(3) हड़बूजी :
- मारवाड़ के पंच पीरों में से एक हड़बूजी के पिता का नाम-मेहाजी सांखला (भुंडेल, नागौर)।
- हड़बूजी बाबा रामदेवजी के मौसेरे भाई थे।
- गुरु – बालीनाथ।
- संकटकाल में हड़बूजी ने जोधपुर के राजा राव जोधा को तलवार भेंट की और राव जोधा ने इन्हें बैंगटी (फलौदी, जोधपुर) की जागीर प्रदान की।
- बैंगटी में इनका प्रमुख पूजा स्थल है। यहाँ हड़बूजी की गाड़ी (छकड़ा/ऊँट गाड़ी) की पूजा होती है। इस गाड़ी में हड़बूजी विकलांग गायों के लिए दूर-दूर से घास भरकर लाते थे।
- हड़बूजी शकुन शास्त्र के ज्ञाता थे।
- हड़बूजी की सवारीसियार मानी जाती है।
(4) रामदेवजी :
- रामसा पीर, रूणेचा रा धणी व पीरां रा पीर नाम से प्रसिद्ध।
- रामदेव जी को कृष्ण का तथा उनके बड़े भाई बीरमदेव को बलराम का अवतार माना जाता है।
- पिता का नाम-अजमलजी तंवर, माता-मैणादे, पत्नी-नेतलदे (नेतलदे अमरकोट के राजा दल्लेसिंह सोढ़ा की पुत्री थी।)
- लोकमान्यता के अनुसार रामदेवजी का जन्म उंडूकाश्मीर गाँव (शिव-तहसील, बाड़मेर) में भाद्रपद शुक्ला द्वितीया को हुआ।
- समाधि-रूणेचा (जैसलमेर) में रामसरोवर की पाल पर भाद्रपद शुक्ला दशमी को ली।
- रामदेवजी के लिए नियत समाधि स्थल पर उनकी मुँह बोली बहिन डाली बाई ने पहले समाधि ली।
- रामदेवजी की सगी बहिनें – लाछा बाई, सुगना बाई।
- रामसापीर उपनाम से प्रसिद्ध बाबा रामदेवजी ने अपने जीवन काल में कई परचे (चमत्कार) दिखाये। उन्होंने मक्का से पधारे पंचपीरों को भोजन कराते समय उनका कटोरा प्रस्तुत कर उन्हें चमत्कार दिखाया जिससे मक्का के उन पीरों ने कहा कि हम तो केवल पीर हैं, पर आप तो पीरों के पीर हैं।
- प्रमुख शिष्य-हरजी भाटी, आईमाता।
- गुरु का नाम-बालीनाथ। बालीनाथजी का मन्दिर-मसूरिया, जोधपुर में।
- सातलमेर (पोकरण) में भैरव राक्षस का वध रामदेवजी ने किया।
- नेजा– रामदेवजी की पचरंगी ध्वजा।
- जातरू– रामदेवजी के तीर्थ यात्री।
- रिखियां– रामदेवजी के मेघवाल भक्त।
- जम्मा– रामदेवजी की आराधना में श्रद्धालु लोग रिखियों से जम्मा जागरण (रात्रि कालीन सत्संग) दिलवाते हैं।
- कुष्ठ रोग निवारक देवता।
- हैजा रोग के निवारक देवता।
- सवारी – लीला (हरा) घोड़ा।
- कामड़ पंथ का प्रारम्भ किया।
- राजस्थान में कामड़ पंथियों का प्रमुख केन्द्रपादरला गाँव (पाली) इसके अलावा पोकरण (जैसलमेर) व डीडवाना (नागौर) में भी कामड़ पंथी निवास करते हैं।
- तेरहताली नृत्य-रामदेवजी की आराधना में कामड़ जाति की महिलाएं मंजीरे वाद्य यंत्र का प्रयोग करके प्रसिद्ध तेरहताली नृत्य करती हैं।
– यह बैठकर किया जाने वाला एकमात्र लोकनृत्य है।
– तेरहताली नृत्य के समय कामड़ जाति का पुरुष तन्दुरा (चौतारा) वाद्य यंत्र बजाता है। इस नृत्य को करते समय नृत्यांगना तेरह मंजीरे (नौ दाहिने पांव पर, दो कोहनी पर तथा दो हाथ में) के साथ तेरह ताल उत्पन्न करते हुए तेरह स्थितियों में नृत्य करती है।
– यह एक व्यावसायिक/पेशेवर नृत्य है।
– प्रसिद्ध तेरहताली नृत्यांगनाएँ – मांगीबाई, दुर्गाबाई।
- रामदेवजी की फड़ कामड़ जाति के भोपे रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ बाँचते हैं।
- प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला द्वितीया को रामदेवरा (जैसलमेर) में बाबा रामदेवजी का भव्य मेला भरता है। पश्चिमी राजस्थान का यह सबसे बड़ा मेला साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए प्रसिद्ध है।
- रामदेवजी का प्रतीक चिहृ –पगल्यां (पत्थर पर उत्कीर्ण रामदेवजी के प्रतीक के रूप में दो पैर)।
- रामदेवजी एकमात्र ऐसे लोकदेवता थे, जो कवि थे।‘चौबीस बाणियां‘ रामदेवजी की प्रसिद्ध रचना है।
- रामदेवरा में स्थित रामदेवजी के मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने करवाया था।
- रामदेवजी के पूजा स्थल-रामदेवरा/रूणेचा (जैसलमेर), मसूरिया (जोधपुर), बिराठिया (पाली), बिठूजा (बालोतरा, बाड़मेर), सूरताखेड़ा (चित्तौड़गढ़), छोटा रामदेवरा (जूनागढ़, गुजरात)।