राजस्थान सामान्य ज्ञान : गुप्त काल

विकेद्रीकरण की शुरूआत

गुप्त की उत्पत्ति

  • गुप्त सम्भवतः कुषाणों के सामन्त थे।
  • काशी प्रसाद जायसवाल के अनुसार गुप्त सम्राट जाट और मूलतः पंजाब के निवासी थे। गौरी शंकर ओझा इन्हें क्षत्रिय तथा राय चौधारी ने ब्राह्मण माना। स्मृतियों में गुप्तों को वैश्य कहा गया है।
  • गुप्तकालीन अभिलेखों के आधार ‘श्री गुप्त’ गुप्तों के आदिराजा थे। इन्होंने 275 ई. से 300 ई. तक शासन किया तथा ‘महाराज’ की उपाधि धारण की। श्रीगुप्त के पश्चात उसका पुत्र घटोत्कच शासक हुआ जिसने 300 ई. से 319 ई. तक शासन किया।

चद्रगुप्त प्रथम (319-350 ई.) :

  • चन्द्रगुप्त प्रथम गुप्तवंश का प्रथम प्रसिद्ध राजा हुआ। इसने ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण कीं चन्द्रगुप्त ने वैशाली के प्राचीन लिच्छवि वंश की राजकुमारी कुमारदेवी के साथ विवाह किया। इन्होंने अपने राज्यारोहण की स्मृति में 319-320 ई. में गुप्त संवत आरम्भ किया।

समुद्रगुप्त (350-375 ई.) :

  • चन्द्रगुप्त के पश्चात् उसका पुत्र समुद्रगुप्त शासक बना। समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग (इलाहाबाद) प्रशस्ति लेख समुद्रगुप्त के शासन पर खुदा है जिस पर अशोक का स्तम्भ काल से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
  • समुद्रगुप्त को ‘भारत का नेपोलियन’ कहा जाता है।
  • प्रयाग प्रशस्ति संस्कृत के चम्पू शैली (प्रारम्भिक पंक्ति पद्यात्मक तथा बाद वाली गद्यात्मक) में है। इसमें समुद्रगुप्त के अतिरिक्त अशोक, जहांगीर तथा बीरबल का उल्लेख है।
  • समुद्रगुप्त द्वारा जारी किये गये सिक्के में कुछ पर ‘अश्वमेध पराक्रम’ खुदा है तो कुछ पर सम्राट को वीणा वादन करते हुए दिखाया गया है।
  • चीनी स्रोत के अनुसार श्रीलंका के शासक मेघवर्मन ने समुद्रगुप्त से गया में बौद्धमठ बनाने की अनुमति मांगी।

चन्द्रगुप्त द्वितीय (375-412 ई.) :

  • समुद्र गुप्त के पश्चात् उसका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय राजा बना। उसका दूसरा नाम देवराज तथा देवगुप्त भी था। उसने अपने साम्राज्य को विवाह संबंधों और विजयों द्वारा बढ़ाया। उसने नागवंश की राजकुमारी कुबेर नागा से विवाह किया।
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय से किया।
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शकों को पराजित कर ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की। शक के विरुद्ध विजय के लक्ष्य में उसने चांदी के सिक्के जारी किये। दिल्ली के महरौली लौह स्तम्भ अभिलेख के राजा चन्द्र का साम्य चन्द्रगुप्त द्वितीय के साथ मिलाया जाता है।
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में कालिदास और अमरसिंह जैसे अनेक विद्वान थे। फाहियान (399-414 ई.) इसी के शासनकाल में भारत आया था।

कुमारगुप्त (415-455 ई.) :

  • ह्वेनसांग ने कुमारगुप्त का नाम ‘शक्रादित्य’ बताया है। इसने बड़ी संख्या में मुद्रायें जारी करवायी। इसके द्वारा जारी की गयी मुद्राओं का एक बड़ा भंडार (भरतपुर) में मिला जिसमें चांदी की मयूरशैली की मुद्राएं सर्वोत्कृष्ट थी।
  • स्कंदगुप्त के भीतरी स्तम्भ लेख से ज्ञात होता है कि पुस्यभूतियों का आक्रमण कुमारगुप्त के समय हुआ।
  • नालन्दा विश्वविद्यालय का संस्थापक कुमारगुप्त था।

स्कंदगुप्त (455-467 ई.) :

  • राज्यारोहण के तुरन्त बाद इसे हुणों के आक्रमण का सामना करना पड़ा। स्कंदगुप्त के भीतरी स्तम्भ लेख तथा जूनागढ़ शिलालेख में हुणों पर स्कंदगुप्त की विजयों का उल्लेख है।
  • कहौम स्तम्भ लेख में स्कंदगुप्त को ‘शक्रोपम’ कहा गया है। स्कंदगुप्त ने पर्णदत्त को सौराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया।
  • जूनागढ़ शिलालेख से ज्ञात होता है कि स्कंदगुप्त ने सुदर्शन झील का पुनर्निर्माण करवाया था। इस झील का पुनर्निर्माण पर्णदत्त और उसके पुत्र चक्रपालित के निगरानी में करवाया गया था।
  • परवर्ती गुप्त शासक नरसिंहगुप्त, कुमारगुप्त द्वितीय, बुद्धगुप्त, वैन्यगुप्त, भानुगुप्त, कुमारगुप्त तृतीय, विष्णुगुप्त आदि ने मिलकर 467 ई. से 550 ई. तक शासन किया।

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