राजस्थान सामान्य ज्ञान : पदार्थ की संरचना एवं रासायनिक पदार्थ

 

रासायनिक समीकरण

  • रासायनिक समीकरण की सहायता से रासायनिक अभिक्रिया को दर्शाया जाता है।  इसमें भाग लेने वाले पदार्थ को अभिकारक तथा प्राप्त होने वाले पदार्थ को क्रिया फल कहते हैं।
  • अभिकारक व क्रियाफल में परमाणुओं की संख्या यदि समान हो तो ऐसा समीकरण संतुलित समीकरण कहलाता है। ऐसे समीकरण में अभिकारकों का कुल भार उत्पादों के कुल भार के बराबर होता है। क्योंकि पदार्थ नष्ट नहीं होता है।
  • रासायनिक समीकरण से अभिक्रिया में भाग लेने वाले तत्व या यौगिकों के अणुओं की संख्या ज्ञात होती है। अभिकारक व उत्पाद के भारों की भी जानकारी होती है। उत्पादों की मदद से संयोजकता की जानकारी भी प्राप्त होती है।
  • रासायनिक अभिक्रियाओं में अभिकारक व उत्पादों की भौतिक अवस्थाओं को कोष्ठक में लिखकर प्रदर्शित करते हैं जैसे-

(s) = Solid (ठोस)

(l) = Liquid (द्रव)

(g) = gas (गैस)

(aq) = Aquous Solution (जलीय विलयन)

  • क्रिया में बनने वाले अवक्षेप (Precipitate) को (\downarrow↓) चिन्ह तथा गैसीय पदार्थ को (\uparrow↑) चिन्ह से प्रदर्शित करते हैं।
  • अभिक्रिया को पूर्ण करने के लिये आवश्यक परिस्थितियों को तीर के निशान के ऊपर व नीचे लिखा जाता है।
  • अभिक्रिया की गति तथा पूर्ण होने के समय का बोध नहीं होता है।

कार्बन

  •  कार्बन चतुसंयोजी तत्त्व है। जिसकी समचतुषफलकीय ज्यामिती होती है तथा प्रत्येक संयोजकता के मध्य 1090 28′ का कोण होता है।

कार्बन के ऑक्साइड

  •  कार्बनिक यौगिक (कोयल, पेट्रोल, डीजल, कैरोसिन) के दहन (Combustion) व ऑक्सीकरण से उसमें उपस्थित कार्बन वायुमण्डल की ऑक्सीजन से क्रिया करके कार्बन के ऑक्साइड बनाता है।

कार्बन मोनो ऑक्साइड (CO)

  • ऑक्सीजन की अपर्याप्त मात्रा में कार्बन के दहन से CO बनता है।
  • यह गैस जल में अल्पविलय, रंगहीन, मीठी गंधयुक्त विषैली गैस है। मोटर गाड़ियों के धुएं से निकलने वाली यह गैस मनुष्य स्वास्थ्य को सर्वाधिक हानि पहुंचाती है।
  • कार्बन मोनो ऑक्साइड का उपयोग रंजक या डाइ उद्योग में, धातुओं के शुद्धिकरण में, भाप अंगार गैस बनाने में, वायु अंगार गैस बनाने में करते हैं।

कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)

  • ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा में कार्बन के दहन से यह गैस बनती है। कार्बन डाई ऑक्साइड गैस श्वसन, दहन, किण्वण की क्रियाओं में भी उत्पन्न होती है।
  • यह गैस गुफाओं, खानों, दलदली क्षेत्रों, कुओं, चूने के भट्टो के निकट अधिक मात्रा में पायी जाती है।
  • यह धातु के कार्बोनेट व बाईकार्बोनेट की अम्लों के साथ क्रिया द्वारा भी बनाई जा सकती है। (अग्निशामक यंत्रों में)

 गुण :-

– यह अज्वलनशील, रंगहीन, गंधहीन, जल में अल्प विलेय, वायु से भारी गैस है।

– यह अम्लीय प्रकृति की होती है व जल में घुलकर कार्बोनिक अम्ल बनाती है।

– यह चूने के पानी में प्रवाहित करने पर चूने के पानी को दूधिया कर देती है।

– यह क्षार के जलीय विलयन में प्रवाहित करने पर उनके द्वारा अवशोषित हो जाती है। (2NaOH+CO2→ Na2CO3 + H2O)

 उपयोग :-

– शीतल पेय व सोडा वाटर बनाने में।

– शुष्क बर्फ के रूप में वस्तुओं को ठंडा करने में।

– सोडियम कार्बोनेट व कैल्सियम कार्बोनेट बनाने में।

– अयस्कों के शोधन, आग बुझाने, प्रकाश संश्लेषण में।

– हरित गृह से शीत प्रदेशों में सब्जियों व फलों के लिए तापमान उपयुक्त बनाने में।

भूमंडलीय तापन (Global waming)/ग्रीनहाऊसइफेक्ट (हरित गृह प्रभाव)–

  • हरित गृह प्रभाव तापीय वैश्वीकरण (Global warming) के कारण पूरे विश्व के वातावरण का तापमान बढ़ रहा है। इसे ही तापीय वैश्वीकरण (ग्लोबल-वार्मिंग) कहते हैं।
  • इस प्रभाव हेतु उत्तरदायी गैसों को हरित गृह गैसें (ग्रीन-हाऊस) कहते हैं। ये सूर्य से आने वाली लघु विकिरणों (अधिक आवृत्ति) को पार जाने देते हैं लेकिन पृथ्वी सतह से टकराकर पुनः अन्तरिक्ष की ओर प्रस्थान पार्थिव विकिरणों को अवशोषित कर लेती है जिससे तापमान में वृद्धि हो रही है। 50 दशकों में इन गैसों की मात्रा में अनियंत्रित रूप से बढ़ोतरी हुई है।

प्रमुख Green House Gases : कार्बन डाई-ऑक्साईड (60%), C.F.C (क्लोरो फ्लोरो कार्बन्स/फ्रिऑन (10%), मेथेन (CH4) – (20%), जलवाष्प, ओजोन गैस, नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स, सल्फर डाई ऑक्साइड, सल्फर हेक्सा फ्लोराइड (SF6)।

  • यदि वायुमंडल में CO2 की मात्रा इसी तरह बढ़ती रही तो 1900 ई. की तुलना में 2030 ई. में विश्व के तापमान में 30C की वृद्धि हो जाएगी।
  • भूमंडलीय तापन के कारण हिम क्षेत्र पिघलेंगे जिसके परिणामस्वरूप समुद्री जलस्तर 2.5 से 3 मी. तक बढ़ जाएगा।

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