- भील –
– भील शब्द द्रविड़ भाषा के ‘बील’ का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है – तीर-कमान।
– राज्य की सबसे प्राचीन जाति।
– विस्तार – भील जनजाति राज्य में दूसरी प्रमुख जनजाति हैं। जिनका विस्तार बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, भीलवाड़ा, सिरोही व चितौड़गढ़ जिलों में हैं।
– भोमट :- मेवाड़ में भील आबादी क्षेत्र।
– कर्नल टॉड ने इन्हे मेवाड़ राज्य-अरावली पर्वत श्रेणियों में रहने वाले निवासी बताया हैं। कर्नल टॉड ने भीलों को ‘वन पुत्र’ की संज्ञा दी है।
– हेडन भीलों को पूर्व-द्रविड़, रिजले इन्हें द्रविड़, प्रो. गुहा इन्हें प्रोटो-ऑस्टोलायड प्रजाति से संबंधित मानते हैं।
– भील स्वयं को भगवान शिव की संतान मानते हैं।
– महाभारत में भीलों को निषाद कहा जाता था।
– सर्वाधिक भील आबादी – बाँसवाड़ा में।
– भील लोगों का आकार :- छोटे कद, काली त्वचा, चौड़ी नाक एवं जबड़ा कुछ बाहर निकला हुआ होता है।
वस्त्र व आभूषण –
– वस्त्र पहनने के आधार पर भीलों को दो वर्गों में बांटा गया हैं – (i) लंगोटिया भील (ii) पोतीदा भील
– खोयतू – लंगोटिया भीलों द्वारा कमर में पहने जाने वाली लंगोटी।
– कछावू – भील स्त्रियाँ घाघरा पहनती है जो घुटने तक नीचे होता हैं।
– फालू – भील लोग घर पर अपनी कमर पर अंगोछा लपेटा रखते है जिसे फालू कहते हैं। यह स्त्रियाँ भी पहनती हैं जिसे कछाव कहते हैं।
– ढेपाड़ा :- पुरुषों द्वारा कमर से घुटनों तक पहनी जाने वाली तंग धोती।
– पोत्या :- पुरुषों द्वारा सिर पर पहना जाने वाला सफेद साफा।
– सिन्दूरी :- दुल्हन की साड़ी जो लाल रंग की होती है।
– पीरिया :- भील समाज में दुल्हन द्वारा पहना जाने वाला पीले रंग का लहंगा।
– परिजनी :- भील महिलाओं द्वारा पैरों में पहनने की पीतल की मोटी चूड़ियाँ।
बस्तियाँ और घर –
– पाल – भीलों के बहुत से झोपड़ों का समूह पाल कहलाता हैं।
– तदवी – एक ही वंश की शाखा के भीलों के गाँवों को तदवी या वंसाओं कहा जाता हैं।
– पालवी – इनके मुखिया को पालवी कहते हैं।
– कू – भीलों के घरों को स्थानीय भाषा में कू कहा जाता हैं। इसे टापरा भी कहा जाता है।
– ढालिया :- टापरा के बाहर बना बरामदा।
– फलां – भीलों के छोटे गाँव।
– पाल – भीलों के बड़े गाँव।
– गमेती – भीलों के बड़े गाँव (पाल) का मुखिया।
सामाजिक व्यवस्था –
– भील जनजाति में संयुक्त परिवार प्रथा पाई जाती हैं।
– अटक :- भीलों का गौत्र।
– भीलों में मुख्यत: पितृसत्तात्मक परिवार पाया जाता है।
– भीलों में कुटुम्ब प्रथा विद्यमान है।
– बहुविवाह प्रथा एवं विधवा विवाह का प्रचलन।
– बाल विवाह की प्रथा का प्रचलन नहीं है लेकिन विधवा विवाह का अधिक प्रचलन है।
– भीलों में बहुपत्नी, देवर, नातरा विवाह, घर जमाई प्रथा आदि का प्रचलन हैं।
– दापा – भील जनजाति में विवाह के समय कन्या का मूल्य दिया जाता है जिसे दापा कहते हैं। यह वर पक्ष से लिया जाता हैं।
– फाइरे–फाइरे – खतरे के समय भीलों द्वारा किया जाने वाला रणघोष।
– बोलावा – भील जनजाति में मार्गदर्शक व्यक्ति।
– डाहल :- भीलों के गाँवों का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति।