अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
– सकराय माता :- मलयकेतु पर्वत (उदयपुरवाटी, सीकर)।
– सच्चियाय माता :- यह मंदिर 8वीं सदी का माना जाता है। सच्चियाय माता के मंदिर का निर्माण परमार राजकुमार उपलदेव ने करवाया था।
– सुंधा माता :- सुंधा माता के केवल सिर की पुजा होती है। मूर्ति में धड़ नहीं होने से इन्हें अधरेश्वरी माता भी कहते है। यहाँ वैशाख एवं भाद्रपद माह में शुक्ला त्रयोदशी से पूर्णिमा तक मेले भरते हैं।
– नारायणी माता :- नाईयों की कुलदेवी। पुजारी :- मीणा
वर्तमान में मंदिर की पूजा को लेकर नाई और मीणा में विवाद हुआ जो न्यायालय तक जा पहुँचा।
– राठासण देवी :- मेवाड़ में।
– सुराणा देवी :- गोरखाण (नागौर) में।
– स्वांगियाजी :- जैसलमेर में।
– आमजा देवी :- केलवाड़ा (राजसमन्द)। भीलों की देवी के रूप में प्रसिद्ध। मंदिर में पूजा के लिए एक भील भोपा एवं दूसरा ब्राह्मण पुजारी है।
– रुपण माता :- हल्दीघाटी (राजसमन्द)।
– वीरातरा माता :- चौहटन (बाड़मेर) भोपों की कुलदेवी। यहाँ मेले में नारियल की जोत जलाई जाती है तथा बकरे की बलि दी जाती है।
– छीक माता :- जयपुर।
– द्रष्टा माता :- कोटा। कोटा राजपरिवार की कुलदेवी।
– गायत्री माता :- पुष्कर (अजमेर)।
– सावित्री माता :- पुष्कर (अजमेर)। भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को विशाल मेला लगता है।
– उंठाला माता :- वल्लभनगर (उदयपुर)।
– उष्ट्रवाहिनी देवी :- पुष्करणा ब्राह्मणों की कुलदेवी। इन्हें ‘सारिका देवी’ भी कहा जाता है। जोधपुर तथा बीकानेर में इनके कई मंदिर हैं।
– मातर माता :- सिरोही।
– हिचकी माता :- सनवाड़।
– कंठेसरी माता :- यह आदिवासियों की माता है।
– आदमाता :- झाला राजवंश की कुलदेवी।
– त्रिपुर सुन्दर (तुरतई माता) :- पंचाल समाज की कुलदेवी है।
– सांभर झील में शाकम्भरी माता देवी का मन्दिर है।
लोक देवता
– गोगाजी :- गुरु :- गोरखनाथ।
गोगाजी ने गौ-रक्षा एवं तुर्क आक्रांताओं (महमूद गजनवी) से देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्यौछावर कर दिये।
गोगामेड़ी के चारों तरफ फैला हुआ जंगल ‘वणी’ या ‘ओयण’ कहलाता है। गोगामेड़ी को मकबरे का स्वरूप फिरोजशाह तुगलक ने प्रदान किया।
– पाबूजी :- पाबूजी राठौड़ों के मूल पुरुष राव सीहा के वंशज थे।
पाबूजी के साथी :- चाँदोजी, सावंतजी, डेमाजी, हरमल जी राइका एवं सलजी सोलंकी।
– रामदेवजी :-
परचा :- रामदेवजी के चमत्कार
ब्यावले :- भक्तों द्वारा गाये जाने वाले भजन।
बाबे री बीज :- भाद्रपद शुक्ला द्वितीया।
– मेहाजी :- लोक मान्यता है कि इनकी पूजा करने वाले भोपा की वंश वृद्धि नहीं होती। वे गोद लेकर पीढ़ी आगे चलाते हैं।
राव चूण्डा (जोधपुर शासक) के समकालीन।
– देवनारायण जी :- गुर्जर समाज इन्हें ‘विष्णु का अवतार’ मानते है। आसीन्द में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को मेला लगता है।
बगड़ावतों का गाँव :- देवमाली (अजमेर)।
देवनारायण जी प्रथम लोकदेवता है जिन पर 2011 में केन्द्रीय संचार मंत्रालय द्वारा डाक टिकट जारी किया गया।
– आलमजी :- मालाणी प्रदेश (बाड़मेर) के लोकदेवता।
‘आलमजी का धोरा’ :- आलमजी का थान, जो घोड़ों के तीर्थस्थली के रूप में माना जाता है।
मेला :- भाद्रपद शुक्ला द्वितीया।
– भूरिया बाबा :- मीणा आदिवासियों के इष्टदेव।
मंदिर :- चांदीला (सिरोही)
अरनोद (प्रतापगढ़)
– इलोजी :- छेड़छाड़ के देवता के रूप में प्रसिद्ध।
मारवाड़ क्षेत्र में पूजे जाते है।
बाड़मेर में होली पर इलोजी की सवारी निकालने का रिवाज है।
– मल्लीनाथ :- 1399 में कुंडा पंथ की स्थापना की।
अन्य :-
– क्षेत्रपाल :- स्थान विशेष के देवता। इनके स्थान स्वतंत्र रूप से भी पाये जाते हैं। भैरव पूरे राजस्थान में पूजे जाने वाले क्षेत्रपाल है। क्षेत्रपाल के सर्वाधिक मंदिर राजस्थान के डूंगरपुर जिले में प्राप्त होते हैं। खेतला शब्द क्षेत्रपाल से बना है। यह मुख्य ग्राम देवता होता है तथा इसे जगदम्बा का पुत्र माना जाता है। राजस्थान में पूजे जाने वाले अन्य क्षेत्रपालों में मामाजी, झुंझारजी, वीर बापजी, खवि, सतीजी तथा बायासां आदि प्रमुख हैं।
खवि को राजस्थान में भूत, प्रेत, यक्ष, गन्धर्व और राक्षस से भी खतरनाक माना जाता है। ‘खवि’ का अर्थ होता है – कबंध अर्थात मस्तिष्क रहित धड़।