स्त्री परिधान
- प्रागैतिहासिक युग की स्त्री वेश-भूषा बहुत ही साधारण थी।
- उस काल में स्त्रियां केवल अधोभाग को ढ़कने के लिए छोटी साड़ी का प्रयोग करती थी।
- शुंगकालीनतथा गुप्तकाल में स्त्रियां साड़ी को कर्घनी से बांधती थी और ऊपर तक सिर को ढ़कती थी।
- प्रारम्भिक मध्यकाल में स्त्रियां प्रायः लहंगे का प्रयोग करने लगी जो राजस्थान मेंघाघरा नाम से प्रसिद्ध हुआ।
- मध्यकालीन स्त्री वेश-भूषामें डिजाइन व भड़कीलापन अधिक था। समय के साथ-साथ कंचुकी व कांचल का स्वरूप बदलता गया और वह लम्बी आस्तीनों वाली उदर के नीचे तक बढ़ जाती है जिसे कुर्ती कहते हैं। आज भी मारवाड़ में इनका प्रचलन खूब है।
- साड़ियों के विविध नाम प्रचलित थे जिन्हें ओढ़नी, चूंदड़ी, चोल, चोरसो, निचोल, धोरावाली, चीर-पटोरी, पट, वसन, दुकूल, असुंक इत्यादि कहते हैं।
- स्त्रियों के परिधानों में कई प्रकार के कपड़े प्रचलित थे जिन्हें जामादानी, चिक, फरूखशाही छींट, किमखाव, टसर, छींट, मखमल, पारचा, महमूदी चिक, मीर-ए-बादला, मसरू, इलायची, गंगाजलि, मोमजामा इत्यादि नाम से जाना जाता था।
- चूंदड़ी और लहरिया राजस्थान की प्रमुख साड़ी रही है जिनका उपयोग आज हर वर्ग की स्त्रियां कर रही हैं।
- घाघरा-यह कमर से एड़ी तक लम्बा होता है। पहले घाघरे ऊंचे होते थे ताकि पांवों के गहने दिखाई देते रहे लेकिन 19वी शताब्दी तक आते-आते इसकी लम्बाई एड़ी तक तथा घेर 80 कलियों तक बढ़ गया जो आर्थिक सम्पन्नता का प्रतीक बन गया।
- कछाबूलंगोटिया भील महिलाओं द्वारा घुटने तक पहने जाने वाला नीचा घाघरा है।
- घाघरों के लिए बनारस के कारीगर जो टुकड़ा बनाते थे वहचेवली का थान कहलाता था।
- लूगड़ाआदिवासी स्त्रियों द्वारा पहने जाने वाला घाघरे का ही एक रूप है। इसमें सफेद जमीन पर लाल बूटे छपे होते हैं। इसे गोछा साड़ी भी कहते हैं।
- कुर्ती एवं कांचली-स्त्रियां शरीर के ऊपरी हिस्से में इन्हें पहनती हैं। कुर्ती हमेशा बिना बाहों की होती है। कांचली में बाहें होती हैं।
- राजस्थान में एक प्रथा प्रचलित है कि कुंवारी लड़कियां कुर्ती-कांचली एक ही पीस में पहनती है। शादी बाद इन्हें अलग-अलग पहना जा सकता है।
- ओढ़नी-शरीर के अधोभाग में घाघरा, ऊपर कुर्ती कांचली पहनने के बाद स्त्रियां ओढ़नी ओढ़ती है।
- कटकीअविवाहित युवतियों और बालिकाओं की ओढ़नी है जिसकी जमीन लाल होती है।
- प्राचीनकाल से हीबंधेज का प्रचलन था।
- बाजारों में पोमचा, लहरियां और चूनरी आदि का प्रचलन अधिक हो गया। इन सभी की रंगाई-बंधाई विशेष प्रकार से होती है।
- पोमचा ओढ़नी में कमल की तरह गोल-गोल अभिप्राय बने होते हैं।
- लहरिया-सावन में विशेषकर तीज त्यौहार के अवसर पर राजस्थान की स्त्रियाँ लहरिया पहनती हैं।
- पांच की संख्या को शुभ माना जाता है। साथ ही मनुष्य शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है। इसलिए पंचरंग लहरिया का उल्लेख मनुष्य शरीर के सन्दर्भ में भी आता है।
- चुनरी भांतकी ओढ़नी में अनेक तरह के अभिप्राय बनते थे- पशु, पक्षी, फल और अन्य अलंकारिक अभिप्राय।
- तारा भांत की ओढ़नीआदिवासी स्त्रियों में बड़ी लोकप्रिय है। इसमें जमीन भूरी रंगत लिए लाल होती है जबकि किनारी का छोर काला षट्कोणीय आकृति वाला तारों जैसा दिखता है।
- केरी भांत की ओढ़नीकी किनारी व पल्लू में केरी तथा जमीन में ज्वार भात जैसी बिन्दियां होती है। इसी प्रकार ज्वार भांत की ओढ़नी व लहर भांत की ओढ़नी भी प्रचलन में है।
- साधारणतया पतला गोटा जमीन में और चौड़ा गोटा जिसेलप्पा कहते हैं, आंचल में लगाया जाता।
- ओढ़नी को चून्दड़ी, पीला कांगनया पोमचा, बसन्ती लहरियों व डबकियां आदि उसके रंगों व बन्धेज व छपाई के अनुसार कहा जाता है।
- शरीर पर अंगिया पहनी जाती है जिसेकांचली भी कहते हैं, जो केवल स्तनों और आधी बांहों को ढ़कती है। अतः राजस्थान में स्त्रियों के परिधान मुख्य तथा घाघरा, ओढ़नी के साथ में चून्दड़ी व कांचली प्रमुख है।
- राजस्थान मेंसिन्धी महिलाऐं गोटा-किनारी युक्त भड़कीले वस्त्र या सूट पहनती हैं। मुसलमान स्त्रियों की पोशाक चूड़ीदार पजामा और चुंदरी है। कुछ जातियों की स्त्रियां चूड़ीदार पजामा पर ‘तिलका‘ नामक एक चोगा सा पहनती है और ऊपर से ओढ़नी ओढ़ लेती है।
- राजस्थान में नगरों की स्त्रियों की वेशभूषा साड़ियों व सलवार-कमीज का प्रचलन भी बहुत बढ़ गया है।
आभूषण (Ornaments)
- राजस्थान में स्त्रियां व पुरुष दोनों को ही आभूषण धारण करने का शौक है। कानों में मुरकियां, लोंग, झाले, छैलकड़ी, हाथोंमें बाजूबन्द, गले में बलेवड़ा, हाथ में कड़ा तथा अंगुलियों में अंगूठी इत्यादि पुरुषों के आभूषणों में प्रमुख हैं। स्त्रियां बोर पहनती हैं। यह सुहाग का चिह्न माना जाता है। अब बोर का स्थान टीका लेता जा रहा है।
- कई महिलाएँ गले में एक अन्य प्रकार का आभूषण पहनती हैं जो कीमती नगों से जड़ा होता है जिसेतिमणिया कहते हैं। कलाई में एक विचित्र प्रकार का कड़ा पहना जाता है जो गोखरु नाम से प्रसिद्ध हैं गोखरु के पास भी एक प्रकार का आभूषण पहना जाता है जिसे पुन्छि कहते हैं।
- राजस्थान में स्त्रियां अपने सुहाग की निशानी के लिये हाथाेंमें हाथी दांत अथवा लाख का चूड़ा पहनती हैं। यह देश में अन्यत्र् नहीं पहना जाता है।
- आभूषणों में बंगड़ी, हथफूल, बोरला, रखड़ी, मरहठी, गोखरू, सिरफूल, पीपल-पत्ते, बाजूबन्द, करचुरी, तिमन्या, पंचमण्या, कड़े इत्यादि प्रमुख हैं।
- कुड़क, नथड़ी या भंवर कड़ी अंगूठी के बराबर या उससे छोटा छल्ला होता है जो छोटी लड़कियां पहनती हैं।
- फोलरी ऐसी अंगूठी होती है जिस पर तारों से लच्छी या गुच्छी गूंथकर फूलों की आकृति बना दी जाती है।
- रमझोल पाँवों में घूँघरियों वाला आभूषण है, जिससे चलते समय छम-छम की ध्वनि निकलती है।