- गोगा नृत्य
- लोकदेवता गोगाजी की आराधना में किया जाने वाला नृत्य।
- यह नृत्य मुख्य रूप से गोगा नवमी (भाद्रपद कृष्णा नवमी) पर जहाँ गोगाजी के मेले भरते है वहां किया जाता है।
- इस नृत्य में भाग लेने वाले नर्तकों के गले में सर्प टंगे होते है। इनके साथ कुछ वादक होते हैं जो डेरू, ढोल और कटोरा बजाते चलते है।
- राह चलते-चलते यह नृत्य किया जाता है अतः इसे एक यात्रा नृत्य भी कहा जाता है।
- लोहे की साँकल पीठ पर मारकर किया जाने वाला नृत्य।
- ढोल नृत्य
- पेशेवर नृत्य की श्रेणी में जालोर का ढोल नृत्य बहुत प्रसिद्ध है।
- इस नृत्य में भाग लेने वाली प्रमुख जातियां – ढोली, सरगरा तथा भील है जो विवाह के अवसर पर नाचते है।
- इस नृत्य की शुरूआत ढोल वादक ‘थाकना’ शैली से करता है जिसमें एक साथ चार-पांच ढोल बजाए जाते है।
- ढोल वादक एक साथ तीन-तीन ढोल भी रखता है। ऐसी स्थिति में एक सिर पर, एक आगे तथा एक पीछे कमर तक लटकता रहता है।
- जालोर के ढोल नृत्य की प्रसिद्धि के संबंध में सीवाणा गांव के खीमसिंघ राठौड़ एवं एक सरगरी जाति की महिला के प्रेम की गौरव गाथा जुड़ी हुई है।
- ‘थाकना’ का शाब्दिक अर्थ है नृत्य के लिए बुलाना या नर्तकों में जोश भरना।
25.फूंदी नृत्य
- यह नृत्य सभी जाति की महिलाओं द्वारा किया जाता है।
- विवाह में विशिष्ट अवसरों पर मुख्यतः फूंदी ली जाती है।
- किसी भी नृत्य के बीच में उसकी शोभा द्विगुणित करने के लिए फूंदी ली जाती है।
- इस नृत्य में दो महिलाएँ आमने-सामने होकर एक-दूसरी के विपरीत, हाथ में हाथ थामे पांवो पर जोर देती हुई तनिक पीछे झुकती नृत्य मग्न होती है।
- इस नृत्य में चोटी के साथ बालों में फूंदी गुंथी जाती हैं जिसकी रंगबिरंगी लटकने ठेठ नीचे तक होती है।
- फूंदी लड़कियां भी लेती हैं तब अन्य लड़कियां ताली बजाती हुई ‘फूंदी रो फड़ाको जिये बाई रो काको’ पंक्ति उच्चारित करती है।
- हुरंगा नृत्य
- डीग (भरतपुर) में होली के अवसर पर किया जाने वाला प्रमुख नृत्य।
- कत्थक नृत्य
- कत्थक का आदिम घराना – जयपुर
- कत्थक का प्रचलित घराना – लखनऊ
- प्रसिद्ध कत्थक नृत्यागंना – उमा शर्मा
- पेजण नृत्य
- यह नृत्य बांसवाड़ा में दीपावली पर नारी का रूप धारण किये हुए पुरुषों द्वारा किया जाता है।
- नाहर नृत्य
- होली के अवसर पर यह नृत्य मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) में किया जाता है।
- इस नृत्य को प्रारंभ करने का श्रेय शाहजहाँ को दिया जाता है।
- चरकूला नृत्य
- यह नृत्य मूलतः उत्तर प्रदेश का है।
- इस नृत्य का सर्वाधिक प्रचलन भरतपुर जिले में है।
- यह नृत्य राधा की स्मृति में बेलगाड़ी के पहिए पर 108 दीपक जलाकर किया जाता है।
- खारी नृत्य
- मेवात (अलवर) में दुल्हन की विदाई पर उनकी सहेलियों द्वारा अपने हाथों की चुड़ियां बजाते हुए किया जाने वाला नृत्य।
- थाली नृत्य
- इस नृत्य में थाली को हाथों की अंगुलियों पर घुमाया जाता है।
- यह नृत्य पाबूजी के भक्तों द्वारा फड़ बाँचते समय किया जाता है।
- नौंटकी
- इस नृत्य का प्रारम्भ उत्तर प्रदेश से माना जाता है।
- भरतपुर में राजा भतृहरि की नौटंकी, राजा हरिश्चन्द्र की नौंटकी आदि प्रसिद्ध है।
- सांग नृत्य
- सांग से तात्पर्य स्वांग से है। सहरिया जाति के स्त्री-पुरुष का यह समूह नृत्य है।
- इसका आयोजन प्राकृतिक वातावरण में जंगलों और पहाड़ियों के बीच होता है। इसमें पुरुष और महिलाएं भाग लेते हैं।
- नर्तक पत्थर और जड़ी बूंटियों के विविध रंगों से अपने तन को विशेष रूप से सजाते हैं और भांति-भांति के स्वांग धारण करते हैं।
- इन स्वांगों में मनुष्य, देवी-देवता, जानवर, पक्षी तथा भूत प्रेत आदि से सम्बन्धित सभी तरह के स्वांग होते हैं।
- शूकर नृत्य
- शूकर से तात्पर्य सूअर से है। यह स्वांग-नृत्य है। इसमें प्रमुख आकर्षण सूअर बने नर्तक से है। इसे देखकर जन-साधारण में खलबली मच जाती है।
- नर्तक कलाकार शिकारी वेश में धोती के ऊपर घुटनों तक घुंघरू बांधे रहता है। बगलबंडी पर कमर में चमड़े का चौड़ा पट्टा बंधा रहता है। सिर पर पगड़ी तथा हाथ में लम्बी छड़ी रहती है जिससे वह सूअर द्वारा नाना प्रकार की नृत्यभंगिमाओं से दर्शकों को लोटपोट किये रहता है। इसके साथ शिकारी भी शिकार करने की मुद्रा लिये सूअर के पीछे नृत्य करता हुआ सबको अपनी ओर खींचे रहता है।
- नृत्य के समय अनेक भावों का प्रदर्शन बड़ा रोमांचकारी होता है।
- इसके अन्तर्गत शिकारी के हाथ में तीर कमान रहता है। दूसरे के पास भाला होता है तथा इसके साथ एक कलाकार और होता है जो कुत्ते का स्वांग लिये होता है।
- नृत्यमयी मुद्राओं में कुत्ता लिये शिकारी कभी-कभी दर्शकों के पीछे अपने कुत्ते को ‘लगैछू‘ कर भगदड़ सा माहौल पैदा कर हंसी मजाक की ठिठोली प्रस्तुत करता है।
- ढोल और थाली मुख्य वाद्य हैं। ढोल की आवाज बड़ी तेजी लिये होती है।
- यह नृत्य होली के दिनों में जालोर की ओर देखने को मिलता है।
- तहसील आहोर (जालौर) का बिजली गांव इस नृत्य के लिये प्रसिद्ध है। अब यह नृत्य लुप्त प्राय ही है।