राजस्थान की मिट्टिया
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(1) रैतीली बलुई मिट्टी : विस्तार- प्रधानतः जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर, बाड़मेर।
- इस मृदा में नाइट्रोजन व कार्बन तत्वों की कमी व कैल्सियम व फास्फेट लवण अधिकता में है।
- यहा मृदा बाजरे के लिए उपयुक्त है। मृदा कण मोटे होते हैं। जल धारण की क्षमता कम।
(2) भूरी रेतीली या लाल–पीली रेतीली मिट्टी : विस्तार-सर्वाधिक विस्तारित मृदा प्रकार इसे मरुस्थलीय मिट्टी भी कहा जाता है।
- इस मिट्टी में नाइट्रेट उपस्थित होता है। अतः यहां दलहनी फसलें उपस्थित होती हैं।
- जिले– गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, चूरू, जौधपुर, सीकर, झुन्झुनूं, बाड़मेर (कुछ हिस्सा बाड़मेर का), नागौर।
(3) सिरोजम/धूसर मिट्टी : यहां पर नाइट्रोजन (N) व कार्बन (C) तत्वों की कमी है लेकिन Ca लवण अधिक है।
- विस्तार– जालौर, सिरोही, पाली, अजमेर, नागौर व जयपुर, सीकर में भी इस मृदा का विस्तार है।
- इस मिट्टी का उर्वर शक्ति कम।
(4) पर्वतीय मिट्टी : अरावली पर्वत की तलहटी में।
- पर्वतीय मिट्टी कम गहरी होती है।
- पर्वतीय मिट्टी में पहाड़ी ढ़लानों पर स्थानान्तरित खेती की जाती है।
- उत्तरी पूर्वी भारत में इस तरह की कृषि को झूमिंग खेती कहते हैं।
- राजस्थान में गरासिया जनजाति जो स्थानान्तरित खेती करती है उसे वालरा कहते हैं।
- भील इस प्रकार की खेती को दजिया (मैदानी भागों में) या चिमाता (पहाड़ी तलहटी) कहते हैं। खेती – मक्का।
(5) लाल दोमट (लाल लोमी मृदा) : उत्तरी राजसमंद, पूर्वी प्रतापगढ़ व पूर्वी बांसवाड़ा को छोड़कर सम्पूर्ण उदयपुर संभाग में यह पाई जाती है।
- बारीक कण, नमी धारण की अधिक क्षमता।
- लोह तत्व के कारण मिट्टी का रंग लाल होता है।
- लोहा व पोटाश की अधिकता एवं Ca व P की कमी।
- मक्का, ज्वार की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त।
(6) मध्यम काली मिट्टी : पश्चिमी झालावाड़ को छोड़कर शेष कोटा संभाग में मध्यम काली मिट्टी होती है। इस मिट्टी का रेगुड़/रेगुर भी कहते हैं।
- ज्वालामुखी के लावा से निर्मित मृदा है। इस मिट्टी के कण सबसे महीन होते हैं। अतः जल धारण क्षमता सर्वाधिक है।
- कपास की खेती के लिए यह क्षेत्र उपयुक्त है।
- Ca व पोटाश की अधिकता तथा फॉस्फेट, नाइट्रोजन की कमी होती है।
(7) भूरी मिट्टी : बनास नदी का अपवाह क्षेत्र में यह मृदा मिलती है। भूरी – लाल + पीली।
- राजसमंद का उत्तरी भाग, टोंक, भीलवाड़ा, अजमेर, टोंक, सवाईमाधोपुर में पाई जाती है।
- नाइट्रोजनी एवं फास्फोरस तत्वों का अभाव।
- यह जौ की खेती के लिए उपयुक्त है परन्तु जौ सर्वाधिक जयपुर में होता है।
(8) कछारी/दोमट/जलोढ़ : बाणगंगा व करौली के मैदानी क्षेत्रों में (गंभीर नदी का क्षेत्र) यह मृदा है।
- यहां N तत्व सर्वाधिक है तथा यह राजस्थान की सर्वाधिक उपयुक्त (उपजाऊ) मिट्टी है।
- फास्फेट व कैल्शियम तत्वों की अल्पता।
- यहां गेहूँ, जौ, सरसों, तम्बाकू के लिए उपयुक्त है। जिले-अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, जयपुर व दौसा।
(9) लवणीय मिट्टी : खारे पानी की झीलों के आस-पास का क्षेत्र लवणीय मिट्टी वाला है।
- सेम समस्या वाले क्षेत्रों में – हनुमानगढ़, गंगानगर में तथा वस्त्र उद्योग (रंगाई – छपाई) वाले क्षेत्रों पाली, बालोतरा आदि में।
- कच्छ के रण का आस-पास का क्षेत्र व जालौर का कुछ भाग।
- क्षारीय एवं लवणीय मिट्टी को ऊसर, क्लर रेही या नमकीन मिट्टी भी कहते हैं। लवणीयता की समस्या कम करने हेतु रॉक फॉस्फेट का प्रयोग या सुबबूल (लुसिआना ल्यूकोसेफला) उगाना कारगर है।
- क्षारीयता की समस्या दूर करने हेतु जिप्सम की खाद या ग्वार की फसल की कटाई का प्रयोग किया जाता है।