(5) मेहाजी :
- मांगलियों के ईष्ट देव होने के कारण इन्हें मांगलिया मेहाजी कहते हैं।
- इनके घोड़े का नाम – किरड़ काबरा।
- जैसलमेर के राव राणंगदेव भाटी से युद्ध करते हुए शहीद।
- बापिनी गाँव (ओसियां, जोधपुर) में प्रमुख पूजा स्थल।
- कृष्ण जन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्णा अष्टमी) को लोकदेवता मेहाजी की जन्माष्टमी मनाई जाती है।
मारवाड़ के पंच पीरों के अलावा अन्य लोक देवता
(6) तेजाजी :
- जन्म – 1074 ई., खड़नाल/खरनाल (नागौर) में, माघ शुक्ला चतुदर्शी को।
- तेजाजी नागवंशीय जाट थे।
- पिता का नाम-ताहड़जी जाट, माता का नाम-राजकुंवरी/रामकुंवरी, पत्नी-पेमलदे (पनेर के रायचन्द्र की पुत्री थी।)। 7 सितम्बर, 2011 को सचिन पायलट ने खरनाल (नागौर) में तेजाजी पर 5 रु. का डाक टिकट जारी किया।
- तेजाजी ने लाछा गुर्जरी की गायों को मेर (वर्तमान आमेर) के मीणाओं से छुड़ाया।
- सुरसरा (किशनगढ़, अजमेर) में जीभ पर साँप काटने से तेजाजी की मृत्यु।
- घोड़ी का नाम-‘लीलण‘।
- तेजाजी की मृत्यु की सूचना उनकी घोड़ी ने घर आकर दी।
- तेजाजी के पुजारी कोघोड़ला कहते थे।
- काला और बाला के देवता, कृषि कार्य़ों के उपकारक देवता, गौरक्षक देवता के रूप में पूजनीय।
- अजमेर व नागौर में विशेष पूजनीय।
- तेजाजी की याद में प्रतिवर्ष तेजादशमी (भाद्रपद शुक्ला दशमी) को परबतसर (नागौर) में भव्य पशु मेला भरता है जो आय की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला है।
- सेंदरिया, ब्यावर, भावतां, सुरसरा (अजमेर) तथा खरनाल (नागौर) में तेजाजी के प्रमुख पूजा स्थल है।
- साँप काटने पर तेजाजी के भोपेचबूतरे (तेजाजी के थान) पर पीड़ित व्यक्ति को ले जाकर गौ मूत्र से कुल्ला करके तथा दाँतों में गोबर की राख दबाकर साँप कांटे हुए स्थान से जहर चूसना प्रारम्भ करता है।
(7) देवनारायणजी :
- जन्म – 1243 ई., वास्तविक नाम-उदयसिंह।
- बगड़ावत परिवार में जन्म।
- इनके अनुयायी गुर्जर जाति के लोग इन्हेंविष्णु का अवतार मानते हैं।
- पिता-सवाईभोज, माता-सेढू देवी, पत्नी-पीपलदे।
- घोड़ा – लीलागर।
- देवनारायणजी के जन्म से पूर्व ही इनके पिता सवाईभोज भिनाय के शासक से संघर्ष करते हुए अपने 23 भाईयों सहित शहीद हो गये। बाद में देवनारायणजी ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया व लम्बी लड़ाईयाँ लड़ी, जिसकी गाथा‘बगड़ावत महाभारत‘ के रूप में प्रसिद्ध है।
- देवजी की फड़-गुर्जरजाति के कुँआरे भोपे जंतर वाद्य यंत्र के साथ बाँचते हैं। इनके मन्दिर में मूर्ति की बजाय ईंटों की पूजा नीम की पत्तियों के साथ होती है।
- 1 मंतर= 1 जंतर, जंतर वाद्य यंत्र को 100 मंतर (मंत्र) के समान माना गया है।
- सबसे प्राचीन फड़, सबसे लम्बी फड़ तथा सर्वाधिक प्रसंगों वाली फड़देवनारायण जी की फड़ है।
- भारत सरकार ने राजस्थान की जिस फड़ पर सर्वप्रथम डाक टिकट जारी किया वह देवनारायण जी की फड़ (2 सितम्बर, 1992 को 5 रु. का डाक टिकट) है।
- गुर्जरों का तीर्थ स्थल-सवाईभोज का मंदिर, आसीन्द (भीलवाड़ा)।
- जोधपुरिया (टोंक) में देवजी का प्रमुख पूजा स्थल है। देवबाबा के ग्वालों के पालनहार, कष्ट निवारक देवता आदि नामों से प्रसिद्ध है।
(8) देव बाबा :
- नगला जहाज गाँव (भरतपुर) में मंदिर।
- भाद्रपद शुक्ला पंचमी व चैत्र शुक्ला पंचमी को मेला भरता है।
- इनकी याद में चरवाहों को भोजन करवाया जाता है।
- देवबाबा की सवारी भैंसा होता है। इनका स्थान नीम के पेड़ के नीचे स्थित होता है।
(9) वीर कल्लाजी राठौड :
- जन्म – विक्रम संवत् 1601 में, जन्म स्थल- मेड़ता (नागौर)।
- पिता-राव अचलाजी, दादा-आससिंह।
- कल्लाजी मीराबाई के भतीजे थे।
- 1567ई. में अकबर के विरूद्ध तथा उदयसिंह के पक्ष में युद्ध करते हुए जयमल राठौड़ तथा पत्ता सिसोदिया सहित वीर कल्लाजी भी शहीद हुए। युद्ध भूमि में चतुर्भुज के रूप में वीरता दिखाए जाने के कारण इनकी ख्याति चार हाथों वाले लोकदेवता के रूप में हुई।
- कल्लाजी के सिद्ध पीठ को‘रनेला‘ कहते हैं।
- कल्लाजी के गुरु भैरवनाथ थे।
- चित्तौड़गढ़ किले के भैरवपोल के पास कल्लाजी की छतरी बनी हुई है।
- वीर कल्लाजी चार हाथों वाले देवता (शेषनाग का अवतार) वाले लोकदेवता के रूप में प्रसिद्ध हुए।
- नोट – डूंगरपुर जिले के सामलिया क्षेत्र में कल्लाजी की काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति पर प्रतिदिन केसर तथा अफीम चढ़ाई जाती है।
- कल्लाजी शेषनाग के अवतार के रूप में पूजनीय है।
- कल्लाजी के थान पर भूत-पिशाच ग्रस्त लोगों व रोगी पशुओं का इलाज होता है।
(10) भूरिया बाबा (बाबा गौतमेश्वर) :
- मीणा जाति के लोग भूरिया बाबा की झूठी कसम नहीं खाते।
- दक्षिण राजस्थान के गौड़वाड़ क्षेत्र में इनके मन्दिर हैं।
(11) मल्लीनाथ जी :
- जन्म – 1358 ई., पिता का नाम – राव सलखा (मारवाड़ के राजा), दादा – रावतीड़ा, माता का नाम – जाणीदे।
- खिराज नहीं देने के कारण 1378 ई. में मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन व फिरोजशाह तुगलक की संयुक्त सेना की तेरह टुकड़ियों ने मल्लीनाथ जी पर हमला कर दिया और मल्लीनाथ जी ने इन्हें हराकर अपनी पद व प्रतिष्ठा में वृद्धि की।
- प्रतिवर्ष इनकी याद में चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ला एकादशी तकतिलवाड़ा (बाड़मेर) में मल्लीनाथ पशु मेला आयोजित होता है, जहाँ पर मल्लीनाथ जी का प्रमुख मंदिर भी है।
- यहाँ तिलवाड़ा के पास ही मालाजाल गाँव में मल्लीनाथ जी की पत्नी रूपादे का मन्दिर है।
- गुरु – उगमसी भाटी (पत्नी रुपादे की प्रेरणा से मल्लीनाथ जी उगमसी भाटी के शिष्य बने)।
(12) बाबा तल्लीनाथ :
- वास्तविक नाम – गांगदेव राठौड़।
- मारवाड़ के राजा वीरमदेव के पुत्र तथा मंडोर के राजा राव चूँडा राठौड़ के भाई थे।
- तल्लीनाथ जी ने शेरगढ़ पर राज किया।
- जहरीला जानवर काटने पर तल्लीनाथ की पूजा की जाती है।
- तल्लीनाथ जी ओरण (धार्मिक मान्यता से पशुओं के चरने के लिए जो स्थान रिक्त छोड़ा जाता है) के देवता के रूप प्रसिद्ध।
- भारत की पहली ओरण पंचायत – ढोंक गाँव (चौहटन, बाड़मेर) है, जहाँ पर वीरात्रा माता का मंदिर है।
- जालौर के प्रसिद्ध लोकदेवता।
- जालौर जिले के पाँचोटा गाँव के निकट पंचमुखी पहाड़ी के बीच घोड़े पर सवार बाबा तल्लीनाथ जी की मूर्ति स्थापित है।
(13) वीर फत्ताजी :
- जन्म – साथूँ गाँव (जालौर)।
- गाँव पर लूटेरों के आक्रमण के समय इन्होंने भीषण युद्ध किया।
- इनकी याद में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला नवमी को मेला भरता है।
(14) बाबा झूंझारजी :
- जन्म – इमलोहा गाँव (सीकर)।
- भगवान राम के जन्म दिवस रामनवमी को स्यालोदड़ा (सीकर) में इनका मेला भरता है।
- बाबा झूंझारजी का स्थान सामान्यतः खेजड़ी के पेड़ के नीचे होता है।
(15) वीर बिग्गाजी :
- जन्म – जांगल प्रदेश। रीडी गाँव (बीकानेर)
- पिता – राव मोहन, माता – सुल्तानी देवी।
- बीकानेर के जाखड़ समाज के कुल देवता।
- मुस्लिम लूटेरों से गायों की रक्षा की।
(16) डूंगजी-जवाहरजी (गरीबों के देवता) :
- सीकर जिले के लूटेरे लोकदेवता, जो धनवानों व अंग्रेजों से धन लूटकर गरीबों में बांट देते थे। 1857 की क्रांति में सक्रिय भाग लिया।
(17) हरिराम बाबा :
- झोरड़ा (नागौर) में इनका पूजा स्थल है।
- गुरु – भूरा।
- इन्होंने साँप काटे हुए पीड़ित व्यक्ति को ठीक करने का मंत्र सीखा।
(18) पनराजजी :
- जन्म – नगा गाँव (जैसलमेर)।
- मुस्लिम लूटेरों से काठौड़ी गाँव के ब्राह्मणों की गायें छुड़ाते हुए शहीद हुए।
(19) केसरिया कुंवरजी :
- लोकदेवता गोगाजी के पुत्र।
- इनके थान पर सफेद रंग की ध्वजा फहराते हैं।
(20) भोमियाजी :
- गाँव-गाँव में भूमि रक्षक देवता के रूप में प्रसिद्ध।
(21) मामादेव :
- वर्षा के देवता।
- मामादेव का कोई मंदिर नहीं होता न ही कोई मूर्ति होती है।
- गाँव के बाहर लकड़ी के तोरण के रूप में मामादेव पूजे जाते हैं।
- इन्हें प्रसन्न करने के लिए “भैंस की कुर्बानी” दी जाती है। इनका प्रमुख मन्दिर स्यालोदड़ा (सीकर) में स्थित है। जहाँ प्रतिवर्ष रामनवमी को मेला भरता है।