भारत में जैव प्रौद्योगिकी
- 1982 में भारत सरकार ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अन्तर्गत ‘राष्ट्रीय जैव-प्रौद्योगिकी बोर्ड’ ‘National Bio Technology Board NBTB) की स्थापना की। 1986 में NBTB को एक स्वतंत्र विभाग DBT (Department of Bio Technology) में परिवर्तित कर दिया गया। जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत में हुए विकास को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के आह्वान पर विकासशील देशों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय जीन-अभियांत्रिकी पर एवं जैव-प्रौद्योगिकी केन्द्र (International Centre for Genetic Engineering and Bio Technology – ICGEB) की स्थापना 1988 में की गई। इसके दो मुख्य केन्द्र नई दिल्ली (भारत) तथा ट्रिस्टे (इटली) में कार्यरत हैं।
- ICGEB के द्वारा 18 से 22 दिसम्बर 1988 को नई दिल्ली में एक अन्तर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें विदेशों के 60 वैज्ञानिकों ने भाग लिया। भारत में जैव-प्रौद्योगिकी को एक बढ़ते हुए बाजार के रूप में देखा जा रहा है। वर्तमान में जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों का कुल उपभाग 90 बिलियन रूपये है। वर्ष 2010 में 234 बिलियन हो जाने की संभावना है।
- जैव प्रौद्योगिकी के त्वरित व्यवसायीकरण के लिए DBT ने बायोटेक कन्सोरटियम ऑफ इंडिया लिमिटेड (BCIL) की स्थापना की है जो जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तकनीकी हस्तांतरण, कार्ययोजना सलाह, सम्बन्धित जानकारी उपलब्ध कराना एवं श्रमिकों को तकनीकों प्रशिक्षण उपलब्ध करना आदि कार्य कर रहा है। इसके द्वारा ही डोप टेस्ट विधि का विकास किया गया है।
पुनर्योजित DNA तकनीक
- जैव प्रोद्योगिकी की एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपलब्धि पुनर्योजित डी.एन.ए. तकनीक है।
- इसके क्षरा एक जीवधारी के इच्छित जीन को दूसरे में स्थानांतरित किया जा सकता है।
- इस तकनीक का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपयोग इच्छित टीकों (Vaccines) के निर्माण में किया जा सकेगा।
- जीवाणुओं तथा वायरस से उत्पन्न होने वाले रोगों के निमंत्रण के लिए टीके बहुत उपयोगी होते हैं। लेकिन बढ़िया, सस्ते और सुरक्षित टीके प्राप्त करना एक गंभीर समस्या रही है लेकिन पुनर्योजी डी.एन.ए. तकनीक ने इसको सम्भव कर दिया है।
- इस तकनीक में एक जीव से वांछित गुणवाली जीन निकालकर उसे उपयुक्त तरीके से संयोजित करके एशोरिकिया कोलाई आदि (Eschorichia Coli) आदि बैक्टीरिया में प्रविष्ट कराया जाता है।
- इस तकनीक से बड़ी मात्रा में प्रोटीन का उत्पादन भी किया जा सकता है।
- पुनर्योजी N.A. तकनीक का इस्तेमाल मानव इन्सुलिन तैयार करने में भी किया गया है। अभी तक यह इन्सुलिन मारे गए सुअरों और मवेशियों के अग्नाशय ग्रन्थियों से तैयार किया जाता रहा है।