ओम का नियम
- चालक के सिरों पर लगाया गया विभवान्तर (V) उसमें प्रवाहित धारा (I) के अनुक्रमानुपाती होता है।
I=\frac{V}{R}I=RV जहाँ, R प्रतिरोध है।
- धातुओं का ताप बढ़ाने पर उनका प्रतिरोध बढ़ता जाता है। अर्द्धचालकों का ताप बढ़ाने पर उनका प्रतिरोध घटता जाता है।
- विद्युत अपघट्य का ताप बढ़ाने पर उनका प्रतिरोध घट जाता है।
- धातुओं का विशिष्ट प्रतिरोध केवल धातुओं के पदार्थ पर निर्भर करता है।
- यदि किसी तार को खींचकर उसकी लम्बाई को बढ़ा दिया जाता है, तो उसका प्रतिरोध बदल जाता है, लेकिन उसका विशिष्ट प्रतिरोध अपरिवर्तित रहता है।
- किसी चालक के विशिष्ट प्रतिरोध के व्युत्क्रम को चालक की विशिष्ट चालकता कहते हैं। इसका मात्रक (ओम मीटर)-1होता है।
विद्युत सेल
- विद्युत सेल परिपथ के दो बिन्दुओं के बीच आवश्यक विभवान्तर बनाये रखता हैं ताकि विद्युत धारा का प्रवाह लगातार बना रहे। विद्युत सेल में विभिन्न रासायनिक क्रियायों से रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। विद्युत सेल में धातु की दो छड़ें होती है। वह छड जो धनावेशित होती हैं एनोड (anode) तथा ऋणावेशित छड़ (केथोड़) कहलाती है।
विद्युत सेल मुख्यत : दो प्रकार के होते है –
- प्राथमिक सेल –प्राथमिक सेलों में रासायनिक ऊर्जा को सीधे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। वोल्टीय सेल, लेक्लांशी सेल, डेनियल सेल, वुनसेन सेल आदि प्राथमिक सेलों के उदाहरण है –
– टॉर्च में भी प्राथमिक सेलों का प्रयोग किया जाता है।
– टॉर्च में प्रयुक्त सेल शुष्क सेल होते है जो लेक्लांशी सेलों के समान होते है।
- द्वितीयक सेल– द्वितीयक सेल में पहले विद्युत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा, फिर रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
– प्राथमिक सेलों में एक बार रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर लेने के पश्चात् सेल बेकार हो जाते है जबकि द्वितीयक सेल में ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने के साथ साथ इसमें व्यय हुई रासायनिक ऊर्जा को किसी बाह्य स्त्रोत से प्राप्त किया जाता है। इस सेल का आवेशन (Charging) कहते है। द्वितीयक सेलों का उपयोग मोटर कारों, ट्रकों, ट्रेक्टरों आदि के इंजनों को स्टार्ट करने में किया जाता है।