राजस्थानी बोलियां और उनके क्षेत्र
- भारत के सबसे बड़े प्रांत राजस्थान के निवासियों की मातृभाषा राजस्थानी है। भाषा विज्ञान के अनुसार राजस्थानी भारोपीय भाषा परिवार के अन्तर्गत आती है। राजस्थानी भाषा के उद्भव एवं विकास का गौरवमय इतिहास है। राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति शौरसेनी के गुर्जर अपभ्रंश से मानी जाती है। कुछ विद्वान इसे नागर अपभ्रंश से उत्पन्न हुआ भी मानते हैं।
- आर्य भाषा – वैदिक संस्कृत – पाली – शोरशैनी प्राकृत-गुर्जरी अपभ्रंश व नागर अपभ्रंश-राजस्थानी इस प्रकार हुई है-
- राजस्थान की राजभाषा हिन्दी है परंतु यहाँ की मातृभाषा राजस्थानी है जिसकी लिपि ‘महाजनी/बनियाणवी’ है। हिन्दी दिवस 14 सितम्बर को तथा राजस्थानी भाषा दिवस प्रतिवर्ष 21 फरवरी को मनाया जाता है।
- यदि भाषाओं का क्रमिक विकास देखा जाए तो प्राकृत भाषा सेडिंगल भाषा प्रकट हुई तथा डिंगल भाषा से गुजराती एवं मारवाड़ी भाषाओं का विकास हुआ। संस्कृत भाषा से पिंगल भाषा प्रकट हुई तथा पिंगल भाषा से ब्रज भाषा एवं खड़ी हिन्दी का विकास हुआ।
राजस्थानी भाषा की डिंगल और पिंगल शैली में अंतर
पिंगल | डिंगल |
भाटों द्वारा प्रयुक्त | चारणों द्वारा प्रयुक्त |
ब्रज मिश्रित राजस्थानी | मारवाड़ी मिश्रित राजस्थानी |
छंद एवं पदों में | गीत रूप में |
पूर्वी राजस्थान में | पश्चिमी राजस्थान में |
शौरसेनी अपभ्रंश से निर्मित | गुर्जरी अपभ्रंश से निर्मित |
- राजस्थानी भाषा के इतिहास का अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि वि.सं. 835 (सन् 778 ई.) मेंउद्योतन सूरी द्वारा लिखित कुवलयमाला में वर्णित 18 देशी भाषाओं में ‘मरुभाषा’ को भी शामिल किया गया है जो पश्चिमी राजस्थान की भाषा थी। इसी प्रकार कवि कुशललाभ के ग्रंथ ‘पिंगल शिरोमणि’ तथा अबुल फजल के ‘आइने-अकबरी’ में भी ‘मारवाड़ी’ भाषा शब्द प्रयुक्त किया गया है। अबुल फजल ने प्रमुख आर्यभाषाओं में मारवाड़ी भाषा को भी शामिल किया है।
- यहाँ की भाषा के लिए ‘राजस्थानी’ शब्द सर्वप्रथम जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने 1912 ई. में Linguistic Survey of India ग्रंथ में प्रयुक्त किया जो इस प्रदेश में प्रचलित विभिन्न भाषाओं का सामूहिक नाम था। यही नाम अब इस प्रदेश की भाषा के लिए मान्य हो चुका है। मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढूँढाड़ी, मेवाती, हाड़ौती आदि सब इसकी विभिन्न बोलियाँ हैं। केन्द्रीय साहित्य अकादमी ने राजस्थानी भाषा को एक स्वतंत्र भाषा के रूप में मान्यता दे दी है, परंतु इसे अभी संवैधानिक मान्यता प्राप्त होना बाकी है। राजस्थानी को संविधान की आठवीं सूची में शामिल करने के संबंध में सलाह देने हेतु केन्द्र सरकार ने एक समिति का गठन भी किया है।