उच्चतम न्यायालय की शक्तियाँ– आरंभिक अधिकारिता (अनुच्छेद-131)-
- आरंभिक अधिकारिता से आशय है, कि इन मामलों में सीधे उच्चतम न्यायालय द्वारा ही सुनवाई की जाती है।
- निम्नलिखित संघीय मामले उच्चतम न्यायालय की आरंभिक अधिकारिता के अंतर्गत् आते हैं-
(i) केन्द्र व राज्यों के मध्य के विवाद।
(ii) दो या दो से अधिक राज्यों के मध्य विवाद।
- अनुच्छेद-32 के अंतर्गत् मूल अधिकारों की रक्षा के लिए भी सीधे उच्चतम न्यायालय द्वारा ही सुनवाई की जाती है।
- परंतु अनुच्छेद-32 की रिट अधिकारिता को तकनीकी रूप में आरंभिक अधिकारिता नहीं माना जाता है।
- क्योंकि अनुच्छेद-32 के अंतर्गत् राज्य व व्यक्ति के मध्य विवाद होता है।
संघीय विवाद के वे मामले, जो आरंभिक अधिकारिता के अंतर्गत् नहीं आते-
- अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद। (अनुच्छेद-263)
- वित्त आयोग द्वारा राज्यों को प्रदत्त अनुदान। (अनुच्छेद-280)
- संघ और राज्यों के बीच कुछ ब्यौरों का समाधान, जिसमें संविधान लागू होने से पूर्व देयताओं का प्रावधान है। (अनुच्छेद-290)
- संविधान लागू होने के पूर्व देशी रियासतों एवं संघ के बीच की गयी संधियाँ। (अनुच्छेद-363)
अपीलीय अधिकारिता-
- अपीलीय अधिकारिता से आशय, उन मामलों से है, जिनमें उच्च न्यायालय से उच्चतम न्यायालय में अपील की जाती है। इन मामलों में सीधे उच्चतम न्यायालय में नहीं जाया जा सकता है।
सिविल मामलों में अपील (अनुच्छेद-133)-
- जब उच्च न्यायालय यह प्रमाण पत्र दे, कि किसी वाद में विधि की व्याख्या का कोई महत्वपूर्ण प्रश्न निहित है।
दाण्डिक मामलों में अपील (अनुच्छेद-134)- बिना प्रमाण पत्र के अपील-
- दाण्डिक मामलों में उच्चतम न्यायालय में साधिकार अपील हो सकती है। दूसरे शब्दों में, इसमें उच्च न्यायालय के प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं होगी। ऐसी अपील मृत्युदण्ड के मामले में होती है।
(i) यदि उच्च न्यायालय ने व्यक्ति के दोष मुक्ति के आदेश को पलटकर उसे मृत्युदण्ड दे दिया हो।
(ii) यदि उच्च न्यायालय ने किसी निचले न्यायालय से मामले को मँगाकर व्यक्ति को मृत्युदण्ड दे दिया हो।
प्रमाण पत्र के अंतर्गत् अपील-
- दूसरे उन मामलों में अपील की जा सकती है, जहाँ अपील के लिये उच्च न्यायालय प्रमाण पत्र प्रदान करे। यह प्रमाण पत्र निम्न परिस्थितियों में दिया जा सकता है-
(i) यदि विधि का कोई महत्वपूर्ण प्रश्न हो।
(ii) या न्याय के किसी महत्वपूर्ण सिद्धांत का उल्लंघन हुआ हो।
- ऐसे मामले, जिनमें आजीवन कारावास की सजा दी गई हो या 10 वर्ष से अधिक की कैद की सजा दी गई हो। इन मामलों में भी उच्चतम न्यायालय में अपील की जाती है।
- दाण्डिक मामलों में उच्चतम न्यायालय की कोई आरंभिक अधिकारिता नहीं होती है।
विशेष इजाजत से अपील (अनुच्छेद-136)-
- उच्चतम न्यायालय की विशेष इजाजत की यह शक्ति, अपीलीय शक्ति से भिन्न है।
- यह विशेष इजाजत उच्चतम न्यायालय किसी मामले में तब दे सकता है, जब विधि के किसी व्यापक महत्व का प्रश्न हो या ऐसी विशेष परिस्थितियाँ विद्यमान हों, जिसमें न्याय का घोर उल्लंघन किया गया हो। (अनुच्छेद-132 से 134 की सीमा के बाहर हो)
- अतः विशेष इजाजत के अंतर्गत् उच्चतम न्यायालय, सिविल एवं दाण्डिक दोनों मामलों में सुनवाई कर सकता है।
- विशेष इजाजत की अपील उच्चतम न्यायालय की आपवादिक शक्ति है, यह सामान्य शक्ति नहीं है।
- विशेष इजाजत के अंतर्गत् अधिकरणों के निर्णय की अपील उच्चतम न्यायालय में हो सकती है। (सैन्य अधिकरण को छोड़कर) इस शक्ति का प्रयोग उच्चतम न्यायालय के विवेक पर छोड़ दिया गया है।