राजस्थान सामान्य ज्ञान : विभिन्न रियासतों में जन-आन्दोलन व प्रजामण्डल

विभिन्न रियासतों में जनआन्दोलन प्रजामण्डल

  • 1927 ई. में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् की स्थापना के साथ ही सक्रिय राजनीति का काल आरम्भ हुआ। कांग्रेस का समर्थन मिल जाने के बाद इसकी शाखायें स्थापित की जाने लगी। 1931 ई. में रामनारायण चौधरी ने अजमेर में देशी राज्य लोक परिषद् का प्रथम प्रान्तीय अधिवेशन आयोजित किया।
  • 1938 ई. में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पारित कर देशी रियासतों के लोगों द्वारा चलाये जाने वाले स्वतंत्रता संग्राम को नैतिक समर्थन दिया। कांग्रेस के इस प्रस्ताव से देशी रियासतों में चल रहे स्वतंत्रता संग्राम को नैतिक समर्थन मिला। इन राज्यों में चल रहें आन्दोलन प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस से जुड़ गये और राजनीतिक चेतना का विस्तार हुआ। प्रजामंण्डल की स्थापना हुई, जिसने देशी शासकों के अधीन उत्तरदायी प्रशासन की मांग की।

जोधपुर

  • राजनीतिक गतिविधियाँ 1918 ई. में ही आरंभ हो गई थी जब चाँदमल सुराणा ने मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना की।
  • 1920 ई. में जय नारायण व्यास ने मारवाड़ सेवा संघ स्थापित किया।
  • 1923 ई. में मारवाड़ हितकारिणी सभा को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया। अक्टूबर, 1929 ई. में व्यासजी ने मारवाड़ राज्य लोक परिषद् की स्थापना की।
  • मारवाड़ नरेश उम्मेदसिंह के प्रधानमंत्री सुखदेव प्रसाद काक ने अवसरवादी लोगों को उकसा कर ‘राजभक्त देश हितकारिणी सभा‘ गठित की।
  • 1931 में मारवाड़ यूथ लीग स्थापित।
  • 1934 ई. में जोधपुर में प्रजामण्डल की स्थापना हुई जिसके अध्यक्ष भंवरलाल सर्राफ थे। इसका उद्देश्य उत्तरदायी शासन स्थापित करना व नागरिक अधिकारों की रक्षा करना था। 1936 ई. में इस संस्था को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया। 1938 में मारवाड़ लोक परिषद् का गठन। रणछोड़दास गट्टानी इसके अध्यक्ष व अभयमल जैन महासचिव थे।
  • जनवरी 1938 में सुभाष चन्द्र बोस ने जोधपुर के लोगों को स्वतंत्रता प्राप्ति व त्याग व समर्पण के लिए प्रेरित किया।
  • जोधपुर प्रजामंण्डल को असंवैधानिक घोषित किये जाने के बाद से लोक परिषद् में संवैधानिक अधिकारों व उत्तरदायी शासन के लिये संघर्ष जारी रखा।
  • मार्च, 1940 ई. में परिषद् को गैर कानूनी संस्था घोषित कर दिये जाने के बाद सदस्यों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनों पर ध्यान केन्द्रित किया। इसके मुख्य नेता जैसे रणछोड़ दास गट्टानी, मथुरादास माथुर, कन्हैया लाल, इन्द्रमल जैन आनंदराज सुराणा, भंवरलाल सर्राफ आदि ने अपना सारा ध्यान परिषद् की विचारधारा लोकप्रिय बनाने में लगाया।
  •  28 मार्च 1942 ई. में लोक परिषद् ने अत्याचारों के विरूद्ध व राज्य में उत्तरदायी शासन के लिये आन्दोलन आरम्भ किया। व्यास जी ने परिषद् का विधान स्थगित करके स्वयं को प्रथम डिक्टेटर नियुक्त किया और जोधपुर में भारत छोड़ो आन्दोलन संचालित किया। 28 मार्च, 1942 को लोक परिषद् द्वारा मारवाड़ में उत्तरदायी दिवस मनाने की घोषणा।
  • 19 जुन 1942 में प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारियाँ व भूख हड़ताल हुई जिसमें बाल मुकुन्द बिस्सा की मृत्यु हो गई।
  • 1946 ई. के नौवें अधिवेशन में परिषद् ने में महाराजा को संवैधानिक अध्यक्ष के रूप में कार्य करने को कहा व पूर्ण उत्तरदायी सरकार की स्थापना की मांग की। महाराजा ने अपने जागीरदारों को इस आन्दोलन को रोकने की सलाह दी जिसकी परिणति 13 मार्च, 1947 ई. को डाबरा कांड में हुई, जिसमें डीडवाना के जागीरदारों ने कार्यकर्त्ताओं पर अमानवीय अत्याचार किये।
  • नये महाराजा हनुवंत सिंह द्वारा सत्ता ग्रहण के बाद भी पूर्व निर्धारित नीति जारी रही।
  • अक्टूबर, 1947 ई. में नवनिर्मित मंत्रिमण्डल जागीरदार व महाराजा के रिश्तेदारों से भरा था।
  • 14 नवम्बर, 1947 ई. को परिषद् ने हनवन्त सिंह के विरोध में विधानसभा विरोध दिवस मनाया।
  • 1948 ई. में विलय पत्र पर हस्ताक्षर के बाद ही उत्तरदायी सरकार का गठन हो पाया।

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