Rajasthan GK || Indian Polity and Economy || कार्यपालिका (EXECUTIVE)

विधायी शक्तियाँ-

  • यदि संसद के दोनों सदनों अथवा कोई एक सदन सत्र में  हो, तो राष्ट्रपति, विधि निर्माण के लिए अध्यादेश जारी करते हैं। (अनुच्छेद-123)
  • राष्ट्रपति, प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र, प्रत्येक निर्वाचन के बाद आयोजित होने वाले प्रथम सत्र में दोनों सदनों को संबोधित करते हैं।
  • यह ध्यान देने योग्य बिन्दु है, कि राष्ट्रपति, संसद में केवल दो बार प्रवेश करते हैं तथा भाषण देते हैं। प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आयोजन पर तथा प्रत्येक निर्वाचन के बाद आयोजित होने वाले प्रथम सत्र के समय पर।
  • राष्ट्रपति, संसद को संदेश भेजने की शक्ति रखते हैं। संदेश भेजने की शक्ति विधायी विषयों के अलावा अन्य विषयों के लिए भी होती है।
  • अभी तक राष्ट्रपति ने संसद को कोई संदेश नहीं भेजा है।
  • राष्ट्रपति कुछ विधेयकों को सदन में प्रस्तुत करने से पूर्व अनुमति प्रदान करते हैंऐसे विधेयक निम्नलिखित हैं-

(i) किसी राज्य के निर्माण या किसी राज्य की सीमा में या नाम में परिवर्तन के लिए विधेयक। (अनुच्छेद-3)

(ii) ऐसे विधेयक के लिए जो धन विधेयक है। (अनुच्छेद-117 (1))

(iii) ऐसे विधेयक, जिनसे भारत की संचित निधि में से खर्च करने का प्रावधान हो।(अनुच्छेद-117(3))

(iv) वे विधेयक, जो उन करों के बारे में हैं, जिनमें राज्यों का हित हो या उन सिद्धांतों के बारे में हैं, जिनसे राज्यों को धन वितरित किया जाता है, या जो कृषि आय की परिभाषा में परिवर्तन करते हैं। (अनुच्छेद-274         (1))

(v) राज्यों के ऐसे विधेयक, जो व्यापार और वाणिज्य की स्वतंत्रता पर प्रभाव डालते हैं। (अनुच्छेद-304)

  • राष्ट्रपति, लोक सभा में दो ऐंग्लो इण्डियन सदस्य (अनुच्छेद-331) तथा राज्य सभा में बारह (12) सदस्यों को मनोनीत करते हैं।
  • अनुच्छेद-111 के अंतर्गत्, राष्ट्रपति, विधेयकों को अनुमति प्रदान करते हैं।

अध्यादेश की शक्ति (अनुच्छेद-123)-

  • संसद के एक सदन या दोनों सदनों की बैठक  हो रही हो, तब अध्यादेश जारी होता है। राष्ट्रपति, संघ सूची  समवर्ती सूची से संबंधित विषयों पर अध्यादेश जारी कर सकता है, परंतु जब अनुच्छेद-356 लगा हो, तब राष्ट्रपति, राज्य सूची पर भी अध्यादेश जारी कर सकता है। सदन की बैठक शुरू होने के 6 सप्ताह के भीतर अनुमोदन जरूरी होता है, अन्यथा अध्यादेश समाप्त हो जाऐगा।
  • किसी भी अध्यादेश की अधिकतम अवधि 6 महीने 6 सप्ताह होती है।

राष्ट्रपति के द्वारा संसद के समक्ष रिपोर्ट रखवाना-

  • राष्ट्रपति के द्वारा वार्षिक वित्तीय विवरण सदन के समक्ष रखवाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त वित्त आयोग की अनुशंसा, संघ लोक सेवा आयोग की रिपोर्ट, अनुसूचित जाति, जनजाति की रिपोर्ट तथा पिछडे वर्ग आयोग की रिपोर्ट और भाषा आयोग की रिपोर्ट भी संसद के समक्ष रखवायी जाती है।

राज्य विधेयकों को अनुमति प्रदान करना-

  • अनुच्छेद-200 के अंतर्गत्, राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर सकता है।
  • आरक्षित विधेयक के संबंध में राष्ट्रपति के समक्ष निम्नलिखित विकल्प होते हैं-

(i) राष्ट्रपति, विधेयक को अनुमति दे सकता है।

(ii) राष्ट्रपति, विधेयक को अनुमति देने से मना कर सकता है।

(iii) राष्ट्रपति, राज्यपाल को यह निर्देश भी दे सकता है, कि विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटा दिया जाए।

(iv) यह बिन्दु ध्यान देने योग्य है, कि राज्य विधान मण्डल द्वारा विधेयक को पुनः पारित करके राष्ट्रपति को प्रस्तुत किये जाने पर यह आवश्यक नहीं है, कि राष्ट्रपति, विधेयक को अनुमति दे, जबकि संसद द्वारा पुनर्विचार के लिए भेजे गये विधेयक को संसद द्वारा पुनः पारित करने पर राष्ट्रपति को अनुमति प्रदान करना बाध्यकारी होता है।

राष्ट्रपति की (वीटोकी शक्ति (अनुच्छेद-111)-

  • संविधान में उल्लिखित है, कि किसी विधेयक पर राष्ट्रपति अनुमति देगा या नहीं देगा अथवा पुनर्विचार के लिए वापस भेजेगा।
  • संविधान में वीटो शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है, बल्कि इसका प्रयोग व्यावहारिक रूप में होता है।
  • वीटो के प्रकार-

(i) निरपेक्ष वीटो– जब राष्ट्रपति किसी विधेयक पर अनुमति  दे।

(ii) निलंबनकारी वीटो– जब राष्ट्रपति किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए भेज दे।

(iii) पॉकेट वीटो जब राष्ट्रपति किसी विधेयक पर कोई कार्यवाही  करे।

  • भारत में निरपेक्ष वीटो का प्रयोग केवल एक बार ही किया गया है।
  • निरपेक्ष वीटो का प्रयोग राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने पेप्सू (Patiala and East Punjab States Union (PEPSU) was a state of India between 1948 and 1956) विधेयक पर किया था।
  • पॉकेट वीटो वर्ष-1987 में ज्ञानी जैल सिंह द्वारा डॉक विधेयकपर प्रयोग किया गया। यह किसी राष्ट्रपति द्वारा पहली बार पॉकेट वीटोका प्रयोग किया गया था।
  • निलंबनकारी वीटो के प्रयोग के उदाहरण-

(i) वर्ष-2006 में सांसदों के लाभ के पद संबंधी विधेयक पर राष्ट्रपति कलाम के द्वारा पुनर्विचार के लिये सरकार के पास भेज दिया गया था। इसी विधेयक को दोबारा भेजे जाने पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर किया था।

(ii) राष्ट्रपति के. आर. नारायणन द्वारा संघ सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश और बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाये जाने की अनुशंसा को संघ सरकार के पास पुनर्विचार के लिये भेजा था।

राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियाँ-

  • राष्ट्रपति, वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट) को संसद के समक्ष रखवाता है।
  • धन विधेयक, राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से ही संसद में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • अनुदान की कोई भी माँग राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना नहीं की जा सकती।
  • राष्ट्रपति, प्रत्येक 5 वर्ष में वित्त आयोगका गठन करता है।

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ-

  • राष्ट्रपति, संविधान में वर्णित तीनों प्रकार के आपातकाल, राष्ट्रीय आपात (अनुच्छेद-352), राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता (अनुच्छेद-356) तथा वित्तीय आपात (अनुच्छेद-360) के लगाने की घोषणा करते हैं।

राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियाँ-

  • वह उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीश एवं उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश  अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा उन्हें हटाने की शक्ति रखता है।
  • वह विधि के किसी मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय से सलाह ले सकता है। (अनुच्छेद 143 के तहत)

राष्ट्रपति निम्नलिखित को क्षमादान (अनुच्छेद-72) देने की शक्ति रखता है-

(i)   संघ सूची या संघ शासन से संबंधित सभी विषयों पर क्षमा दे सकते हैं।

(ii)  कोर्ट मॉर्शल अपराधी को भी क्षमादान दे सकते हैं।

(iii)  मृत्युदण्ड से पूर्ण क्षमादान की शक्ति, केवल राष्ट्रपति को है।

  • क्षमादान, एक व्यापक शब्द है, जिसमें अपराधी को सभी दोषों से बरी कर दिया जाता है। इसके अन्य रूप निम्नलिखित हैं-

(i)   लघुकरण (Commutation) में, एक प्रकार के दण्ड के स्थान पर दूसरा दण्ड दे दिया जाता है, जिसमें दण्ड की प्रकृति परिवर्तित हो जाती है। जैसेकि मृत्युदण्ड प्राप्त व्यक्ति की सजा को आजीवन कारावास में परिवर्तित कर देना।

(ii)  परिहार (Remission) में, केवल दण्ड की अवधि को कम कर दिया जाता है। दण्ड की प्रकृति में कोई परिवर्तन नहीं होता है। जैसे-1 वर्ष की सजा को 6 महीने की सजा में परिवर्तित कर देना।

(iii)  निलंबन (Respite) मेंजब किसी विशेष परिस्थिति को देखते हुए अथवा किसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए दोषी व्यक्ति को निर्धारित सजा के बजाए, कम सजा प्रदान करना।

(iv) क्षमादान के लिए जब राष्ट्रपति के समक्ष अनुरोध किया जाता है, तो उस अवधि में सजा स्थगित कर दी जाती है, जिसे विराम (Reprieve) कहा जाता है। यह मृत्युदण्ड के मामले में लागू होता है।

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