- गींदड़ नृत्य
- केवल पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
- चूरू-शेखावाटी क्षेत्र का सर्वाधिक लोकप्रिय नृत्य, जो होली के पंद्रह दिन पूर्व प्रारंभ होकर होली के साथ समाप्त हो जाता है।
- प्रदर्शन हेतु खुले मैदान में एक ऊँचा मंडप बनाया जाता है। मंडप के बीच नगारे बजाने वाला नगारची बैठता है।
- इस नृत्य में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तो नगारची होता है जो नगारा वादन में बड़ा प्रवीण और पठु होता है।
- इस नृत्य में पुरूष पात्र जो महिला का स्वांग धरते हैं, उन्हें ‘महरी/गणगौर’ कहते हैं।
- गींदड़ नृत्य के संगत में ढोल, डफ, चंग गूँजने लगते है गाँवों में इन दिनों लड़के कहना आरम्भ कर देते है कि “लागे डांडा, घाले गींदड़”।
- ताल, सुर और नृत्य इन तीनों का अनुपम योग इस नृत्य में देखने को मिलता है।
- इस नृत्य में विभिन्न प्रकार के स्वांग करते है जैसे : साधु, शिकारी, सेठ-सेठानी, डाकिया, डाकन, दूल्हा, दुल्हन, सरदार, पठान, पादरी, बाजीगर, जोकर, शिव-पार्वती, पराक्रमी योद्धा, राम, कृष्ण, काली आदि।
- यह एक प्रकार का स्वांग नृत्य है।
- नेजा नृत्य
- यह एक खेल नृत्य है जिसका प्रचलन डूंगरपुर-खैरवाड़ा के आदिवासी मीणों/भीलों में अधिक देखने को मिलता है।
- यह नृत्य होली के बाद तीसरे दिन आयोजित होता है।
- इस नृत्य में खुली जगह पर खम्भा रोप दिया जाता है तथा उसके उपरी सिरे पर नारियल बांध दिया जाता हैं।
- खम्भे के चारों ओर स्त्रियाँ हाथों में बेंत लिए खड़ी रहती है जबकि पुरुष नारियल लेने का प्रयत्न करते हैं। इस अवसर पर जो ढोल बजाया जाता है उस पर ‘पगल्या लेना’ नामक थाप दी जाती है।
- इस खेल नृत्य में महिलाओं की बहादुरी और शक्ति सम्पन्नता देखने को मिलती हैं।
- झेला नृत्य
- यह बारां के शाहबाद की सहरिया जनजाति का फसली नृत्य है।
- आषाढ़ माह में जब फसल पक जाती है तब सहरिया पुरुष अपने खेतों पर मस्ती में झूमते हुए यह नृत्य करते है।
- इस नृत्य के अवसर पर जो गीत गाये जाते हैं वे झेला नाम से जाने जाते हैं।
- एक के बाद एक नृत्य करते हुए पुरुष-दर-पुरुष और महिला-दर-महिला जब गीत की पंक्तियां झेलते हैं तो वह गीत ही झेला के रूप में जाना जाता है। इसका अन्य नाम ‘लावणी’ भी सुनने को मिलता है।
- बम/बमरसिया नृत्य
- इस नृत्य के साथ-साथ ‘रसिया’ गाना गाने के कारण इसका नाम ‘बमरसिया’ नृत्य पड़ा।
- मेवात प्रदेश (अलवर, भरतपुर) का ‘बम’ अपनी लोकरंगी छटा के लिए प्रसिद्ध है।
- एक विशाल नगाड़े को ही ‘बम’ कहा जाता है। बम के साथ ढोल, मजीरा, थाली, चिमटा, गिलास वाद्यों की संगत लिये नर्तक निकल पड़ते हैं।
- इस नृत्य की यह विशेषता है कि इसमें नर्तक, वादक तथा गायक तीनों ही तीन भागों में विभक्त होकर गति देते है।
- यह नृत्य पुरुषों का हैं।
- फाल्गुन माह में फसल कटने के पश्चात् ‘चौपाल’ पर किया जाने वाला नृत्य।