निदेशक तत्व
(DIRECTIVE PRINCIPLES)
- भारतीय संविधान में निदेशक तत्वों का उल्लेख भाग-4 के अनुच्छेद-36 से 51 तक किया गया है।
- निदेशक तत्व, आयरलैंड के संविधान से लिए गए हैं।
भाग-4 के अलावा वर्णित निदेशक तत्व-
- भाग-4 के अलावा संविधान के अन्य भागों में भी निदेशक तत्वों का उल्लेख है-
(i) अनुच्छेद-335 में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को आरक्षण प्रदान करते समय प्रशासनिक कुशलता का ध्यान रखें।
(ii) अनुच्छेद-350, A में अल्पसंख्यकों के बच्चों को उनकी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराना।
(iii) अनुच्छेद-351 में हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करना।
निदेशक तत्व (ऐतिहासिक उत्पत्ति)-
- संविधान सभा में, निदेशक तत्वों का निर्माण मूल अधिकारें की उपसमिति के द्वारा किया गया, क्योंकि संविधान सभा में, निदेशक तत्वों के लिए किसी समिति का निर्माण नहीं किया गया, बल्कि मूल अधिकारों की उपसमिति (अध्यक्ष जे. बी. कृपलानी) के द्वारा इसका निर्माण हुआ।
- आरंभ में मूल अधिकारों को अत्यधिक व्यापक रूप में सम्मिलित करने का विचार था, परंतु व्यावहारिक कारणों से मूल अधिकारों को दो भागों में विभाजित कर दिया गया-
निदेशक तत्त्वों की प्रकृति-
- निदेशक तत्व, अवादयोग्य हैं, जिसका अभिप्राय है, कि इन्हें लागू करने के लिए कोई व्यक्ति न्यायपालिका का सहारा नहीं ले सकता।
- उच्चतम न्यायालय ने ’महर्षि अवधेश बनाम् भारत संघवाद‘ (1994) में याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज करते हुए कहा, कि समान नागरिक संहिता के निर्माण के लिए सरकार को निर्देश या परमादेश नहीं दिया जा सकता, बल्कि यह विधायिका के विधि निर्माण का मुद्दा है।
अनुच्छेद-37-
- इस भाग में, वर्णित प्रावधानों को न्यायपालिका द्वारा लागू नहीं कराया जा सकता, बल्कि निदेशक तत्व देश के शासन के मूलभूत नियम हैं। राज्य का यह कर्त्तव्य होगा, कि वह इन निदेशक तत्वों का प्रयोग विधि निर्माण के लिए करे।
- परंतु सरकार द्वारा विधि बनाकर और संविधान संशोधन द्वारा इन्हें लागू किया जा रहा है।
- अनुच्छेद-365 में स्पष्ट उल्लिखित है, कि यदि राज्य, संघ द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन नहीं करते, तो राष्ट्रपति के लिए ऐसा मानना वैधानिक होगा, कि राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं चलाई जा रही है। अतः अनुच्छेद-356 का प्रयोग किया जा सकता है परंतु व्यावहारिक रूप में आज तक ऐसा नहीं किया गया है।