क्षमादान तथा न्यायपालिका-
- मारूराम वाद में न्यायपालिका ने पहले ही निर्धारित कर दिया है कि अनुच्छेद-72 के अंतर्गत् प्रयुक्त शक्तियों का न्यायिक पुनरावलोकन होगा। यदि यह निर्णय अतर्कसंगत तथा मनमाने रूप में किया गया है।
- केहर सिंह वाद में न्यायपालिका ने निम्न आधार रखे, जो क्षमादान की शक्ति के संदर्भ में है-
(i) क्षमादान की शक्ति, राष्ट्रपति के विवेकाधीन है।
(ii) इस शक्ति का प्रयोग सरकार की सलाह पर किया जाऐगा।
(iii) राष्ट्रपति, न्यायालय से अलग मत रख सकता है।
(iv) राष्ट्रपति के समक्ष क्षमादान के लिए मौखिक सुनवाई नहीं होती है।
वर्तमान में न्यायपालिका का दृष्टिकोण-
- किसी भी व्यक्ति को राजनीतिक या संकीर्ण धार्मिक या जातीय आधारों पर क्षमा नहीं किया जा सकता।
- क्षमादान, राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्ति है, लेकिन यह उसकी संवैधानिक शक्ति है, व्यक्तिगत शक्ति नहीं।
- यदि किसी व्यक्ति की दया याचिका 6 वर्षो से ज्यादा अवधि से लंबित है, तो उसके मृत्युदण्ड को आजीवन कारावास में बदल दिया जाऐगा।
- अतः किसी व्यक्ति को क्षमा करने के आधार में उसके परिवार पर पड़ने वाले प्रभाव या समाज पर पड़ने वाले व्यापक प्रभाव को ध्यान में रखा जा सकता है।
राष्ट्रपति की राजनयिक शक्तियाँ-
- राष्ट्रपति का विदेशों में भारत के मुख्य संवैधानिक प्रधान के रूप में महत्व होता है।
- राष्ट्रपति, सभी विदेशी राजदूतों से प्रमाण-पत्र प्राप्त करता है।
- राष्ट्रपति, विदेशों में भारतीय राजदूतों की नियुक्ति करता है।
- सभी अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ व समझौते राष्ट्रपति के नाम पर किये जाते हैं।
राष्ट्रपति की सैनिक शक्तियाँ-
- राष्ट्रपति, तीनों सेनाओं का सर्वोच्च कमाण्डर होता है। (अनुच्छेद 53 में उल्लेखित)
- राष्ट्रपति, युद्ध व शाँति की घोषणा करता है।
राष्ट्रपति का स्वविवेक-
- संविधान, राष्ट्रपति को कोई स्वविवेक की शक्ति प्रदान नहीं करता है। वह मंत्रिपरिषद् एवं उनके प्रधान, प्रधानमंत्री के सलाह एवं सहायता के अनुसार कार्य करेगा। परंतु व्यवहार में राष्ट्रपति निम्नलिखित परिस्थितियों में अपने स्वविवेक का प्रयोग करता है-
(i) जब प्रधानमंत्री की अचानक मृत्यु हो जाए, तो वह अपने विवेक से नये प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है।
(ii) जब सरकार अल्पमत में हो जाए तथा लोक सभा अपना विश्वास खो दे। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति प्रधानमंत्री व मंत्रिपरिषद् की सलाह के अनुसार कार्य नहीं करेगा, बल्कि अपने विवेक के अनुसार कार्य करेगा।
(iii) यदि सरकार बनाने के लिए किसी दल के पास स्पष्ट बहुमत न हो, तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति अपने विवेक से किसी दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं। व्यावहारिक रूप में राष्ट्रपति द्वारा 1996 के बाद से सबसे बड़े दल के स्थान पर सबसे बड़े गठबंधन के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है।
(iv) किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए भेजने के मामले में राष्ट्रपति अपने स्वविवेक का प्रयोग करते हैं।
(v) यदि मंत्रिमण्डल सदन में विश्वास मत सिद्ध न कर सके, तो राष्ट्रपति, लोक सभा को विघटित करने में स्वविवेक का प्रयोग करते हैं।
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के संबंध (संवैधानिक प्रावधान)-
- राष्ट्रपति को सलाह और सहायता देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी, जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा। (अनुच्छेद-74 (1))
- राष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद् से अपने निर्णय पर पुनर्विचार की माँग कर सकता है, परंतु मंत्रिपरिषद् के पुनर्विचार के बाद दोबारा प्रस्ताव राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाए, तो उसे अनुमति देना होगा। (अनुच्छेद-74 (2))
- 24वें संविधान संशोधन के द्वारा यह प्रावधान किया गया है, कि राष्ट्रपति, संविधान संशोधन विधेयक पर वीटो का प्रयोग नहीं करेगा।
- 42वें संविधान संशोधन से यह प्रावधान किया गया है, कि राष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद् की सलाह और सहायता से कार्य करेगा।
प्रधानमंत्री-
- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की नियुक्ति करेगा। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करेगा। (अनुच्छेद-75 (1))
- मंत्री, राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत तक अपने पद पर बना रहेगा। (अनुच्छेद-75 (2))
- मंत्रिपरिषद्, सामूहिक रूप में लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होगा।
प्रधानमंत्री का कर्त्तव्य-
- प्रधानमंत्री का यह कर्त्तव्य होगा, कि वह राष्ट्रपति को संघ के प्रशासन और विधान से संबंधित मंत्रिपरिषद् के सभी निर्णयों को राष्ट्रपति को संप्रेषित करे। (अनुच्छेद-78 (i))
- संघ के प्रशासन और विधान से संबंधित ऐसी सूचनाओं को प्रदान करे, जिसकी राष्ट्रपति माँग करे। (अनुच्छेद-78 (ii))
- यदि किसी मुद्दे पर एक मंत्री ने विचार न किया हो, तो राष्ट्रपति ऐसे मुद्दों को मंत्रिपरिषद् के समक्ष रखवा सकते हैं। (अनुच्छेद-78 (iii))
संसदीय परंपरा के आधार पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के मध्य संबंध-
- संसदीय परंपरा के आधार पर राष्ट्रपति, संवैधानिक प्रधान व प्रधानमंत्री कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान होगा।
- परंपरा के आधार पर ही प्रधानमंत्री बहुमत दल का नेता व वास्तविक कूटनीति का निर्माता होता है।
- भारत संघ में सदैव मंत्रिपरिषद् की संकल्पना की गई है, जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा।