राजस्थान सामान्य ज्ञान : जैव प्रौद्योगिकी सामान्य जानकारी

जैव प्रौद्योगिकी सामान्य जानकारी

  • विज्ञान के विभिन्न नियमों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न कार्यों को सुविधाजनक बनाने के लिए विभिन्न तकनीकों का विकासप्रौद्योगिकी’ कहलाता है। प्रौद्योगिकी को अनुप्रयुक्त विज्ञान (Applied Science) भी कहा जा सकता है क्योंकि उसके द्वारा विज्ञान के नियमों का आम जीवन में उपयोग होता है।
  • यदि इस प्रौद्योगिकी का उपयोग जीव-विज्ञान के नियमों को दृष्टिगत रखते हुए मानव जाति के हित में किया जाए तो यही जैव-प्रौद्योगिकी कहलाएगा। अतः जैव प्रौद्योगिकी को अनुप्रयुक्त जीव विज्ञान कहना भी सर्वथा उपयुक्त है।
  • जैव – प्रौद्योगिकी की परिभाषा वैज्ञानिक एवं अभियांत्रिकी के नियमों के अनुप्रयोग द्वारा जैव-कारकों के उपयोग से वस्तुओं का ऐसा प्रसंस्करण करना जिससे कि वे मानव के लिए उपयोगी वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्रदान कर सकें।
  • जैव-प्रौद्योगिकी का इतिहास– जैव-प्रौद्योगिकी का इतिहास बहुत पुराना है हालांकि हाल ही के कुछ वर्षों में यह विज्ञान की सर्वाधिक चर्चित शाखा रही है, अतः ऐसा भ्रम होता है कि यह विज्ञान की कोई नई शखा है। जैव-प्रौद्योगिकी के पक्ष में पहला लिखित साक्ष्य 6000 ई.पू. बेबीलोन सभ्यता से प्राप्त होता है। जहाँ खमीर (यीस्ट) का उपयोग करके शराब एवं बीयर का निर्माण किया जाता था। सुमेरवासी भी यीस्ट का उपयोग सुगन्धित ब्रेड बनाने में करते थे।
  • जुलाई 1920 में योर्क शायर से जैव-प्रौद्योगिकी ब्यूरो द्वारा प्रकाशित पत्रिका में जैव-प्रौद्योगिकी को परिभाषित किया गया।
  • 70 एवं 80 के दशक में वैज्ञानिकों ने अपना ध्यान विशेष रूप से जैव प्रौद्योगिकी पर केन्द्रित किया और यही कारण है कि विगत कुछ वर्षों से जैव-प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित अनुसंधानों में अत्यधिक तेजी आयी है। वर्तमान युग को जैव-प्रौद्योगिकी का युग कहा जाए तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। जैव-प्रौद्योगिकी के इस तीव्र विकास को वरदान माना जा रहा है क्योंकि संप्रति जीव-विज्ञान का कोई भी क्षेत्र जैव-प्रौद्योगिकी के प्रभाव से अछूता नहीं है।

जैव-प्रोद्योगिकी के उपयोग

  • जैव प्रौद्योगिकी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपयोग जीन अभियांत्रिकी से सम्बन्धित प्रयोगों में किया जाता है जिसके द्वारा इन्सुलिन, मानव वृद्धि हार्मोन, वेक्सीन, ट्रांसजेनिक जीव एवं कृषि के लिए उन्नत प्रजातियों के निर्माण में होता है।
  • एन्जाइम प्रौद्योगिकी भी जैव-प्रोद्योगिकी का ही एक अंग है जिसके द्वारा उन्नत किस्म के वाशिंग पाउडर (एन्जाइमयुक्त), फलों के रस, डेयरी उत्पाद एवं बायो-सेन्सर जैसी वस्तुओं का निर्माण किया जाता है।
  • चिकित्सा के क्षेत्र में भी जैव-प्रौद्योगिकी ने अहम् भूमिका अदा की है। नये प्रतिजैविकों, एकल क्लोनी प्रतिरक्षियों एवं अन्य बहुपयोगी औषधियों का विकास जैव-प्रौद्योगिकी द्वारा किया गया है।
  • रसायन विज्ञान के क्षेत्र में जैव-प्रौद्योगिकी का उपयोग एथेनॉल, ऐसीटोन, ब्यूटेनॉल जैसे विलायकों के निर्माण में एवं बहुलकों के निर्माण में होता है।
  • खनन उद्योग के लिए जैव-प्रौद्योगिकी द्वारा कुछ ऐसे जीवाणुओं का विकास किया गया है जो कम खर्च पर बहुमूल्य धातुओं के निष्कर्षण की क्षमता रखते हैं।
  • कृषि एवं उद्यानिकी के क्षेत्र में जैव-प्रौद्योगिकी के द्वारा रोग, खरपतवार, कीट एवं सूखा प्रतिरोधी फसलों का विकास किया गया है।
  • उत्तक संवर्धन द्वारा कम समय में उच्च गुणवत्ता युक्त पौधे बड़ी संख्या में प्राप्त किये जा सकते है।
  • पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भी जैव-प्रौद्योगिकी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है, क्योंकि जैव-प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा विविध प्रकार के कचरे के समुचित प्रबंध के लिए जीवाणु विकसित किए गए हैं।
  • डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों से सम्बन्धित उद्योगों में एक कोशिकीय प्रोटिन (Single cell protein) कम ऊर्जा युक्त खाद्य पदार्थ एवं जीन संवर्धित खाद्य पदार्थों का विकास भी जैव-प्रौद्योगिकी द्वारा किया गया है।
  • स्टेम कोशिका अनुसंधान, मानव जीनोम परियोजना, क्लोनिंग एवं DNA फिंगर प्रिंटिंग भी जैव-प्रौद्योगिकी के द्वारा संभव हो पाए हैं।

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