मूल अधिकार और निदेशक तत्वों का संबंध-
- मूल अधिकार और निदेशक तत्वों के बीच पहला विवाद 1950 में ’चंपकम दोरई राजन वाद‘ में सामने आया, जिसके अंतर्गत् न्यायपालिका ने मूल अधिकारों को प्राथमिकता दिया और मद्रास सरकार द्वारा जाति के आधार पर दिए गए आरक्षण को अवैध घोषित कर दिया।
- इंदिरा गाँधी सरकार के द्वारा पहली बार 25वें संविधान संशोधन के द्वारा निदेशक तत्व को मूल अधिकारों पर प्राथमिकता प्रदान किया गया। 25वें संविधान संशोधन के अनुसार, निदेशक तत्वों के अनुच्छेद-39, (b)(c) को लागू करने के लिए मूल अधिकारों के अनुच्छेद-14, 19, 31 का उल्लंघन किया जा सकता है।
- केशवा नंद भारतीवाद (1973) में न्यायपालिका ने पहली बार निदेशक तत्वों की प्राथमिकता को स्वीकार किया। न्यायपालिका ने 25वें संविधान संशोधन को वैध माना, जिसमें अनुच्छेद-39, (b)(c) को लागू करने के लिए मूल अधिकार के भाग-14, 19 एवं 31 का उल्लंघन किया जा सकता है।
- मिनर्वा मिल्स वाद (1980) में न्यायपालिका ने कहा, निदेशक तत्वों के अनुच्छेद-39, (b), (c) अनुच्छेद-14, 19, 31 से प्राथमिक हैं। शेष निदेशक तत्व एवं मूल अधिकार एक-दूसरे के पूरक हैं।
आलोचना-
- आइवर जेनिंग्स के अनुसार, ’निदेशक तत्व, पुण्य आत्माओं की महत्वाकांक्षा मात्र है।‘
- टी. टी. कृष्णमचारी ने इसे ’भावनाओं का कूड़ेदान मात्र‘ कहा।
- प्रो. के. टी. शाह के अनुसार, ’एक ऐसा चेक कहा, जिसका भुगतान बैंक की इच्छा पर निर्भर है।‘
- के. सी. ह्वीयर ने आलोचना करते हुए कहा, कि ’निदेशक तत्वों के कारण, न्यायालय और विधान मंडल में टकराव होगा, जिससे संविधान की प्रतिष्ठा कम होगी। यदि इन घोषणाओं को केवल शब्द ही मानना है, तो इससे संविधान की विश्वसनीयता कम होगी।‘
- आइवर जेनिंग्स के अनुसार, ’निदेशक तत्व, 19वीं सदी के इंग्लैण्ड का फेबियन समाजवाद है, जिसमें समाजवाद नहीं है।‘
प्रशंसक-
- डॉ. अम्बेडकर के अनुसार, ’निदेशक तत्वों के द्वारा आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना होगी, जो राजनीतिक लोकतंत्र से भिन्न है। निदेशक तत्व, उन आदेश पत्रों के समान है, जिन्हें पहले ब्रिटिश सरकार गवर्नर जनरल या उपनिवेशों के गवर्नर को भेजा करती थी।‘
- कृष्णमूर्ति राव के अनुसार, ’निदेशक तत्व, समाजवादी सरकार के मूल मर्म हैं।‘
- पाणिक्कर ने निदेशक तत्वों को आर्थिक क्षेत्र में समाजवाद की संज्ञा दी।
- ग्रेनविल ऑस्टिन ने इसे सामाजिक क्रांति का उद्देश्य कहा।
- ठाकुरदास भार्गव ने इसे संविधान का सारतत्व कहा।
- अल्लादि कृष्णास्वामी एय्यर के अनुसार, ’कोई भी लोकप्रिय मंत्रिमंडल संविधान के भाग-4 के उपबंधों का उल्लंघन नहीं करेगा।‘
42वें (1976), 44वें (1978) संशोधन द्वारा जोड़े गए निदेशक तत्व-
- निःशुल्क विधिक सहायता एवं समान न्याय का अधिकार। (अनुच्छेद-39, (A))
- श्रमिकों की औद्योगिक प्रबंध में भागीदारी। (अनुच्छेद-43, (A))
- राज्य का यह कर्त्तव्य होगा, कि वह पर्यावरण की सुरक्षा और संवर्द्धन करे, वन्य और वन्य जीवों की सुरक्षा करे। अनुच्छेद-38 में संशोधन किया गया। (अनुच्छेद-48, (A))
- राज्य के द्वारा आय में विषमता को न्यूनतम किया जाएगा और प्रस्थिति, सुविधाओं और अवसर की विषमता को कम किया जाएगा। (44वें संशोधन)
नीति निदेशक तत्व (संविधान में वर्णित)-
- निदेशक तत्वों को निम्नलिखित रूपों में भी व्यक्त किया जा सकता है-
(i) राज्य के आदर्श।
(ii) राज्य की नीतियों के लिए निर्देश।
(iii) नागरिकों के अवादयोग्य अधिकार।
(i) राज्य के आदर्श-
- राज्य के द्वारा लोगों का कल्याण किया जाएगा तथा सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय का निर्माण होगा। अवसर की समानता, व्यक्ति और समूहों को प्राप्त होंगी तथा आय प्रस्थिति की विषमता को कम करने का प्रयास किया जाएगा।