कृषि व चिकित्सा क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग
- जीन अभियांत्रिकी के अनुप्रयोग से मानव सभ्यता का कोई क्षेत्र वर्तमान में अछूता नहीं है। जहाँ एक ओर चिकित्सा के क्षेत्र में इसके द्वारा नित नई वेक्सीन (Vaccine) एवं औषधियों का निर्माण किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर उद्योगों में उत्पादन की गुणवत्ता एवं उत्पादन की मात्रा में निरन्तर उन्नयन किया जा रहा है। पर्यावरण सरंक्षण जैसे क्षेत्रों में भी जीन-अभियांत्रिकी ने नई आशाएँ जगाई है। वन्य जीव संरक्षण एवं संकट ग्रस्त प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाने के क्षेत्र में भी अब यह क्षेत्र अपनी घुसपैठ कर चुका है। हालांकि जैव-अभियांत्रिकी के विस्तृत अनुप्रयोगों को एक ही स्थान पर समेटना संभव नहीं है फिर भी यहाँ परिक्षोपयोगी अनुप्रयोगों का विवरण दिया जा रहा है –
- एल्कोहॉल की अधिक सांद्रता के प्रति प्रतिरोधी यीस्ट का निर्माण
- एंजाइम का निर्माण– एंजाइम ऐसे रसायन (प्रोटीन) हैं जो जैव-अभिक्रिया में भाग लिए बिना अभिक्रिया की गति को नियंत्रित करते हैं। अब तक लगभग 2200 एंजाइमों का पता लगाया जा चुका है। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण इंजाइम हैं – प्रोटीएज (डिटर्जेंट बनाने में), एमाइलेज (बीयर, ब्रेड व वस्त्र उद्योग में), टेनेज (पनीर में), लैक्टेज (दही में)।
- नई एवं अधिक प्रभावी प्रतिजैविकों का निर्माण।
- नये टीकों का निर्माण।
- स्टेरॉयड का निर्माण– स्टेरॉयड वे जैव-रसायन हैं, जो शरीर में अत्यंत आवश्यक पदार्थों जैसे हार्मोनों आदि के निर्माण में सहायक होते हैं। सर्वाधिक व्यापक उपयोग किए जाने वाले स्टेरॉयड हार्मोन एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रान हैं जो गर्भ-निरोधक गोलियों के निर्माण में काम आते हैं।
- इंसुलिन का निर्माण– यह एक हार्मोन है जो मनुष्य एवं अन्य स्तनधारियों के अग्नाशय में बनता है। वर्तमान में मधुमेह की चिकित्सा के लिए इंसुलिन का निर्माण मवेशियों व सुअरों के अग्याशय से किया जाता है। किन्तु इसके दुष्प्रभाव भी है। हाल ही में ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा एवं इटली में चिकित्सा वैज्ञानिकों को मधुमेह के मरीजों के अग्नाशय में इंसुलिन पैदा करने वाली कोशिकाओं के सफल प्रत्यारोपण से मधुमेह के इलाज में एक बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है।
- जैव उर्वरकों का विकास एवं निर्माण
- रासायनिक प्रदूषण के विरूद्ध प्रदूषण नियंत्रक व तेल की पुनः प्राप्ति के लिए नये जीवाणु का निर्माण।