राजस्थानी हस्तकला
हाथों द्वारा कलात्मक एवं आकर्षक वस्तुओं को बनाना ही हस्तशिल्प (हस्तकला) कहलाता है। राजस्थान में निर्मित हस्तकला की वस्तुएँ न केवल भारत में प्रसिद्धि पा रही है बल्कि विदेशों में भी इन वस्तुओं ने अलग अमिट छाप छोड़ी है। आज भी राजस्थान अपनी हस्तकला के लिए सम्पूर्ण देश में ‘हस्तशिल्पों के आगार’ के रूप में जाना जाता है। राज्य की बंधेज कला, छपाई, चित्रकारी, मीनाकारी, पॉटरी कला, मूर्तिकला आदि हस्तकलाएँ विश्वभर में प्रसिद्ध है।
राजस्थान में राज्य औद्योगिक नीति 1988 में हस्तशिल्प उद्योग पर विशेष बल दिया गया है।
राजस्थान में हस्तकला का सबसे बड़ा केन्द्र ‘बोरानाडा’ (जोधपुर) में है।
- वस्त्र पर हस्तकला :-वस्त्र पर हस्तकला में पिंजाई, छपाई, बुनाई, रंगाई, कढ़ाई एवं बन्धेज का कार्य किया जाता है।
(क) छपाई कला (ब्लॉक प्रिन्ट) :- कपड़े पर परम्परागत रूप से हाथ से छपाई का कार्य छपाई कला या ब्लॉक प्रिन्ट कहलाता है। राज्य में छपाई का कार्य छीपा/खत्री जाति के लोगों द्वारा किया जाता हैं। लकड़ी की छापों से की जाने वाली छपाई को ‘ठप्पा या भांत’ कहते हैं। कपड़ों पर डिजाइन बनाकर बारिक धागों से छोटी-छोटी गाँठें बाँधने को ‘नग बाँधना’ कहते हैं। राजस्थान की छपाई का प्राचीनतम उदाहरण मिस्र की पुरानी राजधानी अल फोस्तान में 969 ई. की कब्रों में राजस्थानी व गुजराती छींटों को दफनाए मृत शरीर के साथ लपेटा हुआ मिला है। राजस्थान में बगरू (जयपुर), सांगानेर (जयपुर), बाड़मेर, बालोतरा, पाली, आकोला (चित्तौड़गढ़) आदि रंगाई-छपाई के लिए प्रसिद्ध है।
(i) अजरख प्रिन्ट :- ‘बाड़मेर’ अजरख प्रिन्ट से छपे वस्त्रों के लिए प्रसिद्ध है। अजरख की विशेषता है – दोनों और छपाई। अजरख प्रिन्ट में विशेषत: नीले व लाल रंग का प्रयोग किया जाता है।
(ii) मलीर प्रिन्ट :- मलीर प्रिन्ट के लिए बाड़मेर प्रसिद्ध है।
बाड़मेर की मलीर प्रिन्ट में कत्थई व काले रंग का प्रयोग किया जाता है।
बाड़मेर छपाई में कपड़े पर ठप्पे छपाई की नई तकनीक ‘टिन सेल छपाई’ से छपाई की जाती है
(iii) दाबू प्रिन्ट :- चित्तौड़गढ़ जिले का आकोला गाँव दाबू प्रिन्ट के लिए प्रसिद्ध है। दाबू का अर्थ दबाने से है। रंगाई-छपाई में जिस स्थान पर रंग नहीं चढ़ाना हो, तो उसे लई या लुगदी से दबा देते हैं। यही लुगदी या लई जैसा पदार्थ ‘दाबू’ कहलाता है, क्योंकि यह कपड़े के उस स्थान को दबा देता है, जहाँ रंग नहीं चढ़ाना होता है।
राजस्थान में तीन प्रकार का दाबू प्रयुक्त होता हैं।
(A) मोम का दाबू :- सवाईमाधोपुर में।
(B) मिट्टी का दाबू :- बालोतरा (बाड़मेर) में।
(C) गेहूँ के बींधण का दाबू :- बगरू व सांगानेर में।
आकोला में हाथ की छपाई में लकड़ी के छापे प्रयोग किए जाते हैं, उन्हें बतकाड़े कहा जाता है। इसका निर्माण खरादिए द्वारा किया जाता है।
(iv) बगरू प्रिन्ट :- जयपुर के बगरू प्रिन्ट में लाल व काला रंग विशेष रूप से प्रयुक्त होता है।
(v) सांगानेरी प्रिंट :- सांगानेरी छपाई लट्ठा या मलमल पर की जाती है। ठप्पा (छापा) और रंग सांगानेर की विशेषता है। सांगानेर में छपाई का कार्य करने वाले छीपे नामदेवी छीपे कहलाते हैं। सांगानेरी प्रिन्ट में प्राय: काला और लाल रंग ज्यादा काम में लाए जाते हैं। सांगानेरी प्रिन्ट को विदेशों में लोकप्रिय बनाने का श्रेय ‘मुन्नालाल गोयल’ को जाता है।
(vi) जाजम प्रिंट :- आकोला (चित्तौड़गढ़) की जाजम प्रिंट प्रसिद्ध है। इस प्रकार की छपाई में लाल व हरे रंग का प्रयोग किया जाता है। यहाँ की छपाई के घाघरे प्रसिद्ध हैं।
(vii) ‘रुपहली’ व ‘सुनहरी छपाई’ के लिए प्रसिद्ध :- किशनगढ़, चित्तौड़गढ़ व कोटा।
(viii) चुनरी भांत की छपाई के लिए प्रसिद्ध :- आहड़ और भीलवाड़ा।
(ix) सुनहरी छपाई के लिए प्रसिद्ध :- मारोठ व कुचामन।
(x) भौंडल (अभ्रक) की छपाई के लिए प्रसिद्ध :- भीलवाड़ा।
(xi) टुकड़ी छपाई के लिए प्रसिद्ध :- जालौर व मारोठ (नागौर)।
(xii) खड्ढी की छपाई के लिए प्रसिद्ध :- जयपुर व उदयपुर।