राजस्थान सामान्य ज्ञान : उत्सर्जन तंत्र

उत्सर्जन तंत्र

  • हानिकारक अपशिष्ट पदार्थ की अधिक मात्रा को शरीर से निष्कासित करने की जैविक प्रक्रम को उत्सर्जन कहते हैं।
  • मनुष्य में उत्सर्जन तंत्र में प्रमुख अंग हैं- वृक्क, फेफड़ा, त्वचा, यकृत, आंत इत्यादि।
  • वृक्क(Kidney) : वृक्क परासरण नियंत्रण द्वारा जल की निश्चित मात्रा बनाये रखता है।

 

  • यह रूधिर से सभी उत्सर्जी पदार्थों को हटाना और आवश्यक पोषक तत्वों को बनाए रखने का कार्य करता है। प्रमुख उत्सर्जन अंग है।
  • इसका भार लगभग 140 ग्राम होता है।
  • नेफ्रॉन वृक्क की कार्यात्मक इकाई होती है। वृक्क में मूत्र का निर्माण होता है।
  • नेफ्रॉन या वृक्क नलिका में रूधिर से छनकर आए जल एवं शेष उत्सर्जी पदार्थ़ों के मिश्रण को मूत्र कहते हैं।
  • इसका पीला रंग यूरोक्रोम नामक वर्णक के कारण होता है।
  • एक सामान्य व्यक्ति 24 घण्टे में 5 लीटर मूत्र त्यागता है। मूत्र की प्रकृति अम्लीय होती है।
  • मूत्र में जल (85%), यूरिया (2%), यूरिक अम्ल (5%), प्रोटीन, वसा, शर्करा आदि (1.3%) होते हैं।
  • फेफड़े कार्बनडाऑक्साइड व जलवाष्प का उत्सर्जन करते हैं।
  • यकृत अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित करता है।
  • आंत अपचयन भोजन को शरीर से बाहर निकालकर उत्सर्जन में मदद करती है।
  • त्वचा द्वारा पसीने की ग्रन्थियों से पानी तथा लवणों का विसर्जन होता है।
  • मूत्र स्राव की मात्रा बढ़ जाने कोडाईयूरेसिस कहते हैं।
  • मूत्र स्राव की मात्रा कम होने को ओलिगोयूरिया कहते हैं।
  • मूत्र स्राव बन्द (पूर्ण) होने को एन्यूरिया कहते हैं।
  • पक्षियों, सरीसर्प तथा कीटों में उत्सर्जन आहारनाल द्वारा होता है।
अपशिष्ट पदार्थ      उत्सर्जन अंग
मलमलाशय
CO2फुफ्फुस
अमोनियायकृत
पसीनात्वचा
यूरियावृक्क
  • रक्त में यूरिया नेफ्रॉन द्वारा छाना जाता है।
  • बोमन सम्पुट में मूत्र छानने की क्रिया होती है।

 

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