प्रधानमंत्री के कार्य-
- प्रधानमंत्री के कार्यो का संविधान में स्पष्ट व सीधा उल्लेख नहीं है, परंतु व्यावहारिक रूप में प्रधानमंत्री के द्वारा निम्नलिखित कार्य संपादित किए जाते हैं-
(i) प्रधानमंत्री, शासन का नीति निर्माता होता है।
(ii) मंत्रिपरिषद की बैठकों की अध्यक्षता करता है।
(iii) मंत्रिपरिषद और राष्ट्रपति के मध्य कड़ी का कार्य करता है।
(iv) मंत्रियों के विभागों का बँटवारा करता है।
(v) विभागों में फेरबदल करता है।
(vi) प्रधानमंत्री की मृत्यु के बाद पूरा मंत्रिपरिषद् विघटित हो जाता है, क्योंकि प्रधानमंत्री, समकक्षों में प्रधान होता है।
(vii) प्रधानमंत्री की स्थिति, समकक्षों में प्रथम की होती है।
महत्वपूर्ण तथ्य-
- भारतीय संसदीय व्यवस्था में मंत्री किसी भी सदन से लिये जा सकते हैं तथा मंत्री के रूप में वह दोनों सदनों की चर्चा में भाग ले सकते हैं। लेकिन मतदान केवल उसी सदन में करेंगे, जिसके वह सदस्य होंगे।
- श्रीमती इंदिरा गाँधी जब पहली बार प्रधानमंत्री बनीं, तब वह राज्य सभा की सदस्या थीं।
- इन्द्र कुमार गुजराल भी प्रधानमंत्री होने के समय राज्य सभा के सदस्य थे। जबकि देवीगौड़ा और नरसिंहराव बिना किसी सदन के सदस्य होते हुए भी प्रधानमंत्री हुए तथा बाद में देवीगौड़ा ने राज्य सभा की सदस्यता ली तथा नरसिंहराव ने लोक सभा का चुनाव जीता।
- छः (6) लोग जिसमें मोरारजी देसाई, चौ. चरणसिंह, वीपी. सिंह, पी. वी. नरसिंहराव एवं एच. डी. देवगौड़ा एवं नरेन्द्र दामोदर दास मोदी अपने राज्यों में मुख्यमंत्री बनने के बाद देश के प्रधानमंत्री बने।
उपप्रधानमंत्री-
- भारतीय संविधान में उपप्रधानमंत्री के पद का कोई प्रावधान नहीं है। परंतु व्यावहारिक राजनीति में उपप्रधानमंत्री नियुक्त किये गये हैं।
- उपप्रधानमंत्री चुने जाने वाला व्यक्ति कैबिनेट मंत्री के समान होता है।
- उपप्रधानमंत्री की नियुक्ति भी प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति करते हैं।
- अभी तक निम्नलिखित व्यक्ति उपप्रधानमंत्री चुने गए हैं-
नाम कार्यकाल
- सरदारवल्लभभाईपटेल 1947-1950
- मोरारजीदेसाई 1967-1969
- चरणसिंहएवं जगजीवन राम 1979-1979
- वाई. बी. चव्हाण 1979-1980
- देवीलाल 1989-1990
- देवीलाल 1990-1991
- एल. के. आडवाणी 2002-2004
भारत के प्रधानमंत्री– नाम कार्यकाल
- जवाहरलालनेहरू 1947-1964 (निधन)
- गुलजारीलालनंदा 1964 (कार्यवाहक)
- लालबहादुरशात्री 1964-1966 (निधन)
- गुलजारीलालनंदा 1966 (कार्यवाहक)
- इंदिरागाँधी 1966-1977
- मोरारजीदेसाई 1977-1979
- चरणसिंह 1979-1980
- इंदिरागाँधी 1980-1984 (निधन)
- राजीवगाँधी 1984-1989
- विश्वनाथप्रतापसिंह 1989-1990
- चन्द्रष्ठोखर 1990-1991
- पी. वी. नरसिंहराव 1991-1996
- अटलबिहारी वाजपेयी 1996 (13दिन के लिए)
- एच. डी. देवगौड़ा 1996-1997
- इन्द्रकुमारगुजराल 1997-1998
- अटलबिहारीवाजपेयी 1998-1999
- अटलबिहारीवाजपेयी 1999-2004
- डॉ. मनमोहनसिंह 2004-2009
- डॉ. मनमोहनसिंह 2009-2014
- नरेन्द्रदामोदरदास मोदी 2014-अब तक
केद्रीय मंत्रिपरिषद् –
संवैधानिक प्रावधान (अनुच्छेद-74)-
- राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी, जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा।
- राष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद् की सलाह के अनुसार कार्य करेगा। परंतु राष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद् की सलाह पर पुनर्विचार के लिए कह सकता है। लेकिन मंत्रिपरिषद् द्वारा दोबारा भेजने पर राष्ट्रपति उसकी सलाह के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य है।
- मंत्रियों द्वारा राष्ट्रपति को दी गई सलाह की जाँच किसी न्यायालय द्वारा नहीं की जा सकती।
- प्रधानमंत्री की नियुक्ति, राष्ट्रपति करेगा तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाऐगी। (अनुच्छेद-75 (1))
- मंत्री राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत पद धारण करेंगे। (अनुच्छेद-75 (2))
- संविधान में मंत्रिपरिषद् शब्द एवं मंत्री शब्द का प्रयोग किया गया है जबकि कैबिनेट शब्द का प्रयोग 44वें संविधान संशोधन में किया गया है।
मंत्रिपरिषद् का आकार-
- मूल संविधान में मंत्रियों की संख्या के बारे में कोई प्रावधान नहीं है।
- 91वें संविधान संशोधन विधेयक-2003 से यह प्रावधान किया गया है, कि प्रधानमंत्री सहित मंत्रिपरिषद् के सदस्यों की कुल संख्या, लोक सभा की कुल संख्या के 15% से अधिक नहीं होगी। दिल्ली में मंत्रिपरिषद् की कुल संख्या का दिल्ली विधान सभा के कुल सदस्यों का 10% से अधिक नहीं होगी, जिसमें मुख्यमंत्री भी शामिल होंगे। मंत्रियों की नियुक्ति-
- मंत्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
- लोक सभा तथा राज्य सभा दोनों ही सदनों से मंत्री नियुक्त किये जा सकते हैं।
- मंत्री जो संसद के किसी एक सदन का सदस्य है, उसे दूसरे सदन की कार्यवाही में भाग लेने और बोलने का अधिकार होता है। परंतु वह मत उसी सदन में दे सकता है, जिसका वह सदस्य है।
- कोई व्यक्ति संसद की सदस्यता के बिना भी मंत्री बन सकता है। परंतु उसे 6 महीने के भीतर संसद के किसी भी सदन की सदस्यता प्राप्त करनी होगी। यदि वह ऐसा नहीं कर पाता है, तो उसे मंत्री पद से हटा दिया जाऐगा।