शैव सम्प्रदाय :- भगवान शिव के उपासक।
ऋग्वेद में शिव के लिये रुद्र देवता का उल्लेख है। अथर्ववेद में शिव को भव, पशुपति या भूपति कहा गया है। शिवलिंग पूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्य पुराण में मिलता है।
– नयनार :- दक्षिण भारत में शैव धर्म का प्रचार-प्रसार करने वाले नयनार कहलाते है। नयनार सन्तों की कुल संख्या 63 थीं।
– शैव मत के चार सम्प्रदाय :-
(i) कापालिक (ii) पाशुपात (iii) लिंगायत (वीरशैव) (iv) काश्मीरक
(i) कापालिक सम्प्रदाय :- इस सम्प्रदाय में भैरव को शिव का अवतार मानकर पूजा की जाती है। इस सम्प्रदाय के साधु तांत्रिक व श्मसानवासी होते हैं और अपने शरीर पर भस्म लपेटते हैं। इनके छ: चिह्न माला, भूषण, कुण्डल, रत्न, भस्म एवं उपवीत मुख्य है।
(ii) पाशुपत सम्प्रदाय :- प्रवर्तक :- लकुलीश। इस मत में लकुलीश को शिव का 28वाँ एवं अंतिम अवतार माना जाता है। मेवाड़ के हारित ऋषि लकुलीश सम्प्रदाय के थे। बापा रावल द्वारा निर्मित मेवाड़ के आराध्य देव एकलिंगजी का शिव मंदिर पाशुपत सम्प्रदाय का प्रमुख मंदिर है। सुण्डा माता मंदिर में भी भगवान शिव की मूर्ति लकुलीश सम्प्रदाय की है।
(iii) वीरशैव :- प्रवर्तक :- बासवन्ना द्वारा।
कर्नाटक में पनपा।
(iv) काश्मीरक :- कश्मीर में प्रचलित सम्प्रदाय।
– शाक्त सम्प्रदाय :- युद्ध कार्य में संलग्न रहने वाले राजा, सेनापति एवं सैनिक शक्ति प्राप्त करने के लिए प्राचीन काल से ही शक्ति पूजा करते आये हैं।
शाक्त पंत के दो पंथ :– (i) वामाचार (ii) दक्षिणाचार।
वामाचारी मतानुयायी पंचमकारो से शक्ति की उपासना करते है। इन पंचमकारों में मद्य, मुद्रा, मैथुन, मत्स्य एवं माँस शामिल हैं।
राजपरिवार कुलदेवी
मेवाड़ (सिसोदिया वंश) बाणमाता
आमेर (कच्छवाह वंश) अन्नपूर्णा (शिलादेवी)
जोधपुर (राठौड़ वंश) नागणेच्या देवी
जैसलमेर (भाटी वंश) स्वागिया जी
नाथ सम्प्रदाय :- प्रवर्तक – नाथ मुनि।
पंथ के प्रमुख साधु :- मत्स्येन्द्र नाथ, गोपीचन्द, भर्तृहरि, गोरखनाथ।
महामंदिर :- नाथ सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र। राठौड़ शासक मानसिंह द्वारा मंदिर निर्माण। गुरु आयस देवनाथ मानसिंह के गुरु माने जाते हैं।
राजस्थान में नाथ पंथ की शाखाएँ :-
(i) बैराग पंथ :- मुख्य केन्द्र – राताडूंगा (पुष्कर)। प्रथम प्रचारक – भर्तृहरि
(ii) माननाथी पंथ :- मुख्य केन्द्र – महामंदिर (महाराजा मानसिंह द्वारा स्थापित)
– लोद्रवा के भाटी शासक देवराज ने नाथपंथी साधु योगी रतननाथ का आशीर्वाद प्राप्त किया था।
– जालौर में नाथपंथी साधु जालन्धरनाथ के मंदिर का निर्माण करवाया गया।
– ‘कानपा पंथ’ :- प्रवर्तक :- योगी जालन्धरनाथ के शिष्य कानपानाथ द्वारा।
राजस्थान के अन्य सम्प्रदाय :-
- रामस्नेही सम्प्रदाय :-रामानंद के निर्गुण शिष्यों की परम्परा से विकसित निर्गुण सम्प्रदाय।
चार केन्द्र :-
(i) शाहपुरा (भीलवाड़ा) :- रामचरण जी
(ii) रेण (नागौर) :- दरियाव जी
(iii) सिंहथल (बीकानेर) :- हरिरामदास जी
(iv) खेड़ापा (जोधपुर) :– रामदास जी
– निर्गुण-निराकार राम का नाम स्मरण ही रामस्नेही भक्त अपनी मुक्ति का सर्वश्रेष्ठ अथवा एकमात्र साधन मानता है।
– सद्गुरु एवं सत्संग को इस सम्प्रदाय का प्राण तत्व माना गया है।
– मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा आदि साधना पद्धतियों का रामस्नेही सम्प्रदाय में निषेध किया गया है।
– बाह्य आडम्बरों व जातिगत भेदभाव का प्रबध विरोध, गुरु की सेवा, सत्संगति एवं राम नाम स्मरण आदि इनके प्रमुख उपदेश है।
– इस सम्प्रदाय में निर्गुण भक्ति तथा सगुण भक्ति की रामधुनी तथा भजन कीर्तन की परम्परा के समन्वय से निर्गुण निराकार परब्रह्म राम की उपासना की जाती है। इस सम्प्रदाय में राम दशरथ पुत्र राम न होकर कण-कण में व्याप्त निर्गुण-निराकार परब्रह्म है।
– रामद्वारा – रामस्नेही सम्प्रदाय का सत्संग स्थल।
– शाहपुरा (भीलवाड़ा) रामस्नेही सम्प्रदाय की मुख्य पीठ है जहाँ प्रतिवर्ष फूलडोल महोत्सव मनाया जाता है।
- विश्नोई सम्प्रदाय :- प्रवर्तक :-जाम्भोजी। (1485 ई. में) (कार्तिक कृष्णा 8)
– निर्गुण सम्प्रदाय (निराकार विष्णु (ब्रह्म) की उपासना पर बल)
– मुख्य पीठ :- मुकाम-तालवा (बीकानेर)
– अनुयायी 29 नियमों का पालन करते हैं, जिसमें हरे वृक्षों के काटने पर रोक, जीवों पर दया, नशीली वस्तुओं के सेवन पर प्रतिबन्ध, प्रतिदिन सवेरे स्नान, हवन एवं आरती तथा विष्णु के भजन करना, नील का त्याग आदि शामिल है।
– पर्यावरण संरक्षण हेतु प्राणों तक का बलिदान कर देने के लिए प्रसिद्ध सम्प्रदाय।
– यह सम्प्रदाय ईश्वर को सर्वव्यापी तथा आत्मा को अमर मानता है।
– इस सम्प्रदाय में मोक्ष की प्राप्ति हेतु गुरु का सान्निध्य आवश्यक माना जाता है।
– सम्प्रदाय के अन्य तीर्थ स्थल :- जाम्भा (फलौदी-जोधपुर), जागुल (बीकानेर) रामड़ावास (पीपाड़-जोधपुर)
– सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रन्थ :- जम्ब सागर (120 शब्द और 29 उपदेश)।
– इस सम्प्रदाय में नामकरण, विवाह, अन्त्येष्टि आदि संस्कार कराने वाले को ‘थापन’ कहते है।
- जसनाथी सम्प्रदाय :- प्रवर्तक :-जसनाथ जी।
प्रमुख पीठ :- कतरियासर (बीकानेर)
मूर्तिपूजा विरोधी सम्प्रदाय।
इसमें निर्गुण भक्ति को ईश्वर-साधना का मार्ग बतलाया है।
इस सम्प्रदाय के अनुयायी 36 नियमों का पालन करते हैं।
जसनाथी सम्प्रदाय का अग्नि नृत्य प्रसिद्ध है। इसमें सिद्ध भोपे ‘फतै-फतै’ उद्घोष के साथ अंगारों पर नाचते हैं।
सिकन्दर लोदी जसनाथी सम्प्रदाय से काफी प्रभावित था।
जसनाथ सम्प्रदाय के अनुयायी काली ऊन का धागा गले में पहनते हैं।
जसनाथी सम्प्रदाय के लोग जाल वृक्ष तथा मोर पंख को पवित्र मानते हैं।
इस सम्प्रदाय में ’84 बाड़ियां’ प्रसिद्ध हैं। बाड़ियों को ‘आसंण’ (आश्रम) भी कहते है।
जसनाथी सम्प्रदाय के अन्य विरक्त संत ‘परमहंस’ कहलाते है।
– जसनाथी सम्प्रदाय के प्रमुख ग्रंथ :- सिभुन्दड़ा एवं कोड़ा।
– जसनाथी सम्प्रदाय के संत :- लालनाथजी, चोखननाथ जी, सवाईदास जी।
– जसनाथी सम्प्रदाय की बाइबिल :- यशोनाथ-पुराण। (सिद्ध रामनाथ द्वारा रचित)।
– सिद्ध रुस्तम जी जसनाथी सम्प्रदाय को भारत में विख्यात करने वाले एकमात्र संत थे।
- लालदासी सम्प्रदाय :- प्रवर्तक :-लालदास जी