Rajasthan GK || Indian Polity and Economy || न्यायपालिका (JUDICIARY)

न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया– संवैधानिक प्रावधान (अनुच्छेद-124, (4))-

  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है।

         हटाने के आधार (i) कदाचार के आधार पर।

(ii) कार्य करने में असमर्थता के आधार पर।

  • संविधान में न्यायाधीशों को हटाने के लिए संसद की विशेष प्रक्रिया का उल्लेख है। न्यायाधीश को संसद की कुल सदस्य संख्या का बहुमत एवं उपस्थित तथा मत देने वाले 2/3 सदस्यों के बहुमत से हटाया जाऐगा।

न्यायाधीश जाँच अधिनियम-1968 (संसदीय प्रक्रिया)-

  • न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव, लोक सभा या राज्य सभा किसी भी सदन में लाया जा सकता है।
  • लोक सभा के 100 या राज्य सभा के 50 सदस्य राष्ट्रपति को संबोधित एक पत्र संबंधित सदन के स्पीकर या सभापति को देते हैं।
  • स्पीकर या सभापति द्वारा प्रस्ताव स्वीकार किया जा सकता है अथवा अस्वीकार किया जा सकता है।
  • स्पीकर या सभापति द्वारा प्रस्ताव स्वीकार किये जाने पर निम्नलिखित प्रावधान किये जाते हैं।
  • सदन द्वारा तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जाऐगा, जिसमें-

(i) उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या अन्य न्यायाधीश।

(ii) उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश।

(iii) कोई परंपरागत विधिवेत्ता।

  • यदि समिति ने आरोप सही पाया, तो प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा। (सिद्ध कदाचार या असमर्थता के आधार पर)
  • जिस सदन में प्रस्ताव लाया गया है, वह सदन विशेष बहुमत से न्यायाधीश के विरूद्ध प्रस्ताव पारित करेगा।
  • विशेष बहुमत का आशय, सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत एवं उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-ितहाई बहुमत से है। यह प्रस्ताव संसद के एक ही सत्र में पारित होना चाहिए।
  • इसके पश्चात् दूसरे सदन में भी विशेष बहुमत से यह प्रस्ताव पारित किया जाऐगा।
  • प्रस्ताव पारित होने के पश्चात् राष्ट्रपति संबंधित न्यायाधीश को उसके पद से हटने का आदेश देता है।

न्यायाधीशों को पद से हटाने की आंतरिक (In House) प्रक्रिया-

  • उच्चतम न्यायालय ने न्यायाधीशों को हटाने के लिए स्वयं इस प्रक्रिया का निर्माण किया है।
  • भट्टाचारजी वाद में न्यायपालिका ने इसका सिद्धांत दिया।
  • जिसके अनुसार, कदाचार के दोषी पाये गये किसी भी न्यायाधीश को भारत के मुख्य न्यायाधीश उस न्यायाधीश को उसके पद से हटा देंगे।
  • परंतु यह बाध्यकारी नहीं है।

न्यायाधीशों की स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता का प्रावधान– वेतन एवं भत्ते-

  • तीसरी अनुसूची में संचित निधि पर भारित होता है। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को संघ की संचित निधि से वेतन, भत्ते एवं पेंशन दिए जाते हैं। (अनुच्छेद-146 (3))
  • हाल ही में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को 2,80,000 रूपये प्रति माह तथा अन्य न्यायाधीशों को 2,50,000 रूपये प्रतिमाह किये जाने का प्रावधान है।
  • यह बिन्दु ध्यान देने योग्य है, कि न्यायाधीशों के वेतन  भत्तों का निर्धारण संसद द्वारा किया जाता है।
  • कार्यकाल के दौरान कोई वेतन  भत्तों में अलाभकारी परिवर्तन नहीं हो सकता। (अनुच्छेद-125(2)) (अपवाद अनुच्छेद-360 के अंतर्गत् वित्तीय आपातकाल के दौरान वेतन से कटौती की जा सकती है)
  • न्यायाधीशों के आचरण पर संसद या विधान सभा में कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती। (अपवाद जब हटाने की प्रक्रिया चल रही हो, तब चर्चा हो सकती है)
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है।
  • अवकाश प्राप्ति के बाद न्यायाधीश भारतीय क्षेत्र में किसी भी न्यायपालिका के समक्ष वकालत नहीं करेंगे। (अनुच्छेद-124(7))

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