- चरी नृत्य
- किशनगढ़ (अजमेर) अँचल में गूजर महिलाओं द्वारा किया जाने वाला प्रसिद्ध नृत्य।
- नृत्य करने वाली महिलाएं अपने सिर पर पीतल की बनी ‘चरी’ (चरवी) रखती है जिसमें काकड़े यानी कपास के बीजों में तेल डालकर आग प्रज्वलित की हुई रहती है।
- इस नृत्य में गोल घेरे में भीतर की ओर घूंघट धारिणी महिलाएँ घूमर की तरह नृत्य करती है।
- इस नृत्य में प्रमुख रूप से बांकिया, थाली बजाये जाते है तथा आठ मात्रा का कहरवा विलम्बित रूप में बजता है।
- किशनगढ़ की फलकूबाई ने इस नृत्य को जगजाहिर किया।
- यह नृत्य शुभ, मंगल एवं स्वागत का प्रतीक है।
- चरी नृत्य के लिए पुरस्कृत नृत्यांगना – सुनीता रावत
- गुर्जर महिलाएं नाक में बड़ी नथ पहनती है।
- यह नृत्य पूर्व में (राज परिवार में) गणगौर के अवसर पर किया जाता था।
16.झूमर नृत्य
- गुर्जर और बड़गुर्जर जाति की महिलाओं में प्रचलित यह नृत्य फूलों के शृंगार के लिए प्रसिद्ध है।
- इस नृत्य में झूमरा आभूषण, झूमरा वाद्य का प्रयोग होता है तथा यह नृत्य झूम-झूम कर किया जाता है इसलिए इसका नामकरण यह पड़ा।
- रामदेवजी (लोकदेवता) की मुँह बोली बहिन डालीबाई ने इस नृत्य को आगे बढ़ाया।
- यह नृत्य देवता की आराधना के समय किया जाता है।
- माउण्ट आबू में नक्की झील के किनारे गरासिया स्त्रियां भी झूमर नृत्य करती है।
17.बिछुड़ो नृत्य
- यह कालबेलिया स्त्रियोंका लोकप्रिय नृत्य है।
- इस नृत्य के साथ छोटा चंग बजाया जाता है।
- इस नृत्य के साथ गाया जाने वाला गीत बिछुड़ा है अतः इसी नाम से इस नृत्य की पहचान कायम हुई।
- कालबेलिया जाति सांप, बिच्छू का जहर उतारने में माहिर होती है।
- इस नृत्य में गीत का भाव है कि गेंद खेलते समय उसे बिच्छू ने काट खाया अतः वह पति से कह रही है कि वे झाड़ा डाकर उस पर चढ़ा जहर उतारे।
- प्रसिद्ध गीत –
तालेरिया रमती ने म्हाने बिच्छू घणे रो खायो सा
अर र र र र गई मर रे रे रे उतार साजन बिछुड़ो
म्हैं तो दड़ी खेलवा गई सा
चढ़ग्यो म्हाने वैरी बिछुड़ो
- चकरी नृत्य
- यह व्यावसायिक नृत्य है जो छबड़ा (बारां) व किशनगंज (बारां) में कजंर जाति की महिलाओं द्वारा किया जाता है।
- इसे ‘फूंदी’ नृत्य भी कहा जाता है मुख्य वाद्य ढ़ोल तथा चंग होते हैं।
- यह नृत्य सामान्यतः बूंदी के ‘कजली तीज’ के मेले पर सर्वाधिक आयोजित किया जाता है।
- वर्तमान में प्रमुख नृत्यागंना – शांति, फिलमां और फुलवां
- चकरी का पूर्व नाम राई (राही) था जो राह चलों को आकर्षित कर लेता था।
- इस नृत्य में नाचने वाली लड़कियां कुंवारी होती है जो अच्छी बनीठनी रहती है।
- सन् 1974 में चांचोड़ा के रशीद अहमद पहाड़ी ने इस नृत्य को अपने सीमित क्षेत्र से बाहर निकाला तब से इस नृत्य में पूरे संसार में प्रसिद्धि पाई।
- ‘कज्जा’ उस व्यक्ति को कहते है जो बस्ती में जाकर अच्छा नाचने वाला का पता लगाता था।
- कच्छीघोड़ी नृत्य
- शेखावाटी क्षेत्र में किया जाने वाला प्रसिद्ध व्यावसायिक नृत्य।
- काठ की बनी वह घोड़ी जो कमर में पहन कर नचाई जाती है, कच्छीघोड़ी, कहलाती है।
- राजस्थान में कच्छीघोड़ी नृत्य करने वाली प्रमुख जातियां – ढोली, कुम्हार, सरगरे, भांभी, मुसलमान तथा बावरी।
- यह नृत्य प्रायः ब्याह-शादियों के अवसर पर किया जाता है।
- इस घोड़ी नाच के साथ कहीं-कहीं पर एक सी-स्वांगिया भी होता है। इन दोनों के आपस में दोहों के बड़े चुटकीले सवाल-जवाब चलते रहते है जो मीठे, रोचक और सरस शृंगारमूलक होते हैं।
- गांछो द्वारा निर्मित होने के कारण कच्छीघोड़ी को ‘गांछाघोड़ी’ भी कहते है।
- नृत्यकार के पांवो में घुंघरू बंधे रहते है। हाथों में तलवार तथा ढाल रहती है। ढोल, ताशे तथा झांझ के साथ जब नृत्यकार के पांव घोड़ी के पांवबन नृत्य को उतर पड़ते है।
- इस नृत्य में घोड़ी नृत्यकार मराठे तथा प्यादि मुगल सिपाही के प्रतीक होते हैं।
- यह नृत्य वीर रस प्रधान है।
- मुख्य वाद्य- ढोलक, झांझ, डेरु, बांकिया, शहनाई आदि है।
- प्रसिद्ध कलाकार – जोधपुर का छवरलाल गहलोत तथा निवाई (टोंक) के गोविन्द पारीक
- मोहिली नृत्य
- यह एक विवाह नृत्य है, इसका प्रचलन स्थल धारियावद-कांठल क्षेत्र (प्रतापगढ़) है।
- यह स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला धीमी गति का गोलाकार नृत्य है। इसे ‘मोहुलो’ नाम से भी जाना जाता है।
- मोहिली का अर्थ-गोल से है।
- कहीं कहीं पर इसका नाम भवाली, भौली भी प्रचलित है।
- रणबाजा नृत्य
- यह एक युद्ध नृत्य है जिसका प्रचलन मेवों में अधिक देखने को मिलता है।
- प्राचीन काल में युद्ध में जाने वालों को उत्साहित करने के लिए इसका आयोजन किया जाता था।
- इस नृत्य में नृर्तक युद्धकालीन वेशभूषा में सजे होते है।
- नर्तकों के हाथों में तलवार, ढाल, कटार, भाला, बर्छी आदि होते हैं जो युद्ध के ही शौर्यपरक शान है।
- घूमर-घूमरा नृत्य
- यह एकमात्र शोक सूचक नृत्य है। इसका प्रचलन वागड़ क्षेत्र के बाह्मण समुदाय में है।
- जब किसी महिला के पति का निधन हो जाता है तब उस महिला को उसके पीहर ले जाकर सम्पूर्ण शृंगार कराया जाता है। उसे कौर किनारी वाली अच्छी पोशाक पहनाई जाती है। उसके हाथों में मेहदी रचाई जाती है। काजल बिन्दी लगाई जाती है। शीश गूंथा जाता है तथा पूरा शरीर आभूषणों से अलंकृत किया जाता है उसके बाद वह अपने पति-गृह लाई जाती है और उसके बाद ही मृतक की अर्थी श्ममान ले जाई जाती है।
- अर्थी श्मशान ले जाने से पहले विधवा हुई महिला को बीच गोलाई में बिठाकर उसके चारों ओर दो घेरे में महिलाओं के दो समुदाय मिलकर रूदन नृत्य करते हैं।
- इसमें पहला घेरा विधवाओं का तथा दूसरा घेरा सधवा महिलाओं का होता है।