओं का उत्तर मिल जाता है। इसलिये सरकार विधि के निर्माण से पहले सलाह का ध्यान रखती है।
- सलाहकारी निर्णय भले सरकार पर बाध्यकारी न हो, लेकिन अधीनस्थ न्यायालयों के लिये बाध्यकारी एवं निर्देश के रूप में माने जा सकते हैं।
मामले जिन पर सलाहकारी शक्ति का प्रयोग किया-
- दिल्ली विधि अधिनियम।
- केरल शिक्षा विधेयक।
- बेरूबाड़ी संघ का मामला।
- समुद्रीय प्रशुल्क अधिनियम।
- केशव सिंह वाद।
- राष्ट्रपति चुनाव-1974
- विशेष न्यायपालिका अधिनियम-1978
- कावेरी जल विवाद अधिनियम
- राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद् विवादास्पद ढ़ाँचे का मामला।
- जजेजवाद-1993
- जम्मू एवं कश्मीर राज्य का पुनर्वास अधिनियम-1982
- स्पेशल रिफरेंस अधिनियम-2001
- गुजरात विधान सभा चुनाव-2002
- पंजाब जल समझौता समाप्ति अधिनियम-2004
- 2G स्पेक्ट्रम मामला-2012
उपचारात्मक याचिका-
- यदि किसी व्यक्ति की पुनरावलोकन याचिका अस्वीकार कर दिया जाए तो वह उपचारात्मक याचिका दायर कर सकता है।
- इसे न्यायाधीशों (तीन वरिष्ठतम) एवं वकीलों द्वारा प्रमाणित होना चाहिए।
- इसमें यह प्रमाणित किया जाए, कि न्याय का उल्लंघन हुआ है, जिस पर पुनर्विचार आवश्यक है।
पुनरावलोकन याचिका-
- उच्चतम न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध पुनः उच्चतम न्यायालय में अपील किया जा सकता है। इसके लिए एक वरिष्ठ वकील इसे प्रमाणित करे तथा न्यायाधीश भी यह प्रमाणित करे, कि पहला निर्णय पूर्णतः सही नहीं था, तब पुनरावलोकन याचिका दायर की जा सकती है।
- उच्चतम न्यायालय में न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध पुनः याचिका दायर किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, वर्ष-2012 में 2जी स्पेक्ट्रम मामले में सरकार ने उच्चतम न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दायर किया।
उच्चतम न्यायालय की अन्य अधिकारिताएँ-
- राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के चुनाव के विवाद पर निर्णय देने की शक्ति केवल उच्चतम न्यायालय को प्रदान किया गया है।
- संघ लोक सेवा आयोग व राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों को हटाने के संदर्भ में राष्ट्रपति को सलाह देना।
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त के द्वारा अन्य निर्वाचन आयुक्तों को हटाने के संदर्भ में भी उच्चतम न्यायालय से सलाह ली जाती है।
- संसद द्वारा बनायी गयी किसी विधि के (या अनुच्छेद-145) के अधीन बनाये गये प्रावधान में उच्चतम न्यायालय अपने पूर्व में दिये गये निर्णय को परिवर्तित कर सकता है। (अनुच्छेद-137)
- उच्चतम न्यायालय के द्वारा वर्णित विधि भारत के सभी न्यायालयों पर लागू होती है। (अनुच्छेद-141)
अभिलेखीय न्यायालय (अनुच्छेद-129)-
- उच्चतम न्यायालय, अभिलेखीय न्यायालय है, जिसका निम्नलिखित आशय है-
(i) इसके निर्णय उच्च न्यायालय व अन्य न्यायालयों के लिए साक्ष्य के रूप में प्रयुक्त किये जाते हैं।
(ii) उच्चतम न्यायालय अवमानना के मामले में दण्ड देने की शक्ति रखता है।