हड़प्पा संस्कृति की नगर-योजना :
- सामान्यतः इस सभ्यता के नगर दो भागों में बंटे थे।
- दुर्ग में शासक वर्ग के लोग रहते थे तथा निचले नगर में सामान्य लोग रहते थे।
- भवन निर्माण में पक्की एवं कच्ची दोनों तरह की ईंटों का प्रयोग होता था। भवन में सजावट आदि का अभाव था।
- प्रत्येक मकान में स्नानागार, कुएं एवं गंदे जल की निकासी के लिए नालियों का प्रबंध था।
- सड़कें कच्ची थीं और प्रायः एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी।
- मकानों के दरवाजे मध्य में न होकर एक किनारे पर होते थे।
- हड़प्पा संस्कृति की जल निकास प्रणाली अद्वितीय थी।
कृषि :
- हड़प्पा संस्कृति की मुख्य फसल गेहूं और जौ थी। इसके अलावा वे राई, मटर, तिल, चना, कपास, खजूर, तरबूज आदि पैदा करते थे।
- चावल के उत्पादन का प्रमाण लोथल और रंगपुर से प्राप्त हुआ है।
पशुपालन :
- हड़प्पा सभ्यता में पाले जाने वाले मुख्य पशु थे – बैल, भेड़, बकरी, भैंस, सुअर, हाथी, कुत्ते, गधों आदि।
- हड़प्पा निवासियों को कूबड़वाला सांड विशेष प्रिय था।
- ऊंट, गैंडा, मछली, कछुए का चित्रण हड़प्पा संस्कृति की मुद्राओं पर हुआ है।
- हड़प्पा संस्कृति में घोड़े के अस्तित्व पर विवाद है।
- कालीबंगा से ऊंट की हड्डियां मिली है।
शिल्प एवं उद्योग धन्धों :
- धातुकर्मी तांबे के साथ टिन मिलाकर कांसा तैयार करते थे।
- मोहनजोदड़ों से बने हुए सूती कपड़े का एक टुकड़ा तथा कालीबंगा में मिट्टी के बर्तन पर सूती कपड़े की छाप मिली है।
- इस सभ्यता के लोगों को लोहे की जानकारी नहीं थी।
- कांस्य मूर्ति का निर्माण द्रवी – मोम विधि से हुआ है।
- मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा से प्राप्त मृण्मूर्तियों में पुरुषों की तुलना में नारी मृण्मूर्ति अधिक है।
- हड़प्पा संस्कृति में पशु – मूर्तियां मानव – मूर्तियों से अधिक संख्या में पाई गयी है।
- हड़प्पा में कूबड़ वाले बैलों की मूर्तियां सर्वाधिक संख्या में मिली है।
- मनका उद्योग का केन्द्र लोथल एवं चन्हुदड़ों था।
व्यापार :
- हड़प्पा वासी राजस्थान, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र, दक्षिण भारत तथा बिहार से व्यापार करते थे।
- मेसोपोटामिया, सुमेर तथा बहरीन से उनके व्यापारिक संबंध थे।
- 2350 ई. पू. के मेसोपोटामियाई अभिलेखों में मेलूहा (सिन्ध क्षेत्र का ही प्राचीन भाग) के साथ व्यापार संबंध होने के उल्लेख मिलते हैं।
मापतौल :
- मोहनजोदड़ो से सीप का तथा लोथल से एक हाथी – दांत का पैमाना मिला है।
- तौल पद्धति की एक शृंखला 1, 2, 4, 8 से 64 इत्यादि की तथा 16 या उसके आवर्तकों का व्यवहार होता था जैसे -16, 64, 160, 320 और 640।
मुहर एवं लिपि :
- मोहनजोदड़ो से सर्वाधिक संख्या में मुहरें प्राप्त हुई है।
- प्राप्त मुहरों में सर्वाधिक सेलखड़ी की बनी हैं।
- मुहरों पर एक शृंगी पशु की सर्वाधिक आकृति मिली है। लोथल और देसलपुर से तांबे की मुहरें मिली हैं।
- हड़प्पा लिपि वर्णात्मक नहीं, बल्कि मुख्यतः भाव चित्रात्मक है।
- इस लिपि की लिखावट समान्यतया दायीं से बायीं ओर है।
- हड़प्पाई लिपि को पढ़ने में अभी तक सफलता नहीं मिली है।
सामाजिक एवं राजनीतिक स्थिति :
- इस सभ्यता के लोग भोजन में गेहूं, जौ, खजूर एवं मांस खाते थे।
- सूती एवं ऊनी दोनों वस्त्राें का प्रयोग करते थे।
- मछली पकड़ना, शिकार करना, चौपड़, पासा खेलना आदि मनोरंजन के साधन थे।
धार्मिक मान्यताएं :
- इस सभ्यता में कहीं से मंदिर के अवशेष नहीं मिले है।
- लिंग पूजा के पर्याप्त प्रमाण है जिन्हें बाद में शिव के साथ जोड़ा गया है। पत्थर की कई योनि आकृतियां भी प्राप्त हुर्ह है जिनकी पूजा जनन शक्ति के रूप में की जाती थी।
- इस सभ्यता के लोग पशुओं की भी पूजा करते थे।
- वृक्ष पूजा के रूप में पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती थी।
- अग्निपूजा के प्रचलन के भी प्रमाण मिले हैं।
- हड़प्पा सभ्यता में शव विसर्जन के तीनों तरीके सम्पूर्ण शव को पृथ्वी में गाड़ना, पशु – पक्षियों के खाने के पश्चात् शव के बचे हुए भाग को गाड़ना तथा शव को दाहकर उसकी भस्म गाड़ना प्रचलित था।
हड़प्पा संस्कृति
- हड़प्पा सभ्यता का नामकरण हड़प्पा स्थल के नाम से किया गया क्योंकि यहाँ से सबसे पहले इस सभ्यता से संबंधित सामग्री मिलती है।
- हड़प्पा सभ्यता कांस्ययुगीन सभ्यता है।
- हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, अफगानिस्तान, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भाग आते हैं।
- रेडियो कार्बन (C-14) तिथि के अनुसार हड़प्पा सभ्यता का सर्वमान्य काल 2300-1750 ई. पू. को माना जाता है।
- जॉन मार्शल ’सिंधु सभ्यता’ नाम का प्रयोग करने वाले पहले पुरातत्वविद् थे।
- अमलानन्द घोष ने ’सोथी संस्कृति‘ का हड़प्पा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान माना है।
- मोहनजोदड़ों की बहुंख्यक जनता भूमध्यसागरीय प्रजाति की थी।