ऊर्जा के स्रोत दो प्रकार के होते हैं-
ऊर्जा के परम्परागत ऊर्जा स्रोत (अनवीनकरणीय) – पेट्रोल, डीजल, केरोसिन, संपीडीत प्राकृतिक गैस (C.N.G.), L.P.G., कोयला इत्यादि।
नाभिकीय ईंधन– अनवीनकरणीय परन्तु गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत हैं।
वैकल्पिक/गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत (नवीनकरणीय)– बायोमास, बायोगैस, पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, जल ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा। (बार-बार उपयोग कर सकते हैं।)
पारिस्थितिकी तंत्र
(Eco System)
- जीवधारियों तथा उनके पर्यावरण के बीच पारस्परिक सम्बन्ध होता है, इसके अध्ययन को पारिस्थितिकी (Ecology) कहते हैं तथा इस तंत्र को पारिस्थितिकी तंत्र कहते हैं।
- इकोलॉजी शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों (Gr oikas = वास स्थान एवं logos = अध्ययन) से मिलकर बना है।
- पारिस्थितिकी तंत्र का सर्वप्रथम प्रयोगटान्सले ने 1935 ई. में किया था।
- जैविक घटक:
- पादपों एवं जन्तुओं से मिलकर जैविक घटक बनते हैं। यह तीन प्रकार के होते हैं- उत्पादक 2. उपभोक्ता 3. अपघटक।
- उत्पादक– इसके अन्तर्गत वे घटक आते हैं, जो अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। जैसे- सभी हरे पौधे। उत्पादक CO2 व O2 के अनुपात को वातावरण में बनाए रखते हैं।
- उपभोक्ता– इसके अन्तर्गत वे जीव आते हैं, जो उत्पादक द्वारा बनाए गए भोज्य पदार्थ़ों का उपभोग करते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं-
(i) प्राथमिक उपभोक्ता– इसके अन्तर्गत वे जीत आते हैं, जो हरे पौधों या उनके किसी भाग को खाते हैं। जैसे- गाय, भैंस, बकरी, टिड्डियाँ इत्यादि।
(ii) द्वितीयक उपभोक्ता– इसके अन्तर्गत वे जीव आते हैं, जो प्राथमिक उपभोक्ताओं को अपने भोजन के रूप में प्रयुक्त करते हैं। जैसे- बिल्ली, भेड़िया, मोर इत्यादि।
(iii) तृतीयक उपभोक्ता– इसके अन्तर्गत वे जीव आते हैं, जो द्वितीयक उपभोक्ताओं को खाते हैं, जैसे- बाघ, शेर, चीता इत्यादि।
- अपघटक– इसके अन्तर्गत जीवाणु तथा कवक आते हैं, जो सभी प्रकार के उपभोक्ताओं तथा उत्पादकों को अपघटित करके वायुमण्डल में अकार्बनिक तत्वों के रूप में विसर्जित कर देते हैं। ये भौतिक वातावरण में मिल जाते हैं। तत्पश्चात् हरे पौधे इन्हें अवशोषित करके भोजन में परिवर्तित कर देते हैं। इसे पुनः प्राथमिक उपभोक्ता ग्रहण कर लेते हैं और यह चक्र चलता रहता है।