राजस्थान की अन्य लोक देवियाँ
- नागणेची– जोधपुर। जोधपुर के राठौड़ों की कुलदेवी। थान-नीम के वृक्ष के नीचे। 18 भुजाओं वाली प्रतिमा जोधपुर में राव बीका ने स्थापित करवाई थी।
- घेवर माता– राजसमन्द की पाल पर इनका मंदिर है। यह एक सती मन्दिर है। नोट – ये बिना पति के सती होने वाली देवी है।, राजसमन्द की पाल बनाने का श्रेय इन्हें ही जाता है।
- बाणमाता– राजसमंद। सिसोदिया राजवंश की कुल देवी।
- सिकराय माता– उदयपुरवाटी (झुंझुनूँ)। खण्डेलवालों की कुलदेवी।
- ज्वाला माता– जोबनेर। खंगारोतों की कुल देवी।
- सच्चियाँ माता– ओसियाँ (जोधपुर)। ओसवालों की कुलदेवी। मारू गुर्जर (सोलंकी) शैली में निर्मित।
- आशापुरी या महोदरी माता– मोदरां (जालौर)। जालौर के सोनगरा चौहानों की कुलदेवी।
- भदाणा माता– भदाणा (कोटा)। यहाँ मूठ से पीड़ित व्यक्ति का इलाज होता है।
- असावरी माता– निकुम्भ (चित्तौड़गढ़)। यहाँ लकवे का इलाज होता है।
- तनोटिया देवी– तनोट (जैसलमेर)। राज्य में सेना के जवान इस देवी की पूजा करते हैं। थार की वैष्णोदेवी। रूमालों वाली देवी। नोट- 1965 में पाक द्वारा गिराये गये बम निष्क्रिय हो गये थे। वर्तमान में यह मन्दिर “सीमा सुरक्षा बल” के अन्तर्गत आता है।
- महामाया माता– मावली। शिशु रक्षक लोकदेवी। (उदयपुर)
- शाकम्भरी देवी– शाकम्भरी (सांभर)। यह चौहानों की कुल देवी है।
- बड़ली माता– आकोला (चित्तौड़गढ़)। बेड़च नदी के किनारे मंदिर की दो तिबारियों में से बच्चों को निकालने पर उनकी बीमारी दूर हो जाती है।
- त्रिपुर सुंदरी (तुरताई माता)– तलवाड़ा (बाँसवाड़ा)। काले पत्थर में उत्कीर्ण मूर्ति है।
- क्षेमकरी माता– भीनमाल (जालौर)।
- लटियाल देवी– फलौदी (जोधपुर)।
- अम्बा माता– उदयपुर एवं अम्बानगर (आबूरोड़)।
- आसपुरी माता– आसपुर (डूँगरपुर)।
- छिंछ माता– बाँसवाड़ा।
- सुंडा देवी– सुंडा पर्वत (भीनमाल)।
- नारायणी माता– राजगढ़ (अलवर)।
- मरकंडी माता– निमाज।
- चारभुजा देवी– खमनौर (हल्दीघाटी)।
- दधिमति माता– गोठ-मांगलोद (जायल, नागौर)। यह दाधीच ब्राह्मणों की आराध्य देवी है।
- इंदर माता– इन्द्रगढ़ (बूँदी)।
- भद्रकाली– हनुमानगढ़।
- सीमल माता– वसंतगढ़ (सिरोही)।
- अधरदेवी– माउण्ट आबू (सिरोही)।
- भँवाल माता– भांवल ग्राम (मेड़ता, नागौर)।
- चौथ माता– चौथ का बरवाड़ा (सवाईमाधोपुर)।
- पीपाड़ माता– ओसियाँ (जोधपुर)।
- कैवाय माता– किणसरिया (परबतसर, नागौर)। किणसरिया (नागौर) में कैवाय माता का प्राचीन मन्दिर है। इस मन्दिर का निर्माण सांभर के चौहान शासक दुर्लभराज के सामन्त चच्चदेव ने वि. स. 1056 में करवाया था। मंदिर में दीवारों पर 10 शिलालेख और उत्कीर्ण हैं।
- बिरवड़ी माता– चित्तौड़गढ़ दुर्ग एवं उदयपुर।
- हिंगलाज माता– नारलाई (जोधपुर), लोद्रवा (जैसलमेर)
- अर्बुदा देवी– इनका मन्दिर माउण्ट आबू (सिरोही) में स्थित है। इन्हें राजस्थान की वैष्णों देवी के नाम से जाना जाता है।
- इडाणा माता– सलूम्बर (उदयपुर) में इनका मन्दिर है। आदिवासी इन्हें अग्नि स्नान करने वाली देवी कहते हैं।
- राजेश्वरी माता– भरतपुर में जाटों की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।
- चामुंडा माता (अजमेर)– सन् 1183 ई. में महामाया चामुण्डा देवी का यह भव्य सुन्दर मन्दिर पृथ्वीराज चौहान ने निर्मित करवाया था। देवी चामुण्डा – पृथ्वीराज चौहान की तथा चारण भाट कवि चंदबरदाई की इष्ट देवी थी।
- जोगणिया माता– ऊपरमाल (भीलवाड़ा)
– यात्रियों की मनोकामना पूरी होने पर मन्दिर परिसर में मुर्गे छोड़कर जाने की भी प्रथा है।
नोट – चरजा – चारण देवियों की स्तुति चरजा कहलाती है। जो दो प्रकार की होती है।
- सिघाऊ – शांति/सुख के समय उपासना
- घाडाऊ – विपत्ति के समय उपासना
ढाला – सात देवियों की सम्मिलित प्रतिमा स्वरूप
राजस्थान के ग्रामीण अंचलों में चबूतरेनूमा बने हुए लोकदेवताओं के पूजा स्थल ‘देवरे’ कहलाते हैं तो अलौकिक शक्ति द्वारा किसी कार्य को करना अथवा करवा देना “पर्चा देना” कहलाता है।