राजस्थान सामान्य ज्ञान : वन सम्पदा

वन सम्पदा (प्राकृतिक वनास्पति)

  • ब्रिटिश भारत सरकार ने 1894 में प्रथम वन नीति स्थापित की।
  • राजस्थान में वन विभाग की स्थापना 1949 में हुई।
  • स्वतंत्र भारत में भारत सरकार के द्वारा प्रथम वन नीति 1952 में घोषित की गई। इसे 1988 में संशोधित किया गया।
  • राजस्थान में सबसे पहले जोधपुर रियासत द्वारा 1910 में कानून बनाया गया।
  • दूसरी रियासत – अलवर – 1935 में।
  • राज्य सरकार में वन अधिनियम 1953 में पारित हुआ।
  • राष्ट्रीय वन नीति 1952 के अनुसार देश के कम से कम 33% भाग पर वन होने चाहिए।
  • भारत में सर्वाधिक वन मध्यप्रदेश तथा सबसे कम वन पंजाब में है।
  • राजस्थान के क्षेत्रफल के 9.57% क्षेत्र पर वन फैले हैं जो 32,737 वर्ग किमी. के बराबर है।
  • राजस्थान में क्षेत्रफल (वनाच्छादन) की दृष्टि से सर्वाधिक वन वाले जिला – 1. उदयपुर (2764 वर्ग किमी.) 2. अलवर 3. प्रतापगढ़
  • राजस्थान में क्षेत्रफल (वनाच्छादन) की दृष्टि से न्यूनतम वन वाले जिला – 1. चूरू (82 वर्ग किमी.) 2. हनुमानगढ़ 3. जोधपुर
  • राजस्थान में प्रतिशत (वनीकरण) की दृष्टि से सर्वाधिक वन वाले जिला – उदयपुर (25.58%) 2. प्रतापगढ़ 3. सिरोही 4. करौली
  • राजस्थान में प्रतिशत (वनीकरण) की दृष्टि से न्यूनतम वन वाले जिला – जोधपुर (0.46%) 2. चुरू 3. नागौर 4. जैसलमेर
  • घास के मैदान व चारागाह, जिन्हें स्थानीय भाषा में बीड़ कहते हैं, विस्तृत रूप से झुन्झुनूं, सीकर, अजमेर के अधिकांश भागों में एवं भीलवाड़ा उदयपुर और सिरोही के सीमित भागों में पाये जाते हैं।
  • राजस्थान में मुख्यतः धौकड़ा के वन है। जो राजस्थान के वन क्षेत्र के लगभग 60% भाग पर विस्तृत है। तत्पश्चात् सागवान और सालर वनों का स्थान है।
  • राजस्थान में वनों का मुख्य संकेन्द्रण दक्षिण व दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में है।

प्रशासनिक दृष्टि से वनों को 3 भागों में बांटा जाता है :

  1. आरक्षित वन– वृक्षों की कटाई व पशुओं की चराई वर्जित होती है। सर्वाधिक – उदयपुर
  2. रक्षित वन– वृक्षों की कटाई वर्जित परन्तु वनपाल की आज्ञा से पशु चराई संभव। सर्वाधिक – बारां
  3. अवर्गीकृत वन(Unclassified) – पशु चराना व पेड़ काटना संभव।
क्र. सं.कानूनी स्थितिक्षेत्रफल (वर्ग Km)प्रतिश
1.आरक्षित वन12352.7537.63%
2.सुरक्षित वन18058.3756.08%
3.अवर्गीकृत वन2066.736.29%

वनों के उत्पाद

  1. गोंद– चौहटन (बाड़मेर) में सर्वाधिक। कदम्ब वृक्ष से गोंद उतारा जाता है।
  2. कत्था– खदिर से प्राप्त होता है। इसे खैर भी कहते हैं। वानस्पतिक नाम– एकेसिया कैटेचू। क्षेत्र -: उदयपुर, चितौड़, बूंदी, झालावाड़
  • कत्थे से सम्बन्धित जाति – काथोड़ी (उदयपुर व झालावाड़) में।
  1. महुआ– आदिवासियों का कल्प वृक्ष।इसकी पत्तियों, फूल, फल व छाल से शराब बनाते हैं। यह अधिकतर बांसवाड़ा व डूंगरपुर में पाया जाता है। वानास्पतिक नाम -: मधुका लोंगोफोलिया।
  2. आँवल (द्रोण पुष्पी)– उदयपुर, पाली, राजसमंद में पाई जाती है। चमड़े की टैनिंग के लिए काम आती है। इसका निर्यात् किया जाता है।
  3. खस– इत्र व शरबत बनता है। खस का तेल जड़ों से प्राप्त करते हैं। यह अधिकतर भरतपुर, सवाई माधोपुर व करौली में पाया जाता है।
  4. बांस– बांसवाड़ा में,आदिवासियों का हरा सोनानाम से प्रसिद्ध है।
  5. सेवण– यह एक प्रकार कीपौष्टिक घासहै। पश्चिम राजस्थान की गायें इसी के कारण अधिक दूध देती है। वानस्पतिक नाम – लुसियुरूस सिडीकुस। यह लाठी सीरीज (जैसलमेर) में सर्वाधिक पायी जाती है।
  • इसका अन्य नाम लीलोण है।
  • जैसलमेर से पोकरण व मोहनगढ़ तक पाकिस्तानी सीमा के सहारे-सहारे एक चौड़ी भूगर्भीय जल पट्टी (60 किमी.) है, जिसे लाठी सीरीज क्षेत्र कहा जाता है।
  1. अर्जुन वृक्ष– यह उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा में पाये जाते हैं।रेशम कीट पालन इस वृक्ष पर करते हैं।
  2. पंचकूटा– कैर, सांगरी, काचरी, कूम्मट के बीज व गूंदा का फल।
  3. पंचवटी– बड़, आंवला, पीपल, अशोक, बिल्व थे। पांचों वृक्ष वर्तमान में राज्य सरकार के द्वारा पंचवटी योजना के अन्तर्गत लगाये जा रहे हैं।
  4. राजस्थान में सेवण, लीलोण, मुरत (सेन्फ्रस) और अंजन घास प्रसिद्ध है।

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