राजस्थान सामान्य ज्ञान : वेशभूषा व आभूषण

अंगरखी

  • अंगरखी-गुप्तोत्तर काल तक इसे अंगरक्षी कहा जाता था।
  • अंगरक्षका का अपभ्रंश रूप भीअंगरखी कहलाता है।
  • ग्रामीण जनता श्वेत रंग की अंगरखी पहनती है इसे ग्रामीण भाषा मेंबुगतरी भी कहते हैं।
  • मीनाकारी बेल वाली अंगरखी राजस्थान में बहुत प्रचलित थी।
  • फर्रूखशाही अंगरखी के गले, कन्धे तथा पीठ पर कढ़ाई होती है। यह नाम मुगल बादशाहा फर्रूखशियर के नाम पर पड़ा।
  • चुगा या चोगा-सम्पन्न वर्ग अंगरखी के ऊपर एक चोगा पहनता था जो प्रायः रेशमी, ऊनी या किमखान से बना होता था। इसे विशेष अवसरों पर ही पहना जाता था।
  • ग्रीष्म ऋतु मेंतनजेब और जामदानी चुगो का उपयोग होता था।
  • आतम सुख-अधिक ठण्ड में अंगरखी और चुगे पर लोग आतम सुख पहनते थे। आतम सुख का प्रचलन राजस्थान के रजवाड़ों में अधिक था। सिटी पैलेस जयपुर में सबसे पुराना (18वीं सदी के मध्य का) आतम सुख सुरक्षित है।

टोपी

  • 19वीं सदी के मध्य में पगड़ी के स्थान पर टोपी पहनने का रिवाज चल पड़ा। इस समय विशेष किस्म की खांखसानुमा टोपी पहनी जाती थी जिसका आकार पुराने ढ़ंग के कंघे जैसा होता था।
  • चौखुलिया टोपी चार टुकड़ों को जोड़कर बनाई जाती थी।
  • दुपलिया टोपी दो टुकड़ों को जोड़कर बनाई जाती थी।

जामा

  • 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक चाकदार जामा दरबारी पोशाक थी जिसेकचोटिया जामा कहते थे।
  • बादशाहअकबर ने गोलदार जामे का प्रचलन करवाया।
  • जामे के ऊपर चोली पहनी जाती थी और नीचे घेर जो घुटनों तक आता था।
  • किन्तु बाद में इसकी लम्बाई इतनी बढ़ी कि मुहम्मदशाह (1719-1948 ) के काल में जामा जमीन तक नीचे बढ़ गया और पांव भी बड़ी कठिनाई से दिखते थे।
  • चोली में बांधने के लिए बन्द लगता था जिसेकस कहते थे।
  • जामा हमेशा पहनने की पोशाक न होकर विशेष अवसरों पर पहनने की पोशाक थी। आजकल इसका प्रचलन समाप्त प्रायः है।
  • पटका-अंगरखी या जामा के ऊपर कमरबन्द या पटका बांधने की प्रथा थी जिसमें तलवार या कटार घुसी होती थी।
  • राजस्थान में अहमदाबाद, चंदरी और पैठण के पटके प्रसिद्ध थे।
  • पछवड़े तथा घूघी-ग्रामीण लोग कम्बल या पछवड़े को खेतों में काम करते समय इस प्रकार से ओढ़ते हैं कि कम्बल हाथों का बन्धन न बन जाए।
  • एक विशेष प्रकार से सिर पर ओढ़े जाने वाली कम्बलघूघी कहलाती है।
  • पुरुष परिधानों में पायजामा तथा धोती का उपयोग भी होता है।
  • नान्दणा/नानड़ा-आदिवासियों द्वारा प्रयुक्त होने वाला प्राचीनतम वस्त्र जिसकी छपाई दाबू पद्धति से होती है।
  • ठेपाड़ा/ढ़ेपाड़ा-भीलों में पुरुष वर्ग द्वारा पहने जाने वाली तंग धोती को कहते हैं।
  • खोयतु-लंगोटिया भीलों में पुरुषों द्वारा कमर पर बांधी जाने वाली लंगोटी को कहते हैं।

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