– विदाई- इसमें वर और वधू के वस्त्रों के छोर परस्पर बांधे जाते हैं और दोनों की अंगुलियों में चावल के दाने रखे जाते हैं। वधू के परिवार की स्त्रियां वधू को विदा करने के लिए विदाई गीत गाती हैं जिसे ‘कोयलड़ी‘ गीत कहते हैं।
– पैसरों – विवाह के बाद दूल्हे के घर के आँगन में सात थालियों की कतार को दूल्हे द्वारा तलवार से ईधर-उधर सरकाना और दुल्हन द्वारा जेठानी के साथ मिलकर संग्रह करने की रस्म।
– कुल देवता की पूजा – विवाह के बाद वर-वधू जब घर पहुँचते हैं, तो वर की बहन नवविवाहित युगल की आरती उतार कर उसे गृह में प्रवेश करवाती है। इसके बाद वर-वधू एक साथ कुलदेवता की पूजा करते हैं। इसके बाद वर तथा वधू एक दूसरे के हाथों में बंधे हुए कांकन डोरा को खोलते हैं।
– हथबौलणो – नव आगंतुक वधू का प्रथम परिचय।
– जुआ-जुई- विवाह के दूसरे दिन खाने के पश्चात् दोपहर को एक बर्तन में जल और दूध भरकर वर-वधू के सामने रखकर उसमें पैसा/अंगुठी डाल दी जाती है। वर या वधू में से जिसके हाथ में अंगुठी आ जाती है वही विजयी माना जाता है।
– बढ़ार- यह विवाह के दूसरे दिन वर पक्ष द्वारा अपने रिश्तेदारों व मित्रगणों को दिया जाने वाला भोज है जिसे आजकल आशीर्वाद समारोह तथा अंग्रेजी में रिसेप्शन (Reception) कहते हैं।
– बरोटी – विवाह के बाद वधू के स्वागत में किया जाने वाला भोज।
– हीरावणी – विवाह के समय नववधू को दिया जाने वाला कलेवा।
– ननिहारी- राजस्थान में पिता द्वारा बेटी को विवाह के बाद प्रथम बार विदा कराकर लाने की परम्परा ननिहारी कहलाती है।
– रियाण- पश्चिमी राजस्थान में विवाह के दूसरे दिन अफीम द्वारा मेहमानों की मान-मनोवल करना ‘रियाण‘ कहलाता है।
– खोल्याँ- शेखावाटी के ठिकानों के कामदार मुसलमान थे। इनके यहां विवाह के समय ससुराल में वधू को ‘खोल्याँ‘ रखने का एक दस्तूर होता है। वधू को ससुराल के किसी मोजिज व्यक्ति के ‘खोल्याँ‘ रखकर अर्थात् गोद में रख उसे पिता बना देते हैं। इसका उद्देश्य यह है कि ससुराल में वह उसे अपनी बेटी के समान ध्यान से रखे।
– हरक बनोला, सिंघोड़ा, सामा आदि वैवाहिक रस्में श्रीमालियों में प्रचलित रस्में हैं।
– सोटा सोटी – शादी के बाद वर-वधू नीम की छड़ियों से गोल-गोल घूमकर सोटा सोटी का खेल खेलते हैं।
– खेहटियौ विनायक – विवाह के अवसर पर प्रतिष्ठित की जाने वाली विनायक की मिट्टी की मूर्ति।
– छात – विवाह में नाई द्वारा किए जाने वाले दस्तूर विशेष पर दिया जाने वाला नेग।
– बालाचूनड़ी – मामा द्वारा वधू की माता के लिए लाई गई ओढ़नी।
– कंवरजोड़ – मामा द्वारा वधू (भाणजी) के लिए लाई गई ओढ़नी।
– बयाणौ / बिहांणा – विवाह के समय प्रात:काल में गाये जाने वाले गीत।
– घुड़लौ – विवाह में पुत्री की विदाई पर गाया जाने वाला गीत।
– खोल / छोल – दुल्हन की झोली भरने की रस्म।