राजस्थान सामान्य ज्ञान : लोक नृत्य

  1. ईला-ईली नृत्य
  • लोकदेव ईला-ईली के सम्मुख किया जाने वाला नृत्य।
  • लोकजीवन में प्रचलित मान्यता के अनुसार राजपरिवार से जुड़े हुए ये ईलोजी (ईला) राजा हिरण्यकश्यप के बहनोई थे।
  • ईलोजी की शादी से पहले ही होलिका जल कर मर चुकी थी जिसके वियोग में तड़पते हुए ईलोजी ने होलिका की राख को अपने शरीर पर लगाई तथा आजीवन कुंवारे रहे इसलिए आज भी जिसका विवाह नहीं हो पाता है उसे ‘ईलोजी’ नाम ही थरप दिया जाता है।
  • ईलोजी द्वारा अपने शरीर पर राख लपेटने का वही प्रसंग ‘धूलंडी’ नाम से प्रारंभ हुआ। इसलिए प्रथम दिन होलिका दहन होता है और दूसरे दिन ‘धूलंडी’ को सारे लोग धूल-गुलाल उछालते मौज-मस्ती करते हैं।
  • मेवाड़ में इस त्यौहार को मनाने की परम्परा ज्यादा है।
  • पुत्र कामना के लिए स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
  • ईलाजी की सवारी बाड़मेर में निकलती है।
  1. घूमर नृत्य
  • राजस्थान की आत्मा, रजवाड़ी नृत्य आदि उपनाम से प्रसिद्ध।
  • गणगौर व तीज पर किया जाने वाला अत्यन्त ही लोकप्रिय नृत्य।
  • इस नृत्य को राजस्थान का ‘राज्य नृत्य’ का गौरव प्राप्त है।
  • घूमर से तात्पर्य घूमने से है। यह नृत्य घूमते हुए गोलाई में महिलाओं द्वारा किया जाता है।
  • इस नृत्य में विशिष्ट प्रकार का घाघरा पहना जाता है। यह घाघरा कई कलियों का (108 कलियों तक) होता है। इसकी हर कली घेर लिए होती है।
  • प्रसिद्ध गीत : – ‘अस्सी कली रो घाघरो, कली-कली में घेर।’
  • घूमर में 8 मात्रा की ‘कहरवे’ (जमचे) की विशिष्ट चाल का प्रयोग किया जाता है इसे ‘सवाई’ कहते हैं।
  • ‘मछली नृत्य’ इसी का एक रूप है।
  • इस नृत्य में नाचती हुई महिलाएँ अपने हाथों को उठाती हुई ऊंगलियों द्वारा नाना भाव व्यक्त करती है।

घूमर तीन प्रकार का होता है :-

(1) घूमर – साधारण स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।

(2) लूर – गरासिया स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।

(3) झूमरियों – छोटी बालिकाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य।

  • विवाह के पश्चात् जब दूल्हा पहली बार अपने ससुराल बुलाया जाता है तब भी उसके स्वागत एवं उल्लास में घूमर नाची जाती है।
  • विविध रंगों की लूगड़ी, ओढ़नी, कांचली तथा लहँगा घूमर की खास पोशाक है। सलमा, सितारा तथा सुनहरी-रुपहरी कौर, किनारी गोटा आदि से लूगड़ा लहँगा सजा होता है।
  • गरासियों के घूमर में निराली छटा देखने को मिलती है। वर्षा ऋतु की उमंग में गरासिया पुरुष-महिलाएँ अलग-अलग रूप में वृत्त बनाकर नाचते हैं। ‘कैरवा (कहरवा) ताल पर जो नृत्य किया जाता है उसके बोल हैं – कालो पाणी पड़वो राज झरसरियो।
  • राजस्थान के मुख्य नृत्य के रूप में जाना जाता है।
  • लंहगे के घेर को ‘घुम्म” कहा जाता है।
  • घूमर नृत्य में मुख्य वाद्य- ढोल, नगाड़ा, शहनाई आदि होते हैं।
  • मुख्य गीत –

म्हाने घूमर छै नखराली ऐ माय।

घूमर रमवा म्है जास्यां ओ रजरी ।।

  1. कालबेलिया नृत्य
  • यह एक जाति विशेष का नृत्य है जो सांपो की दोस्त जाति है।
  • सांप पालक जाति होने के कारण ही इस जाति का नाम कालबेलिया पड़ा।
  • काल का अर्थ ही सांप से है और बेलिया से तात्पर्य दोस्त से है।
  • कालबेलिया महिलाएँ नृत्य करने में बड़ी प्रवीण होती है। ये अपने नृत्यों में बड़ी स्फूर्ति और लोच लिये जो अदाएँ प्रस्तुत करती है वे देखते ही बनती हैं। ऐसा लगता है जैसे उनके शरीर में हड्डियां ही नहीं है। इनके आकर्षक बोल और पूंगी की वादन शक्ति सबको अचंभित किये रहती है।
  • कालबेलियां नृत्य की विशेषता उनकी आकर्षक पोशाक भी है।
  • गुलाबो (जयपुर निवासी) इस नृत्य की प्रमुख नृत्यागंना है। जिसने कालबेलिया नृत्य को पूरे विश्व में प्रतिष्ठित किया।

कालबेलिया जाति के चार प्रमुख नृत्य :-

(1) शंकारिया नृत्य –

  • यह प्रेम कहानी पर आधारित एक युगल नृत्य है।
  • इसमें महिला और पुरुष दोनों भाग लेते है।
  • मुख्य वाद्य पूंगी, खंजरी, मोरचंग आदि।

(2) पणिहारी नृत्य –

  • यह महिला प्रधान नृत्य है जो राजस्थानी लोकगीत ‘पणिहारी’ पर किया जाता हैं।
  • यह नृत्य सिर पर 5-7 घड़े रखकर अंग संचालन करते हुए किया जाता है।

(3) इण्डोणी नृत्य –

  • यह कालबेलियों का प्रसिद्ध युगल नृत्य है।

(4) बागड़िया नृत्य –

  • यह नृत्य कालबेलिया स्त्रियों द्वारा भीख माँगते हुए किया जाता है।
  1. घुड़ला नुत्य
  • यह मारवाड़ का प्रमुख लोक नृत्य है जो शीतला अष्टमी से लेकर गणगौर तक किया जाता है।
  • यह महिलाओं का नृत्य है, इसमें वे अपने सिर पर मिट्टी की मटकी रखती हैं। इस मटकी के चारों ओर छोटे-छोटे छेद किये होते हैं।
  • मटकी के भीतर दीपक जलाकर रखा जाता हैं। छेद के माध्यम से दीपक की रोशनी बाहर छिटकती रहती है, रात्रि में ये किरणें बड़ी सुहावनी लगती हैं।
  • छेद वाली इस मटकी को ‘घुड़ला’ कहते हैं।
  • वि.सं. 1548 में अजमेर के मल्लूखां ने मेड़ता पर चढ़ाई की। वह पीपाड़ के पास कोसाना ग्राम में गोरी पूजा के लिए आई हुई 141 स्त्रियों को ले भागा। इसकी सूचना जब जोधपुर के राव सांतलजी को लगी तो उन्होंने तत्काल पीछा किया। वे नगर कन्याओं (तीजणियों) को तो छुड़ा लाये किन्तु युद्ध के दौरान वे इतने घायल हो गये कि बच नहीं पाये। मल्लूखां की सेना का प्रधान सेनानायक घडूला था जो मुठभेड़ में मारा गया। उसका सिर काटकर उन तीजणियों को दे दिया गया जिन्होंने उसे थाली में रखकर घर-घर घुमाया और इस भावना का संचार किया कि कन्याओं के अपहरणकर्त्ताओं को ऐसा दंड मिलता है।
  • इस नृत्य के अवसर पर गाया जाने वाला प्रमुख गीत –

घुड़लो घूमेला जी घूमेला

घुड़ले रे बांध्यो सूत घुड़लो घूमेला जी घूमेला

पाड़ोसण जायो पूत घुड़लो घूमेला जी घूमेला

सवागण बारे आव घुड़लो घूमेला जी घूमेला

मोत्यां रा आखा लाव घुड़लो घूमेला जी घूमेला

  • इस नृत्य में वाद्य यंत्र ढोल, बांकिया, थाली आदि होते हैं।

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