राज्य पुष्प
- रोहिड़ा – ये पश्चिमी राजस्थान में अर्द्ध शुष्क मरुस्थल में फैला हुआ है। शेखावाटी, लूनी बेसिन व नागौर जिले में सर्वाधिक पाया जाता है। राज्य सरकार द्वारा 31 अक्टूबर, 1983 को ‘राज्य पुष्प‘ घोषित किया गया। रोहिड़ा के फूल को मरुस्थल का सागवान/राजस्थान का सागवान/मारवाड़ टीका/ राजस्थान की मरु शोभा / इसका वानस्पतिक नाम ‘टीकोमेला एण्डूलेटा‘ है।
- यह चैत्र माह (मार्च-अप्रैल) में खिलता है। जिसका रंग हिरमिच (पीला+केसरिया लाल नारंगी) का होता है।
राज्य वृक्ष
- खेजड़ी – इसका वानस्पतिक नाम प्रोसोपिस सिनेरेरिया है। राज्य सरकार द्वारा 31 अक्टूबर, 1983 को ‘राज्य वृक्ष’ घोषित किया गया। खेजड़ी वृक्ष पश्चिमी राजस्थान में सर्वाधिक पाया जाता है, इसे ‘राजस्थान का कल्प वृक्ष / राजस्थान का गौरव / राजस्थान का कल्पतरु / थार का कल्पवृक्ष’ आदि उपनामों से जाना जाता है। खेजड़ी वृक्ष की विजयदशमी / दशहरे पर पूजा की जाती है। हाल ही में खेजड़ी वृक्ष ‘सलेस्ट्रना नामक कीड़े व ग्राइकोट्रामा नामक कवक’ का शिकार हो रहा है। खेजड़ी वृक्ष रेगिस्तान के प्रसार को रोकने के लिए उपयोगी माना जाता है। खेजड़ली दिवस 12 सितम्बर, 1978 से प्रतिवर्ष मनाया जाता है। खेजड़ी वृक्ष की हरी पत्तियों को लूम, सूखने के बाद खोखा व फली को साँगरी कहते हैं। सर्वाधिक शेखावटी क्षेत्र में पाया जाता है।
- खेजड़ी को अन्य भाषाओं में निम्न नामों से जाना जाता है –
1. स्थानीय नाम – जांटी
2. राजस्थानी भाषा में – सीमलो
3. वैदिक ग्रन्थों में – शमी
4. सिन्धी भाषा में – छोकड़ो
5. कन्नड़ भाषा में – बन्नी
6. तमिल भाषा में – पेयमये - इसी वृक्ष को बचाने के लिए मारवाड़ के शासक अभयसिंह के काल में 1730 ई. में अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व में 363 लोगों ने बलिदान दिया। इसी कारण इस घटना को राजस्थान का चिपको आंदोलन भी कहते हैं।
- 5 जून, 1988 में खेजड़ी वृक्ष पर 60 पैसे का डाक टिकट जारी किया गया था, तो 1991 में खेजड़ी वृक्ष को बचाने के लिए ‘ऑपरेशन खेजड़ा’ शुरू किया गया।