यौगिक
- इनमें परमाणु का अनुपात निश्चित होता है। यौगिक का छोटे से छोटा कण अणु होता है। सभी अणु गुणों में समान होते हैं। मूल तत्वों के गुण विद्यमान नहीं होते हैं। यौगिक का संगठन सदैव स्थाई होता है जिसे केवल रासायनिक या वैद्युत रासायनिक विधि से अलग कर सकते हैं। जैसे शक्कर, नमक, जल, मिथेन इत्यादि।
मिश्रण
- मिश्रण का संगठन परिवर्तनीय होता है। जिसे भौतिक विधियों द्वारा सुगमता से अलग कर सकते हैं। ये दो प्रकार के होते है-
- समांगी (Homogeneous) – इस मिश्रण में सभी जगह एक समान संगठन रहता है। जैसे- वायु में ऑक्सीजन व नाइट्रोजन का, जल में चीनी व नमक का विलयन, कार्बनडाई सल्फाइड में सल्फर इत्यादि।
- विषमांगी (Heterogeneous) – संगठन में सभी जगह अणु एक समान उपस्थित नहीं होते हैं। जैसे- नमक व लौहे की छिलन, रेत व सल्फर का मिश्रण, रूधिर, चीनी व नमक का मिश्रण, लकड़ी, तेल में जल।
पदार्थ़ों की अशुद्धियों का पृथक्करण
- निथारना व छानने की विधि द्वारा हल्की व अघुलनशील अशुद्धियों को दूर कर सकते हैं। जैसे- जल व तेल को अलग करना, नमक व रेत को अलग करना, चाय व जल में से कचरा छानना।
- वाष्पीकरण की विधि द्वारा जल में से सोडा, नमक व शक्कर को अलग कर सकते हैं।
- चुम्बकीय विधि से मिश्रण में से लौह पदार्थ़ों को अलग किया जा सकता है।
- ऊर्ध्वपातन (Sublimation) : कुछ ठोस पदार्थ जिन्हें गर्म करने पर द्रव अवस्था में आने के बजाय सीधे वाष्प में बदल जाते हैं और वाष्प को पुनः ठण्डा करने पर ठोस में परिविर्तत हो जाते हैं। ऐसे पदार्थ़ों को ‘एब्लीमेट पदार्थ‘ कहते हैं तथा यह घटना ‘ऊर्ध्वपातन‘ कहलाती है। इस विधि द्वारा कपूर, नेफ्थेलीन, आयोडिन, नौसादर, बेन्जोइक अम्ल, एन्थ्रासीन आदि के अन्य पदार्थ़ों के साथ मिश्रण से पृथक् किये जाते हैं।
- क्रिस्टलन (Crystallisation) : यह विधि मिश्रण से अकार्बनिक ठोसों को पृथक् करने हेतु प्रयोग में ली जाती है। यह विधि वाष्पीकरण से उत्तम विधि है।
मिश्रण + विलायम ¾→ गर्म करने पर इसी अवस्था में छाना जाता है (विलयन ठण्डा करने पर क्रिस्टल बन जाते हैं)
जैसे – समुद्री जल से नमक प्राप्त करना। अशुद्ध नमूने से फिटकरी पृथक् करना, कॉपर सल्फेट को पृथक करना।
- प्रभाजी आसवन (Fractional Distillation) – उन दो द्रवों को पृथक् करते हैं जिनके क्वथनांकों में अंतर बहुत कम होता है। कच्चे तेल से Petrol, Diesel, Karosene आदि पृथक् करते हैं।
- आसवन (Distillation) – जब अन्तर बहुत अधिक होता है। मिश्रण → गर्म कर वाष्प को पुनः ठण्डा कर देते हैं। जैसे – आसुत जल प्राप्त करना।
- एक ही प्रकार के विलायक में घुले हुए अशुद्धि को पृथक करने के लिए कोमेटोग्राफी विधि का उपयोग करते हैं। जैसे- डाई/रंजक में से रंगों को अलग करना, प्राकृतिक रंगों से वर्णक अलग करना, रक्त से नशीले पदार्थ़ों को अलग करना।
- अपकेन्द्रण विधि – इसमें द्रव को तेजी से घुमाने पर भारी कण नीचे बैठ जाते हैं व हल्के कण ऊपर रह जाते हैं। जैसे- प्रयोगशाला में रक्त व मूत्र की जांच करना, डेयरी व घर में क्रीम से मक्खन निकालना, वॉशिंग मशीन में कपड़ों को निचोड़ना।
- भूसे से गेहूँ के दानों को थ्रेसिंग के द्वारा (हार्वेस्टर मशीन), फटक कर (विनोइंग) अलग कर सकते हैं।
रसायनिक सूत्र
- परमाणुओं की संयोग करने की क्षमता को संयोजकता (Valency) कहते हैं।
- हाइड्रोजन परमाणु की संयोजकता को एक आधार मान कर अन्य तत्त्वों की संयोजकता ज्ञात करते हैं। जो तत्त्व हाइड्रोजन से संयोग नहीं करते उनकी संयोजकता उनके द्वारा इलेक्ट्रॉन त्यागने या ग्रहण करने की संख्या के आधार पर ज्ञात करते हैं।
- किसी कक्षा में इलेक्ट्रॉन की अधिकतम संख्या = 2n2
- जिन परमाणुओं की बाह्यतम कक्षा में 8 इलेक्टॉन होते हैं। वे स्थायी होते हैं तथा किसी अन्य परमाणु से संयोग नहीं करते।
- परमाणु अपनी बाह्यतम कक्षा में 8 इलेक्ट्रॉन पूर्ण करने के लिए इलेक्ट्रॉन का आदान-प्रदान अथवा साझा करते हैं। परमाणु इलेक्ट्रॉन त्यागने पर धन आवेशित व इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने पर ऋण आवेशित हो जाता है।
- ऋणायन (Anion) के पीछे आईड जोड़ते हैं। जैसे – क्लोराइड (Cl–), ऑक्साइड (O–2), सल्फाइड (O–2), नाइट्राइड (N–3)
- धातु से प्राप्त मूलक क्षारिय मूलक व अधातु से प्राप्त मूलक अम्लीय मूलक कहलाते हैं। कुछ आयनों में एक से अधिक प्रकार के परमाणु पाये जाते हैं। उन्हें यौगिक मुलक कहते हैं। मूलकों पर उपस्थित आवेश संख्या उनकी संयोजकता को प्रकट करती है।