लोक देवी-देवता
- लोक देवियाँ –
- करणी माता –बीकानेर के राठौड़ शासकों की कुलदेवी। ‘चूहों वाली देवी’ के नाम से विख्यात। जन्म सुआप गाँव के चारण परिवार में।
मंदिर : देशनोक (बीकानेर)।
करणीजी के काबे : इनके मंदिर के चूहे। यहाँ सफेद चूहे के दर्शन करणजी के दर्शन माने जाते हैं।
– राव जोधा के समय मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव करणीमाता ने रखी।
– करणीमाता की गायों का ग्वाला-दशरथ मेघवाल
– राव कान्ह ने इनकी गायों पर हमला किया।
– महाराजा गंगासिंह ने इस मन्दिर में चांदी के किवाड़ भेंट किया।
– इनके बचपन का नाम रिद्धुबाई था।
– मठ – देवी के मन्दिर को मठ कहते हैं।
– अवतार – जगत माता
– उपनाम – काबा वाली माता, चूहों की देवी।
– करणी जी की इष्ट देवी ‘तेमड़ा जी’ हैं। करणी जी के मंदिर के पास तेमड़ा राय देवी का भी मंदिर है। करणी देवी का एक रूप ‘सफेद चील’ भी है।
‘नेहड़ी’ नामक दर्शनीय स्थल है जो करणी माता के मंदिर से कुछ दूर स्थित है।
करणी जी के मठ के पुजारी चारण जाति के होते हैं।
करणी जी के आशीर्वाद एवं कृपा से ही राठौड़ शासक ‘राव बीका’ ने बीकानेर में राठौड़ वंश की स्थापना की थी। चैत्र एवं आश्विन माह की नवरात्रि में मेला भरता है।
- जीण माता– चौहान वंश की आराध्य देवी। ये धंध राय की पुत्री एवं हर्ष की बहन थी। मंदिर में इनकी अष्टभुजी प्रतिमा है। मंदिर का निर्माण रैवासा (सीकर) में पृथ्वीराज चौहान प्रथम के समय राजा हट्टड़ द्वारा।
– जीणमाता की अष्टभुजा प्रतिमा एक बार में ढ़ाई प्याला मदिरा पान करती है। इसे प्रतिदिन ढाई प्याला शराब पिलाई जाती है।
– जीणमाता का मेला प्रतिवर्ष चैत्र और आश्विन माह के नवरात्रों में लगता है।
जीण माता तांत्रिक शक्तिपीठ है। इसकी अष्टभुजी प्रतिमा के सामने घी एवं तेल की दो अखण्ड ज्योति सदैव प्रज्वलित रहती हैं।
जीण माता का गीत राजस्थानी लोक साहित्य में सबसे लम्बा है। यह गीत कनफटे जोगियों द्वारा डमरू एवं सारंगी वाद्य की संगत में गाया जाता है।
जीण माता का अन्य नाम भ्रामरी देवी है।
- कैला देवी– करौली के यदुवंश (यादव वंश) की कुल देवी। इनकी आराधना में लागुरिया गीत गाये जाते हैं। मंदिर : त्रिकूट पर्वत की घाटी (करौली) में। यहाँ नवरात्रा में विशाल लक्खी मेला भरता है।
- कैला देवी का लक्खी मेला प्रतिवर्ष चैत्र मास की शुक्ला अष्टमी को भरता है। कैला देवी मंदिर के सामने बोहरा की छतरी है।
- शिला देवी– जयपुर के कछवाहा वंश की आराध्य देवी/कुल देवी। इनका मंदिर आमेर दुर्ग में है।
- अन्नपूर्णा– शिलामाता की यह मूर्ति पाल शैली में काले संगमरमर में निर्मित है। महाराजा मानसिंह पं. बंगाल के राजा केदार से ही सन् 1604 में मूर्ति लाए थे।
– इस देवी को नरबलि दी जाती थी तथा यहाँ भक्तों की मांग के अनुसार मन्दिर का चरणामृत दिया जाता है। मान्यता है कि इस देवी की जहाँ पूजा होती है उसे कोई नहीं जीत सका।
- जमुवाय माता– ढूँढाड़ के कछवाहा राजवंश की कुलदेवी। इनका मंदिर जमुवारामगढ़, जयपुर में है। दुलहराय द्वारा मंदिर का निर्माण करवाया गया।
- आईजी माता– सिरवी जाति के क्षत्रियों की कुलदेवी। इनका मंदिर बिलाड़ा (जोधपुर) में है। मंदिर ‘दरगाह’ व थान ‘बडेर’ कहा जाता है। ये रामदेवजी की शिष्या थी। इन्हें मानी देवी (नवदुर्गा) का अवतार माना जाता है।
– इनके मन्दिर में मूर्ति नहीं होती तथा एक दीपक की लौ से केसर टपकती रहती है। इनके मन्दिर का पूजारी दीवान कहलाता है।
- राणी सती– वास्तविक नाम ‘नारायणी’। ‘दादीजी’ के नाम से लोकप्रिय। झुंझुनूँ में राणी सती के मंदिर में हर वर्ष भाद्रपद अमावस्या को मेला भरता है।
– इनके पति का नाम – तनधनदास
नोट – इन्होंने हिसार में मुस्लिम सैनिकों को मारकर अपने पति की मृत्यु का बदला लिया और स्वयं सती हो गयी कुलदेवी।
– अग्रवाल समाज की कुलदेवी।
– राज्य सरकार ने 1988 में इस मेले पर प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि 1987 में देवराला (सीकर) में “रूपकंवर” नामक राजपूत महिला सती हो गयी थी।
- आवड़ माता– जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी। इनका मंदिर तेमड़ी पर्वत (जैसलमेर) पर है।
– जैसलमेर के तेमड़ी पर्वत पर एक साथ सात कन्याओं को देवियों के रूप में पूजा जाता है।
- स्वांगियाजी माता– सुगनचिड़ी को आवड़ माता का स्वरूप माना जाता है।
- शीतला माता– चेचक की देवी। बच्चों की संरक्षिका देवी। जांटी (खेजड़ी) को शीतला मानकर पूजा की जाती है। मंदिर-चाकसू (जयपुर) जिसका निर्माण जयपुर के महाराजा श्री माधोसिंह द्वितीय जी ने करवाया था। चैत्र कृष्णा अष्टमी को वार्षिक पूजा व इस मंदिर में विशाल मेला भरता है। इस दिन लोग बास्योड़ा मनाते हैं। इनकी पूजा खंडित प्रतिमा के रूप में की जाती है तथा पुजारी कुम्हार होते हैं। इनकी सवारी ‘गधा’ है। इसे सैढल माता या महामाई भी कहा जाता है। शीतलाष्टमी को लोग बास्योड़ा (रात का बनाया ठण्डा भोजन) खाते हैं। शीतला माता एकमात्र देवी है जो खण्डित रूप में पूजी जाती है।
- सुगाली माता– आउवा के ठाकुर परिवार की कुलदेवी। इस देवी प्रतिमा के दस सिर और चौपन हाथ है।
– इन्हें 1857 की क्रान्ति की देवी माना जाता है।
- नकटी माता– जयपुर के निकट जय भवानीपुरा में ‘नकटी माता’ का प्रतिहारकालीन मंदिर है।
- ब्राह्मणी माता– बाराँ जिले के अन्ता कस्बे से 20 किमी. दूर सोरसन ग्राम के पास ब्राह्मणी माता का विशाल प्राचीन मंदिर है। विश्व में संभवतः यह अकेला मंदिर है जहाँ देवी की पीठ की ही पूजा होती है अग्र भाग की नहीं। यहाँ माघ शुक्ला सप्तमी को गधों का मेला भी लगता है।
- जिलाणी माता– अलवर जिले के बहरोड़ कस्बे की लोक देवी। यहाँ इनका प्रसिद्ध मंदिर है।
- अम्बिका माता– जगत (उदयपुर) में इनका मंदिर है, जो मातृदेवियों को समर्पित होने के कारण शक्तिपीठ कहलाता है। जगत का मंदिर ‘मेवाड़ का खजुराहो’ कहलाता है। यह राजा अल्लट के काल में 10वीं सदी के पूर्वार्द्ध में महामारु शैली में निर्मित है। यह मंदिर मातृदेवियों को समर्पित हैं।
- पथवारी माता– तीर्थयात्रा की सफलता की कामना हेतु राजस्थान में पथवारी देवी की लोक देवी के रूप में पूजा की जाती है। पथवारी देवी गाँव के बाहर स्थापित की जाती है।