राजस्थान सामान्य ज्ञान : रीति-रिवाज व प्रथाएँ

 

डाकन प्रथा- राजस्थान की कई जातियों विशेषकर भील और मीणा जातियों में स्त्रियों पर ‘डाकन‘ होने का आरोप लगाकर उन्हें मार डालने की कुप्रथा व्याप्त थी। प्रचलित अंधविश्वास के अनुसार ‘डाकन‘ उस स्त्री को कहा जाता था जिसमें किसी मृत व्यक्ति की अतृपत आत्मा प्रवेश की गई हो। ऐसी स्त्री समाज के लिए अभिशाप मानी जाती थी।  जो यातनाएं दे-देकर मार दी जाती थी। यह एक अत्यंत ही अमानवीय क्रूर प्रथा थी।

– सर्वप्रथम अप्रैल, 1853 ई. में मेवाड़ में महाराणा स्वरूप सिंह के समय में मेवाड़ भील कोर के कमाण्डेण्ट जे.सी. बुक ने खैरवाड़ा (उदयपुर) में इस प्रथा को गेर कानूनी घोषित किया।

पान्या की गोठ- मेवाड़ क्षेत्र में जहां बढ़िया मक्की पैदा होती थी वहां पान्या की गोठ का प्रचलन था। मक्की के आटे की रोटी थेप कर उसे ढ़ाक के पत्तों के बीच में दबाकर उपलों की गर्म राख में रख दिया जाता था रोटी बनकर तैयार हो जाती थी फिर दही या दूध के साथ इसे खाया जाता था।

लोह- विवाह या सगाई के मौके पर सगे संबंधी द्वारा बकरे को कटाया जाना लोह कहलाता है।

कन्या वध- राजस्थान में विशेषतः राजपूतों में प्रचलित इस प्रथा में कन्या के जन्म लेते ही उसे अफीम देकर या गला दबाकर मार दिया जाता था। कन्या-वध समाज में अत्यंत ही क्रूर व भयावह कृत्य था। हाड़ौती के पॉलिटिकल एजेण्ट विलकिंसन के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिक के समय में राजस्थान में सर्वप्रथम कोटा राज्य में सन् 1833 में तथा बूंदी राज्य में 1834 ई. में कन्या वध करने को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया।

सूला- कबाब की किस्म का यह व्यंजन मांसाहारियों का प्रिय व्यंजन था।

खाजरू- राजपूत लोगों द्वारा गोठ या पार्टी हेतु पाले गये बकरों को काटना खाजरू कहलाता है।

दहेज प्रथा- दहेज वह धन या सम्पत्ति होती है जो विवाह के अवसर पर वधू पक्ष द्वारा विवाह की आवश्यक शर्त के रूप में वर पक्ष को दी जाती है। वर्तमान में इस प्रथा ने विकराल रूप धारण कर लिया है। इसने लड़कियों के विवाह को अति दुष्कर कार्य बना दिया है। यद्यपि सन् 1961 में भारत सरकार द्वारा दहेज निरोधक अधिनियम भी पारित कर लागू कर दिया गया लेकिन इस समस्या का अभी तक कोई निराकरण नहीं हो पाया है।

पर्दा प्रथा- प्राचीन भारतीय संस्कृति में हिन्दू समाज में पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था लेकिन मध्यकाल में बाहरी आक्रमणकारियों की कुत्सित व लोलुप दृष्टि से बचाने के लिए यह प्रथा चल पड़ी, जो धीरे-धीरे हिन्दू समाज की एक नैतिक प्रथा बन गई। स्त्रियों को पर्दे में रखा जाने लगा। वह घर की चारदीवारी में कैद होकर रह गई। राजपूत समाज में तो पर्दा प्रथा अत्यंत कठोर थी। मुस्लिम समाज में यह एक धार्मिक प्रथा है।

– 19वीं शताब्दी में कुछ समाज सुधारकों ने इस प्रथा का विरोध किया, जिनमें स्वामी दयानन्द सरस्वती प्रमुख थे। पर्दा प्रथा को दूर करने हेतु उन्होंने स्त्री शिक्षा पर बल दिया।

– विधवा विवाह – ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के प्रयासों से लॉर्ड डलहौजी ने 1856 ई. में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम बनाया। सवाई जयसिंह, स्वामी दयानन्द सरस्वती एवं संत जाम्भोजी द्वारा भी विधवा विवाह को बढ़ावा देने का प्रयास किया। श्री चांदकरण शारदा ने ‘विधवा विवाह’ नामक पुस्तक लिखी।

– चारी प्रथा – खेराड़ क्षेत्र (भीलवाड़ा – टोंक) में प्रचलित प्रथा। इस प्रथा में लड़की के माता-पिता वर पक्ष से कन्या मूल्य लेते हैं।

– दास प्रथा – दास प्रथा का सर्वप्रथम उल्लेख कौटिल्य (चाणक्य) ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में किया है। कौटिल्य ने नौ प्रकार के दासों का उल्लेख किया है। 1562 ई. में अकबर ने इस प्रथा पर रोक लगाई थी। 1832 ई. में लॉर्ड विलियम बैंटिक ने दास निवारक अधिनियम बनाया। इस प्रथा पर सर्वप्रथम 1832 ई. में कोटा-बूँदी रियासत में रोक लगाई।

– आन्न प्रथा – इस प्रथा में राणा के प्रति स्वामी भक्ति की शपथ लेनी पड़ती थी। 1863 ई. में मेवाड़ में इस प्रथा को बन्द कर दिया।

– नौतरा प्रथा – वागड़ (डूँगरपुर-बाँसवाड़ा) में प्रचलित प्रथा। इस प्रथा में व्यक्ति को आर्थिक सहायता की जाती है।

– चौथान :- कोटा में मानव व्यापार पर लिया जाने वाला कर।

– औरतों व लड़के-लड़कियों का क्रय-विक्रय नामक कुप्रथा पर सर्वप्रथम रोक कोटा राज्य में 1831 ई. में लगाई गई थी।

– सागड़ी प्रथा :- पूंजीपति या महाजन अथवा उच्च कुलीन वर्ग के लोगों द्वारा साधनहीन लोगों को उधार दी गई राशि के बदले या ब्याज की राशि के बदले उस व्यक्ति या उसके परिवार के किसी सदस्य को अपने यहाँ घरेलू नौकर के रूप में रख लेना बंधुआ मजदूर प्रथा (सांगड़ी प्रथा) कहलाती है। राजस्थान में 1961 ई. में ‘सागड़ी प्रथा निवारण अधिनियम’ पारित किया गया।

– छेड़ा फाड़ना – जो भील अपनी स्त्री का त्याग करना चाहता है, वह अपनी जाति के पंच के लोगों के सामने नई साड़ी के पल्ले में रुपये बाँधकर उसको चौड़ाई की तरफ से फाड़कर स्त्री को पहना देता है। यह भील जनजाति में तलाक की एक प्रथा है।

– नातरा / आणा प्रथा – आदिवासियों में विधवा स्त्री का पुनर्विवाह की प्रथा।

– लोकाई / कांदिया – आदिवासियों में दिया जाने वाला मृत्यु भोज।

– दापा – आदिवासी समुदायों में वर पक्ष द्वारा वधू के पिता को दिया जाने वाला वधू मूल्य।

– जवेरा – आदिवासी समुदाय द्वारा नवरात्रा अनुष्ठान समाप्ति पर निकाला जाने वाला जुलूस।

– मौताणा – किसी आदिवासी की किसी दुर्घटना या अन्य कारण से मृत्यु हो जाने पर आदिवासी समाज के पंचों द्वारा आरोपी से वसूली जाने वाली क्षतिपूर्ति राशि।

– हमेलो – जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग एवं माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध संस्थान (उदयपुर) द्वारा आयोजित किया जाने वाला आदिवासी लोकानुरंजन मेला।

– बयौरी – आदिवासी जनजाति में दिन के भोजन के बाद विश्राम का समय।

– गाधोतरो – जब किसी गाँव में वहाँ के निवासियों से परेशान होकर कोई पिछड़ी जाति गाँव छोड़ने का निर्णय लेती थी तो उस जाति के लोग गाय के सिर की पत्थर की मूर्ति उस गाँव में स्थापित कर जाति के सभी लोग गाँव छोड़ देते हैं, जिसे गाधोतरो कहा जाता है।

– हाथी वैण्डो प्रथा – भील समाज में प्रचलित वैवाहिक परम्परा इसमें पवित्र वृक्ष पीपल, साल, बाँस व सागवान के पेड़ों को साक्षी मानकर हरज व लाडी (दूल्हा-दुल्हन) जीवनसाथी बन जाते हैं।

– कोंधिया / मेक – गरासिया जनजाति में प्रचलित मृत्युभोज।

– आणा / नातरा – गरासिया जनजाति में विधवा विवाह की प्रथा।

– अनाला भोर भू प्रथा – गरासिया जनजाति में प्रचलित नवजात शिशु की नाल काटने की प्रथा।

 

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